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ग़ज़ल -- जुमलों के तरकश ने तीर उछाले हैं ( दिनेश कुमार 'दानिश' )

22--22--22--22--22--2

जुमलों के तरकश ने तीर उछाले हैं
अच्छे दिन क्या सचमुच आने वाले हैं

नागनाथ और साँपनाथ में फ़र्क नहीं
तन उजले लेकिन मन इनके काले हैं

साँपों को भी दूध पिलाते हैं अक्सर
ज़ह्नों पर हम सब के कैसे ताले हैं

रोटी की फिर देखो बंदरबाँट हुई
कुछ भूखों के मुँह से छिने निवाले हैं

राहनुमा की शक़्ल में रहज़न हैं सारे
रात की आहट से ही डरे उजाले हैं

बारिश से बचते हैं जब तक रँगे सियार
शेर को भी तब तक जीने के लाले हैं

ना मुमकिन है 'दानिश' जी बोलो किसने
सागर की मौजों पर पहरे डाले हैं

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Mohammed Arif on January 7, 2017 at 10:04pm
आदरणीय दिनेश कुमार "दानिश"साहिब,बहुत प्रासंगिक ग़ज़ल,बहुत सरल ढंग से गंभीर बातें कह गये हैं आप । भई क्या कहने !बधाई ! बधाई!! बधाई!!!
Comment by vijay nikore on January 7, 2017 at 9:47pm

 गज़ल अच्छी लगी। हार्दिक बधाई।

Comment by रामबली गुप्ता on January 7, 2017 at 6:49am
भाई दिनेश जी मन खुश कर दिया आपकी इस ग़ज़ल ने। हर शेर के लिए दिल से बधाई लीजिये

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Comment by गिरिराज भंडारी on January 6, 2017 at 1:56pm

बहुत खूब , आदरनीय , अच्छी सामयिक गज़ल कही है , हार्दिक बधाई ।

Comment by Mahendra Kumar on January 4, 2017 at 10:35pm
आदरणीय दिनेश जी, बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने। सभी शेर बेहतरीन हैं। मेरी तरफ से ढेर सारी बधाई प्रेषित है। सादर।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 4, 2017 at 10:07pm
वाह बेहतरीन...
Comment by Samar kabeer on January 4, 2017 at 9:15pm
जनाब दिनेश कुमार'दानिश'जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Sushil Sarna on January 4, 2017 at 8:40pm

जुमलों के तरकश ने तीर उछाले हैं

अच्छे दिन क्या सचमुच आने वाले हैं

नागनाथ और साँपनाथ में फ़र्क नहीं

तन उजले लेकिन मन इनके काले हैं

आदरणीय दिनेश जी वर्तमान को जीती इस खूबसूरत ग़ज़ल की पेशकश पर हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2017 at 2:18pm
पता नहीं कैसे एकही cooment तीन बार प्रकाशित हो गयी, अगर इसे हटाया जा सकता है तो एक को छोड़ और को हटा दिया जाए, सादर
Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2017 at 2:17pm
आदरणीय दिनेश जी सादर अभिवादन, वर्तमान राजनेताओ और जुम्लेबाजियो पर बेहतरीन गजल कही आपने, वैसे तो हर शैर दमदार है, फिर भी
नागनाथ और साँपनाथ में फ़र्क नहीं
तन उजले लेकिन मन इनके काले हैं

हम साँपों को दूध पिलाते दानिस्ता
ज़ह्नों पर हम सब की आख़िर ताले हैं

क्या खूब हुए है, दाद के साथ मुबारकबाद कबूल फरमाएं।

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