221 2121 1221 212
यूँ तीरगी के साथ ज़माने गुज़र गए ।
वादे तमाम करके उजाले मुकर गए ।।
शायद अलग था हुस्न किसी कोहिनूर का ।
जन्नत की चाहतों में हजारों नफ़र गए ।।
ख़त पढ़ के आपका वो जलाता नहीं कभी ।
कुछ तो पुराने ज़ख़्म थे पढ़कर उभर गए।।
उसने मेरे जमीर को आदाब क्या किया ।
सारे तमाशबीन के चेहरे उतर गए ।।
क्या देखता मैं और गुलों की बहार को ।
पहली नज़र में आप ही दिल मे ठहर गए…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 15, 2017 at 12:30pm — 6 Comments
ग़ज़ल
मफ़्ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फाइलुन
धोखे ने मुझको इश्क़ में क्या क्या सिखा दिया
गिरना सिखा दिया है,सँभलना सिखा दिया
रोती थीं ज़ार ज़ार ये,वादे ने आपके
आँखों को इन्तिज़ार भी करना सिखा दिया
सूरज की तेज़ धूप बड़ा काम कर गई
ख़्वाबों के दायरे से निकलना सिखा दिया
अपनों की ठोकरों ने गिराया था बारहा
ग़ैरों ने सीधी राह पे चलना सिखा दिया
"संतोष"दुश्मनों का करूँ शुक्र किस तरह
मुझको भी दोस्ती का सलीक़ा सिखा…
Added by santosh khirwadkar on December 14, 2017 at 8:30pm — 12 Comments
जैसे ही आशिया घर में घुसी उसे चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ आयी. चारो तरफ देखते हुए उसकी नज़र किनारे मेज पर रखे एक पिंजरे पर पड़ी जिसमें कई सारे रंगीन पक्षी कूद फांद कर रहे थे. उसने उछलते हुए पिंजरे की तरफ रुख किया और जब तक वह पिंजरे के पास पहुंचती, सामने से अब्बू आते दिखे.
"कितने प्यारे पक्षी हैं न आशिया, तुम्हारे लिए ही लाये हैं मैंने", अब्बू ने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा.
आशिया ने हँसते हुए अब्बू को शुक्रिया कहा और पिंजरे के पास खड़ी हो गयी. एक से एक खूबसूरत और प्यारे पक्षी, उसे लगा…
Added by विनय कुमार on December 14, 2017 at 6:12pm — 12 Comments
ठिठुरी अम्मा
धूप तो लाजवंती
दुपहरी में ।
कच्ची सी उम्र
नौकरी खँगालता
खाली है झोली
मान न मान
जिंदगी के दो रंग
जीना मरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on December 14, 2017 at 4:00pm — 8 Comments
"पंडित जी, अब ज़रा गायत्री बिटिया को बुला लो, डाक पावती की इंट्री वग़ैरह करवा दो हमारे मोबाइल में!" कड़क चाय की आख़री घूंट हलक़ में डालते हुए पोस्टमेन नज़ीर भाई ने कहा।
"इस उम्र में तुम्हारा काम भी मॉडर्न हो गया, भाईजान!" पंडित जी ने चुटकी लेते हुए बिटिया को पुकारा और कहा, "इनको तो बहुत टाइम लगेगा! गायत्री तुम ही कर दो इन्ट्री!"
डाक-विभाग के मोबाइल पर डाक के विवरण भरवाने के साथ ही मंदिर का प्रसाद लेकर नज़ीर भाई विदा लेते हुए साइकल तक पहुंचे ही थे कि पंडित जी की घूरती…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 14, 2017 at 3:30am — 8 Comments
तौल-मोल के “लव यू “
10 अक्टूबर 2009
मुझे लगता है-“अब हमें उठना चाहिए |”
उसने सहमति में सिर हिलाया और पुनीत वापस परिवार वालों के पास आ बैठा |
“क्या पसंद है !” दीदी ने धीरे से कानों में पूछा और पुनीत ने ‘ना’ में सिर हिलाया |
रास्ते में पिताजी ने झल्लाते हुए कहा-“नवाब-साहब कौन सी परी चाहिए ,बाप अच्छा खासा बुलेरो दे रहा था तीन तौला सोना |ये कहते हैं कि नौकरी-नौकरी |बड़े घर की औरतें क्या नौकरी करती जँचती है |वो आदमी ही…
ContinueAdded by somesh kumar on December 14, 2017 at 1:30am — 3 Comments
जब एक सैनिक शहीद होता है
तो साथ में शहीद होती हैं
ढेर सारी उम्मीदें,
ताकत और भावनाएं,
मैं सैनिक नहीं
न मेरा कोई पुत्र,
पर पूरी देशभक्ति
निभायी
अपनी चहारदीवारी
के भीतर
हाथ में धारित
मोबाईल पर चल रहे
सोशल मीडिया
में शहीद सैनिक
की फोटो पर
"जय हिंद"
लिख कर और
सो गया, तब
रात स्वप्न में
वह शहीद आया,
कहा- मैं अपनी
मिट्टी और आपकी
और सेवा करना
चाह रहा था,
पर कर न पाया,
इसलिए…
Added by Manoj kumar shrivastava on December 13, 2017 at 2:30pm — 9 Comments
जीवन में निज यत्न से, करिये ऐसे काम।
आप रहें या ना रहें, रहे सदा पर नाम।
रहे सदा पर नाम, नया इतिहास बनाएँ।
बनें जगत प्रतिमान, लोग यश गाथा गाएँ।
अगर समर्पण-स्नेह-धैर्य-साहस रख मन में।
हों इस हेतु प्रयास, सफल होंगे जीवन में।।1।।
जग में कठिन न है सखे, करना कोई काम।
दृढ निश्चय कर के बढ़ो, होगा जग में नाम।।
होगा जग में नाम, लक्ष्य पाना जो ठानो।
हर बाधा स्वयमेव, मिटेगी सच यह मानो।।
गिरि-सरि आयें राह , चुभें या काँटें पग में।
लक्ष्य प्राप्त कर…
Added by रामबली गुप्ता on December 13, 2017 at 1:12pm — 13 Comments
काफिया आनी : रदीफ़ :मुझे
बह्र :२१२२ २१२२ २१२२ २१२
राह सब दुर्गम, लिखाई में है’ आसानी मुझे
यार दुनिया-ए-सुख़न ही अब है अपनानी मुझे' |
'राज़ की हर बात पर्दे में छुपी थी राज़दाँ
फिर भी जाने क्यों लगी दुश्नाम उरियानी मुझे'|
'मैं नहीं था जानता, ईमान क्या है देश में
ज़ीस्त ने नक़ली बनाया है बलिदानी मुझे'||
अच्छा था वो शाह का शासन, मुकद्दर और था
जीस्त मेरी पलटी खाई, सख्त हैरानी मुझे…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 13, 2017 at 10:30am — 4 Comments
नंगे सच का द्वंद
मुझे सड़क पार करने की जल्दी थी और मैं डीवाईडर पर खड़ा था |मेरी दृष्टी उसकी पीठ पर पड़ी और मैं कुछ देर तक चोरों की भांति उसे देखता रहा |क्षत-विक्षत शाल से ढकी और पटरी की दो समांतर ग्रील से कटती उसकी पीठ रामलीला का टूटा शिव-धनुष प्रतीत हो रही थी |
एक दिन पहले ही आई बरसात से मुख्य मार्ग की किनारियाँ कीचड़ से पटी पड़ी थी और सभ्य और जागरूक समाज द्वारा यहाँ-वहाँ फैलाया गया कचरा ऐसे लग रहा था मानों किसी प्लेन काली साड़ी के स्लेटी बार्डर पर जगह-जगह…
ContinueAdded by somesh kumar on December 13, 2017 at 9:53am — 4 Comments
सब जन हैं आगोश में, धुन्ध धुएँ के आज
अतिशय कम है दृश्यता, सभी प्रभावित काज
सभी प्रभावित काज, नहीं कुछ अपने कर में
जन जीवन बेहाल, छुपे सब अपने घर में
यहीं रहा जो हाल, धुन्ध होगी और सघन
इसका एक निदान, अभी से सोचें सब जन।1।
बच्चे मानों पट्टिका, चाक आपके हाथ
चाहे इच्छा जो लिखें, उनके ऊपर नाथ
उनके ऊपर नाथ, असर वो होगा गहरा
परखें उनके भाव, यथोचित देकर पहरा
दिए जरा जो ध्यान, बनेंगे फिर वो सच्चे
कच्चे घड़े…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 13, 2017 at 5:07am — 8 Comments
2122 1122 1122 22
लोग तन्हाई में जब आप को पाते होंगे।
मेरा मुद्दा भी सलीके से उठाते होंगे ।।
लौट आएगी सबा कोई बहाना लेकर ।
ख्वाहिशें ले के सभी रात बिताते होंगे ।।
सर फ़रोसी की तमन्ना का जुनूं है सर पर ।
देख मक़तल में नए लोग भी आते होंगे ।।
सब्र करता है यहां कौन मुहब्बत में भला।
कुछ लियाकत का असर आप छुपाते होंगे ।।
उम्र भर आप रकीबों को न पहचान सके ।।
गैर कंधो से वे बन्दूक…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 13, 2017 at 1:30am — 12 Comments
मृत्यु भोज - लघुकथा –
राघव के स्वर्गीय पिताजी का तीसरा संपन्न हुआ था अतः सारे परिवार के सदस्य आगे क्या करना है, इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे।
"क्यों राघव, तेरहवीं का क्या सोचा है? हलवाई बगैरह तय कर दिया या मैं किसी से बात करूं"?
"ताऊजी, आपको तो पता ही है कि पिताजी इन सब पाखंडों के खिलाफ़ थे। और मृत्यु भोज तो उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था। इसीलिये माँ की मृत्यु पर उन्होंने हवन किया और अनाथालय के बच्चों को भोजन कराया था"।
"देख बेटा, तेरे पिता तो चले गये। उनके रीति…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 12, 2017 at 6:49pm — 14 Comments
Added by Neelam Upadhyaya on December 12, 2017 at 3:48pm — 2 Comments
जीवन-कविता
बिटिया बैठी पास में
खेल रही थी खेल
मैं शब्दों को जोड़-तोड़
करता मेल-अमेल |
उब के अपने खेल से
आ बैठी मेरी गोद
टूट गया यंत्र भाव
मन को मिला प्रमोद |
बिना विचारे ही पत्नी ने
दी मुझको आवाज़
मैं दौड़ा सिर पाँव रख
ना हो फिर से नाराज़ |
लौटा सोचता सोचता
क्या जोड़ू आगे बात
पाया बिटिया पन्ना फाड़
दिखा रही थी दांत…
ContinueAdded by somesh kumar on December 12, 2017 at 10:30am — 5 Comments
2122 1122 1122 22
इससे पहले कि नई और ख़ता हो जाए
इश्क़ करने की चलो आज सजा हो जाए
बेवफाई का तो दस्तूर निभाया तुमने
अब कोई रस्म जुदाई की अदा हो जाए
लो झुका दी है जबीं आप निकालो अरमां
आज पूरी ये चलो दिल की रज़ा हो जाए
कू ब कू हो कोई चर्चा यहाँ अपना वल्लाह
शह्र में फिर कोई बदनाम वफ़ा हो जाए
जाते जाते मेरे दीयों को बुझाते जाना
साथ जिनके मेरा हर ख़्वाब फ़ना हो जाए
---मौलिक एवं…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 12, 2017 at 10:09am — 20 Comments
1212 1212 1212
जगी थीं जो भी हसरतें, सुला गए ।
निशानियाँ वो प्यार की मिटा गए।।
उन्हें था तीरगी से प्यार क्या बहुत।
चिराग उमीद तक का जो बुझा गए ।।
पता चला न, सर्द कब हुई हवा।
ठिठुर ठिठुर के रात हम बिता गए ।।
लिखा हुआ था जो मेरे नसीब में ।
मुक़द्दर आप अदू का वो बना गए।।
नज़र पड़ी न आसुओं पे आपकी
जो मुस्कुरा के मेरा दिल दुखा गये ।।
न जाने कहकशॉ से टूटकर कई ।
सितारे क्यों…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 11, 2017 at 11:09pm — 5 Comments
अब तो आओ कृष्ण धरा ये थर्राती है।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है।।
द्युत क्रीड़ा में व्यस्त युधिष्ठिर खोया है,
अर्जुन का गांडीव अभी तक सोया है।
दुर्योधन निर्द्वन्द हुआ है फिर देखो,
दुःशासन को शर्म तनिक ना आती है।।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है।।
धधक रही मानवता की धू धू होली,
विचरण करती गिद्धों की वहशी टोली।
नारी का सम्मान नहीं अब आँखों में,
भीष्म मौन फिर गांधारी सकुचाती है।।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती…
Added by डॉ पवन मिश्र on December 11, 2017 at 8:30pm — 15 Comments
आज चुनावी रंग में, रँगे गली औ' गाँव।
प्रत्याशी हर व्यक्ति के, पकड़ रहे हैं पाँव।।1।।
पोस्टर बैनर से पटे, हैं सब दर-दीवार।
सभी मनाएँ प्रेम से, लोकतंत्र-त्यौहार।।2।।
सोच-समझ कर ही चुनें, जन प्रतिनिधि हे मीत!
सच्चे नेता यदि मिलें, लोकतंत्र की जीत।।3।।
धन-जन-बल-षडयंत्र से, वोट रहे जो मोल।
अरि वे राष्ट्र-समाज के, मत दें हिय में तोल।।4।।
जाति-धर्म के भेद हर आग्रह से हो मुक्त।
चुनें सहज नेतृत्व निज, कर्मठ…
Added by रामबली गुप्ता on December 11, 2017 at 8:00pm — 10 Comments
सो गया बच्चा
नींद की पालकी में सवार
सो गया बच्चा
शरारती बन्दर बना बछड़ा
लगा बहुत अच्छा |
------------सो गया बच्चा
दिन भर की चपलता
लेटा आँख मलता
“सोना है मुझे “
भाव सीधा-सच्चा |
--------------सो गया बच्चा |
गीत में उमंग नहीं
फूल में सुगंध नहीं
चित्र में रंग नहीं
घर ना लगे अच्छा
----------------सो गया बच्चा |
सपनों का…
ContinueAdded by somesh kumar on December 10, 2017 at 11:42pm — 7 Comments
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