२२२२/ २२२२
जब दंगों का मंजर देखा
सब आँखों में बस डर देखा।१।
*
जलती बस्ती अनजानी थी
पर उसमें भी निज घर देखा।२।
*
मानव तो मानव जैसे ही
मंदिर मस्जिद अन्तर देखा।३।
*
अपने दुख तब से बौने हैं
औरों का दुख ढोकर देखा।४।
*
चीख उठीं दीवारें सारी
सन्नाटा जब छूकर देखा।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 31, 2023 at 5:40am — No Comments
सत्य ज्ञान
उषा अवस्थी
औरतों का जीना किया हराम
सरकार हो या विपक्ष
इन्टरनेट मीडिया दुर्लक्ष
पीटती ढोल सुबह -शाम
उन पर क्या बीतेगी?
लाज शर्म,किस तरह छीजेगी?
न लिहाज,न ईमान
बेशर्मी से करते बदनाम
सूचनाओं में विष घोल कर
शब्द-वाणों की शक्ति छोड़,बेईमान
चलाते, देश की इज्ज़त
उछालने का अभियान
महिलाओं पर कर अनुसन्धान
ज्ञान का करते बखान
स्वयं के मन…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 30, 2023 at 4:11pm — 4 Comments
ग़ज़ल
1212 2121 1212 122
चला जाऊँगा जहाँ से तुम्हें सँवार कर के
तुम्हारी इन ख़ामियों को कहीं निखार कर के
नवाज़ा मुझको ख़ुदा ने वो अज़्म धार कर के
बुलंदी बख़्शी है उस ने ग़ज़ल बहार कर के
बड़े बड़ो को दिखाया है आइना ख़ुदा ने
निकाल दी हैंकड़ी भी उन्हें सुधार कर के
वो चोर मौसेरे भाई हैं बागबाँ चहेते
उन्हें गिरा दो निगाह से दोस्त ख़ार कर के
बहार सावन की आयी कली- कली खिली है
कि हो…
Added by Chetan Prakash on August 28, 2023 at 2:30pm — No Comments
221 2121 1221 212
अच्छा हो तुम पढ़ो ये ग़ज़ल दोस्त ध्यान से
मैंने कहा है इसको बड़े मान - कान से
हम राह में बढेंगे तो मंज़िल मिलेगी ही
मक़सद भी होगा पूरा जियें आन - बान से
हर शख़्स बदहवास अभी भागता शहर
हलकान ज़िन्दगी में है वो खान - पान से
अवसाद इस सदी की समस्या जनाब है
तनहाई मारती रही इनसान जान से
अनजान है ज़माना अभी शोध चाँद पर
आग़ाज भारती हुआ इस बार शान से
आदम…
ContinueAdded by Chetan Prakash on August 24, 2023 at 9:18am — No Comments
वरिष्ठ नागरिक दिवस के अवसर पर चन्द दोहे : ....
दृग जल हाथों पर गिरा, टूटा हर अहसास ।
काया ढलते ही लगा, सब कुछ था आभास ।।
जीवन पीछे रह गया, छूट गए मधुमास ।
जर्जर काया क्या हुई, टूट गई हर आस ।।
गिरी लार परिधान पर, शोर हुआ घनघोर ।
काया पर चलता नहीं, जरा काल में जोर ।।
लघु शंका बस में नहीं, थर- थर काँपे हाथ ।
जरा काल में खून ही , छोड़ चला फिर साथ ।।
वृद्धों को बस दीजिए , थोड़ा सा सम्मान ।
अवसादों को…
Added by Sushil Sarna on August 21, 2023 at 2:45pm — 4 Comments
मोरा साजन छूटो जाय
सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..
पपीहा करत है पी हू पी हू
मोहे जोबन विरह हो जाय
सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!
कोयल बोलै कुूहू कुहू बागन में
मोरा सावन सूखौ जाय
सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!
नाचत मोर बदरिया बरसत है
मोरा आँगन बिसरौ जाय
सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..!
मरौ ददुरवा बूँद पी रह जाय
लो सोवत रहत साल भर वो तो
मो पै बिन पिया…
Added by Chetan Prakash on August 21, 2023 at 2:30pm — 1 Comment
फोन आया,
कई सालों के बाद
फिर उसका फोन आया
पहले जब
घंटी बजती थी,
दिल की धड़कन भी बढ़ती थी
लेकिन आज फोन बजा
तो धड़कन ने इशारा नहीं…
ContinueAdded by AMAN SINHA on August 19, 2023 at 9:00pm — 1 Comment
सीख ......
"पापा ! फिर क्या हुआ" । सुशील ने रात को सोने से पहले पापा की टाँगें दबाते हुए पूछा ।
"कुछ मत पूछ बेटा । हर तरफ मार काट, भागम-भाग , हर तरफ चीखें ही चीखें थी । हमने थोड़े से गहने और सामान बाँधा और सब कुछ छोड़ कर निकल लिए ।" पापा ने कहा ।
"आप सुरक्षित कैसे निकले "। सुशील ने पूछा ।
"ह्म्म । बेटे!सन् 1947 के विभाजन में सम्भव नहीं था वहाँ से सुरक्षित निकलना । उसी कौम का एक इंसान फरिश्ता बन कर हमारी मदद को आया और किसी तरीके से बचते बचाते…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 19, 2023 at 4:49pm — 7 Comments
दोहा त्रयी. . . . मजबूर
आँखों से ही दूर है, अब आँखों का नूर ।
बदले इस परिवेश में, ममता है मजबूर ।।
वर्तमान ने दे दिया, माना धन भरपूर ।
लेकिन कितना कर दिया, मिलने से मजबूर ।।
धन अर्जन करने चला, सात समंदर पार ।
मजबूरी ने कर दिया, सूना घर संसार ।।
सुशील सरना / 18-8-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 18, 2023 at 3:08pm — 4 Comments
1212 - 1122 - 1212 - 112/22
महब्बतों से बने रिश्ते यूँ बिखरने लगे
मुझी से कट के मेरे मेह्रबाँ गुज़रने लगे
*
मशाल इल्म की फिर से बुझा गया कोई
फ़सादी सारे जिहालत में रक़्स करने लगे
*
अवाम जिनको समझती रही भले किरदार
मुखौटे उन के भी चेहरों से अब उतरने लगे
*
ख़ुलूस और महब्बत के पैरोकार भी अब
धरम के नाम पे आपस में वार करने लगे
*
सिला ये हमको मिला उन से दिल लगाने का
जुनून-ए-इश्क़ में हर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 18, 2023 at 8:31am — 4 Comments
212 1222 212 1222
दिलजले लगे हैं फिर घर नया बसाने में
रह गये हैं वो खुद पीछे हमें उठाने में
रतजगे कई होते दोस्त घर बनाने में
भारती बहा है खूँ फिर इसे बसाने में
राह भटके रहबर अब ख़ुदगर्ज़ हुए हैं वो
बेलगाम होकर याँ व्यस्त घर लुटाने में
बाँट कर हुकूमत ने साधे स्वार्थ अपने हैं
पर लगे ज़माने उसको हमें जगाने में
भुखमरी ग़रीबी हटती नहीं हटाने से
बढ़ रही अमीरी उल्टा उसे भगाने…
Added by Chetan Prakash on August 16, 2023 at 8:30am — 2 Comments
रचनात्मक योगदान से समृद्ध स्वाधीनता का साहित्य'
स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में सृजनशील लेखनधर्मियों का अतुल्यनीय योगदान.......
स्व की भावना से प्रेरित आजादी का आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जन-जन के अवचेतन मन को जाग्रत करने आंदोलन चलाये गए। देशी रियासतों पर राज करते हुये उनके जीवन मूल्यों पर हस्तक्षेप करना, क्रूरता पूर्वक नरसंहार के विरूद्ध चेतना जगाने में साहित्यकारों का योगदान अविस्मरणीय हैं। महासंग्राम की धधकती ज्वाला की प्रचंड रूप प्रदान करने में सृजनकारों ने अपने ओजपूर्ण…
Added by babitagupta on August 15, 2023 at 3:14pm — No Comments
एक जनम मुझे और मिले मैं देश की सेवा कर पाऊं
दुध का ऋण उतारा अब तक, मिट्टी का ऋण भी चुका पाऊं
मुझको तुम बांधे ना रखना अपनी ममता के बंधन में
मैं उसका भी हिस्सा हूँ तुमने है जन्म लिया जिसमे
शादी बच्चे घर संसार, ये सब मेरे पग को बांधे है
लेकिन मुझसे मिट्टी मेरी बस एक बलिदान ही मांगे है
सब ही आंचल मे छुपे तो देश को कौन सम्हालेगा
सीमा पर शत्रु सेना से फिर कौन कहो लोहा लेगा
तुमने दुध पिलाया मुझको…
ContinueAdded by AMAN SINHA on August 15, 2023 at 1:30pm — No Comments
जब आजादी पायी है तो, आजादी का मान रखो।
देश, तिरंगे, लोकरीति की, सबसे ऊँची शान रखो।।
*
पुरखों ने बलिदान दिया था, खुली हवा हम पायें।
मस्त गगन में विचरें, खेलें, मिलकर लय में गायें।।
राजनीति की चकाचौंध में, कभी नहीं भरमायें।
भले-बुरे की, सोचें समझें, तब निर्णय पर आयें।।
*
सिर्फ स्वार्थ की अति से बेबश, पुरखे दास बने तब।
स्वार्थ न फिर सिर चढ़े हमारे, सोते जगते ध्यान रखो।
*
भूमि एक थी, धर्म एक तब, किन्तु एकता टूटी।
इस कारण ही सब ने आकर, इज्जत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 15, 2023 at 6:42am — 2 Comments
*रोला छंद*
बहुत दिखाते ज्ञान, तनिक उस पर क्या चलते
बोल कर्म के साथ, मिलें तो क्यों घर जलते
कोरी है बक़वास, शास्त्र की बातें करना
अपना ही व्यवहार, परे उससे यदि धरना।
रहें हजारों साथ, अकेले या वे रह लें
सच को कितना झूठ, झूठ को या सच कह लें
दुष्टों के क्या कृत्य, सही फल दे पातें हैं
कुटिल सदा ही मात, सुजन से खा जातें हैं।
धरती का दिल आज, देख कर जाए घटता
चहुँदिक दे आवाज़, शीश मानव का कटता
कुढ़ता शुद्ध विचार, शील पर चलती…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 14, 2023 at 7:41pm — 5 Comments
ग़ज़ल
1212 1212 1212 1212
सुनो पुकार राष्ट्र की बढ़े चलो सुजान से
मिटेंगे अंथकार के निशाँ बढ़ो सुजान से
निशाना चूक जाए ना बचे रहो सुजान से
वो सारा देश देखता तुम्हें, चलो सुजान से
रहेगा नाम वीरों का किताबों में रिसालों में
मरो तो देश के लिये सखा जियो सुजान से
हमें जहाँ को देना है नहीं किसी से लेना है
ऐसा विचार हो कहीं सही पढ़ो सुजान से
निशान छोड़ जाओ कोई वक़्त की शिलाओं…
ContinueAdded by Chetan Prakash on August 14, 2023 at 2:30pm — 2 Comments
ठंडा है मीठा है थोड़ा सा गाढ़ा है
पर मेरे घर तक आता है नलके का पानी
जब भी दिल चाहे प्यास बुझाता है
ठंडक दे जाता है नलके का पानी
जब से घर आया है सबको लुभाया है
हिम्मत बढ़ाया है नलके का पानी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on August 13, 2023 at 9:10am — No Comments
चौपाई छंद - जीवन
जीवन का जो मर्म न जाने ।
दर्द किसी के क्या पहचाने ।।
जग में निष्ठुर वो कहलाता ।
जो साँसों को समझ न पाता ।1।
*
यौवन के जब दिन हैं आते ।
आँखों में सपने लहराते ।।
रातें लगतीं सदा सुहानी ।
हर पल लिखता नई कहानी ।2।
*
यादों का है दिल से नाता ।
दिल आँसू को सदा छिपाता ।।
आँखों में रातें छिप जातीं ।
कह न व्यथा अन्तस की पातीं ।3।
*
…
Added by Sushil Sarna on August 12, 2023 at 2:41pm — 2 Comments
हिन्दू भैया!,मुस्लिम भैया!, क्यों करते हो दंगा।
हो जाता है इस से जग में, देश हमारा नंगा।।
एक साथ में रहते देखो, बीतीं कितनी सदियाँ।
फिर भी नहीं सुहाने देती, इक दूजे को अँखियाँ।।
*
क्यों इतनी घृणा को मन में, पाल रहे हो अपने।
क्यों अपने हाथों से अपने, जला रहे हो सपने।।
जो मजहब के बने पुरोधा, कितना मजहब मानें।
झाँक कभी जीवन में उनके, ये सच भी तो जानें।।
*
वँटवारे की पीर सहन की, पुरखों ने जो सब के।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2023 at 4:28pm — No Comments
फूलों की चोरी
उषा अवस्थी
फूलों की चोरी
बिना किसी परिश्रम
न पानी डालने का श्रम
न माली के खर्च का गम
पकी -पकाई रोटियाँ
खाने को तैयार
करने को प्रभु को प्रसन्न
सर्व सुलभ हथियार
कुछ कर्म करते-करते
स्वाभाविक हो चले हैं
वह पाप नहीं
आदत में शुमार,
लगते भले हैं
उनके लिए यह चोरी नहीं
साधारण सी बात है
दूसरों की मेहनत
उनकी ख़ैरात है
चोरी का आरम्भ ,
उस पेन्सिल के समान
जिस…
Added by Usha Awasthi on August 7, 2023 at 6:36pm — 2 Comments
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