"पंडित जी, अब ज़रा गायत्री बिटिया को बुला लो, डाक पावती की इंट्री वग़ैरह करवा दो हमारे मोबाइल में!" कड़क चाय की आख़री घूंट हलक़ में डालते हुए पोस्टमेन नज़ीर भाई ने कहा।
"इस उम्र में तुम्हारा काम भी मॉडर्न हो गया, भाईजान!" पंडित जी ने चुटकी लेते हुए बिटिया को पुकारा और कहा, "इनको तो बहुत टाइम लगेगा! गायत्री तुम ही कर दो इन्ट्री!"
डाक-विभाग के मोबाइल पर डाक के विवरण भरवाने के साथ ही मंदिर का प्रसाद लेकर नज़ीर भाई विदा लेते हुए साइकल तक पहुंचे ही थे कि पंडित जी की घूरती निगाहों पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा -"मुझे घूर रहे हो पंडित जी या मेरी साइकल को?"
"सब कुछ देख रहा हूं नज़ीर भाई! असली हिन्दुस्तान देख रहा हूं तु्म में और तुम्हारी ज़िन्दगी में!" पंडित जी ने उन पर और उनके पूरे साजो-सामान पर नज़रें टिकाते हुए कहा।
"असली हिन्दुस्तान!" नज़ीर भाई कुछ चौंक से गये।
"वर्षों से वही ग़रीबी, वही मेहनत, वही पुरानी साइकल और बैग वग़ैरह! फ़र्क सिर्फ़ इतना कि तुम भी डिज़ीटल हो गये!"
"नये 'एप' संग हमें मोबाइल थमा कर हमारे काम भले डिज़ीटल करवा दिए जायें, ग़रीबी भले दूर न हो, लेकिन असली हिन्दुस्तान तुम मेंं और हम में क़ायम रहे पंडित जी, बस!" हमेशा की तरह चेहरे पर मुस्कान लाते हुए नज़ीर भाई डाक लिए अपनी साइकल पर आगे चल पड़े।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
लघु कथा के माध्यम कितना बड़ा सच कहा है आपने ! // "वर्षों से वही ग़रीबी, वही मेहनत, वही पुरानी साइकल और बैग वग़ैरह "// बहुतों के पास मोबिल आ गया है, पर असली इनसान फिर भी वही है... सरल, स्नेही, मेहनतीे,सच्चे "किसान" का दिल ... //। लघु कथा बहुत ही अच्छी लगी। हार्दिक बधाई, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, बढ़िया लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
डिजिटल पर सुन्दर कटाक्ष आ शेख उस्मानी जी
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बहुत शान्दार संदेश देती और साथ ही चुटीला कटाक्ष करती लघुकथा।
आदरणीय उस्मानी जी, डिजिटलाइजेशन के बावजूद हमारी सामाजिक स्थिति में तो बहुत अंतर नहीं आया है । बहर लघु कथा के लिए बधाई ।
हम आधुनिक हो गए पर हमारे हालात आज भी वैसे ही, बेहतरीन लघुकथा लिखा आपने शेख शहज़ाद उस्मानी साहब।सादर अभिवादन संग बहुत बहुत बधाई।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
असली भारत ग़रीबी और संसाधनविहीन ही है । आजकल डिजीटल के नाम पर लोगों की जटिलताएँ काफी बढ़ गई है । देश में विकास और डिजीटल का हौव्वा खड़ा किया जा रहा है । आम जनता परेशान हैं । देश की सदियों पुरानी साम्प्रदायिकता को ख़त्म करने का प्रयास नवोदितों द्वारा किया जा रहा है । आज भी हम भले ही आधुनिक जीज़ों का इस्तेमाल कर रहे हो मगर ग़रीबी तो जस की तस बनी हुई है । ग़रीबी मिटाने का स्वांग रचा जा रहा है । ग़रीब और ग़रीबी के नाम पर वोट माँगे जा रहे हैं ।
लाजवाब, सशक्त और प्रभावशाली लघुकथा के लिए दीली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
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