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आध्यात्मिक चिंतन

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आध्यात्मिक चिंतन

इस समूह मे सदस्य गण आध्यात्मिक विषयों पर चिंतन एवं स्वस्थ चर्चायें कर सकतें हैं ।

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Members: 74
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Comment by vijay nikore on March 6, 2013 at 1:30am

आशा जी,

 

इस समूह पर आपका स्वागत है।

आशा है हम सभी के चिंतन के लिए आप अपने विचार शीघ्र लिखेंगी।

 

विजय निकोर

Comment by ajay yadav on February 19, 2013 at 11:42pm

अपने आपको वह चीज करते या होते या पाते सोंचे या कल्पना करें जिसके लिए आप मेहनत कर रहें हैं |सभी विवरण भरें |महसूस करें ,देंखे ,चंखे ,स्पर्श करें ,सुने !अपनी नई स्थिति पर दूसरे लोगों की प्रतिक्रियाओ पर ध्यान दें |चाहें उनकी प्रतिक्रियाएं जों
भी हों ,कहें की आपके लिए सब ठीक हैं |
***************************************
जब आप रात को सोने जातें हैं तो अपनी आँखे बंद किजीयें और फिर से अपने जीवन की सभी अच्छी बातों के लिए आभार जताएं |इससे और भी अच्छी बातें होंगी |
***************************************
शान्ति से सोने जाएँ |भरोसा रखें की जीवन की प्रक्रिया आपके पक्ष में हैं और वह आपकी बेहतरी तथा खुशियों का ध्यान रख रही हैं|
*********************************************
आपके हृदय में इतना प्रेम हैं की आप पूरी पृथ्वी का उपचार कर सकते है|लेकिन फ़िलहाल चलो इस प्रेम को केवल अपने उपचार के लिए इस्तेमाल के लिए इस्तेमाल करें |अपने हृदय के केन्द्र में एक गर्माहट ,एक सौम्यता ,एक नरमी आतें देखे |इस भावना को अपने सोचने और बोलने के तरीको को बदलनें दें |

Comment by ajay yadav on February 19, 2013 at 11:39pm

आप गहरे विश्वास के साथ जों भी अपेक्षा करते हैं ,वह स्वयं पूरी होने वाली भविष्यवाणी बन जाती हैं[self fulfilling prophecy]|आपको जिंदगी में वही मिलता हैं जिसकी आप अपेक्षा करते हैं |
आपकी जों खुद से अपेक्षाएं होती हैं ,आप उनसे ऊँचे कभी नही उठ
सकतें |चूँकि वे पूरी तरह से आपके नियंत्रण में होंती हैं इसलिए यह सुनिश्चित करना हैं की आपकी अपेक्षाएं उस जीवन के अनुरूप हों,जिसे आप भविष्य में सच होने की आशा रखतें हैं |खुद से हमेशा सर्वश्रेष्ठ की अपेक्षा रखें |
सिर्फ सकारात्मक अपेक्षाओ की शक्ति ही आपके पूरे व्यक्तित्व को बदल सकती हैं …..साथ ही आपकी जिंदगी को |

Comment by vijay nikore on February 17, 2013 at 1:53pm

प्रिय मित्रो,

 

इस समूह पर नए सदस्यों का हार्दिक  स्वागत है,

और अन्य सदस्यों को भी मेरा सादर अभिनन्दन!

 

इस समूह को आरम्भ हुए अभी केवल ११ दिन हुए  हैं,

और अब हम १९ सदस्य हैं। स्पष्ट है कि इस चिंतन-क्षेत्र

में obo पर पर्याप्त रूचि है।

 

यह समूह बनाने के लिए obo admin को धन्यवाद।

आशा है कि अब आगे बढ़ने के लिए  हम सभी यहाँ

अपने योगदान से एक-दूसरे के चिंतन को समृद्ध करेंगे।

 

इस पर ४ लेख post हो चुके हैं.. उन पर भी शीघ्र अपने

अमूल्य दार्शनिक विचार दें, और नए लेख लिख कर

अपने विचारों का रसास्वादन कराएँ।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

Comment by sanjiv verma 'salil' on February 15, 2013 at 6:15pm

जब ज्ञान दें / गुरु तभी  नर/ निज स्वार्थ से/ मुँह मोड़ता।

      तब आत्म को / परमात्म से / आध्यात्म भी / है जोड़ता।।

( छंद विधान: हरिगीतिका X 4 = 11212 की चार बार आवृत्ति)

Comment by vijay nikore on February 14, 2013 at 11:24am

Welcome to new members of this Group ... Deepti Sharma ji and Dinesh Pareek Ji.

Looking forward to your active participation.

Vijay Nikore

Comment by vijay nikore on February 8, 2013 at 12:03pm
प्रिय सदस्यगण:
हिन्दी भाषा मुझको बहुत प्यारी है। इसीलिए मेरी कविताएँ ९०% हिन्दी में ही हैं।
 
मैं और मेरी जीवन साथी, नीरा जी, आपस में हिन्दी में ही वार्तालाप करते हैं। परन्तु, आध्यात्मिक क्षेत्र में मेरी शिक्षा अंग्रेज़ी में हुई है क्यूँ कि रामाकृष्ण मिश्न और चिन्मया मिश्न के सभी स्वामी जिनसे हमें आध्यात्मिक शिक्षा मिली, वह अन्ग्रेज़ी में ही मिली। इतना ही नहीं, इस विषय पर अच्छी पुस्तकें बहुधा अन्ग्रेज़ी में ही उपलब्ध हैं। मेरे निजी पुस्तकालय में आध्यात्मिक्ता पर लगबघ १०० से अधिक पुस्तकें हैं, और इनमें केवल एक ही हिन्दी में है, और उसमें व्याख्या  इतनी अच्छी नहीं दी गई। अन्ग्रेज़ी में यह शिक्षा होने का नुक्सान यह रहा कि इस विषय पर हमें हमारे विचार अन्ग्रेज़ी में ही आते हैं।
अत: मैं आपसे वायदा करता हूँ कि कुछ समय के बाद मैं लेख हिन्दी में भी भेजूँगा।
 
सादर और सस्नेह,
 
आपके संग सहविद्यार्थी,
विजय निकोर
 
Comment by vijay nikore on February 7, 2013 at 4:17am

My  "dear"  friends:

I just saw that we now have 10 members. The last I saw was a number "6".

Every member is going to add more enrichment and fun for us all. Thank you and congratulations. You may wish to offer this " enrichment" to your friends of  "like mind", by extending to them an invitation to join this आध्यातमिक चिंतन group.

With regards and care,

Vijay Nikore

Comment by Anwesha Anjushree on February 4, 2013 at 10:27pm

Shukriya mujhe aamantrit karne ka...thodi samay ki asuvida hai...parantu aane ki koshish karungi...main jyada samay nahi de paati...chhama prarthi....naman


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 4, 2013 at 4:41pm

अध्यात्म पर पहली पोस्ट पढ़ी अच्छी लगी धीरे धीरे समझने कि कोशिश करूँगी हार्दिक आभार आदरणीय 

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

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