कालजयी प्रेमचंद जी.........
विश्व साहित्य पटल पर हिन्दी साहित्य के महान कथा सम्राट,महान उपन्यासकार प्रेमचंद जी का उतना ही सम्मान किया जाता हैं जितना कि गोर्की और लू श्यून का.... इसके बाद रविन्द्रनाथ टैगोर जी को प्राप्त हुआ। आधुनिक हिन्दी साहित्य के जन्मदाता, शब्दों के जादूगर प्रेमचंदजी का लेखन पत्रकारिता और साहित्य के माध्यम से हिन्दी की सेवा में आज की मौजूदगी कराता हैं।अधोरात्र लिखने वाले प्रेमचंद जी को हिन्दी लेखकों की आर्थिक समस्याएँ उन्हें कचोटती थी। 'हिन्दी में आज हमें न पैसे…
ContinueAdded by babitagupta on July 31, 2022 at 11:16am — 1 Comment
सशक्तिकरण का मील का पत्थर
जब देश आजादी का 75 वां अमृत महोत्सव मना रहा हैं तब 21जुलाई, 2022 का दिन भारत के इतिहास में लिखा जाने वाला गौरवान्वित करने वाला ऐतिहासिक दिन… नवभारत की भावना को अभिव्यक्त करने के साथ स्पष्ट संदेश प्रेषित होता हैं कि तुष्टीकरण की बजाय सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार को प्राथमिकता प्राप्त हुई।वैचारिक जड़ता को मिटाने वाला सामाजिक न्याय के क्षेत्र में बड़ा कदम साबित हुआ।जमीनी स्तर के लोगों को…
ContinueAdded by babitagupta on July 28, 2022 at 7:08pm — No Comments
गीत रीते वादों का ......
मैं गीत हूँ रीते वादों का , मैं गीत हूँ बीती रातों का।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
हर मौसम ने उस मौसम की
बरसातों को दहकाया है ,
बीत गया वो मौसम दिल का
लौट के फिर कब आया है ,
जश्न मनाता हूँ मैं अपनी , भीगी हुई मुलाकातों का ।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
कैसे अपने स्वप्न मिटा दूँ…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 27, 2022 at 3:01pm — No Comments
221 - 2121 - 1221 - 212
देखें यहीं कहीं वो मेरा साए-बान था
साये में जिसके मेरी ज़मीं, आस्मान था
खंडर हुआ है आज कभी आलीशान था
ये ढेर ! हाँ यही तो वो ज़िंदा मकान था
पामाल कर दिये हैं सभी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 26, 2022 at 9:56am — 4 Comments
एक दिन मुझ सा जी लो
हाँ बस एक दिन मुझ सा जी लो
जाग जाओ पाँच बजे तुम और बर्तन सारे धो लो
पानी भरने के खातिर फिर सारे नल तुम खोलो
कपड़,पोछा,झाड़ू करकट बस एक बार तो कर लो
बस एक दिन मुझ सा जी लो
नाश्ते खाने की लिस्ट बनाओ
राशन, बाज़ार करके…
ContinueAdded by AMAN SINHA on July 23, 2022 at 11:42am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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बोलो न आप हो गयी शमशान जिन्दगी
दुख से उबर के ओढ़ेगी मुस्कान जिन्दगी।१।
*
करते हो मुझ से प्रश्न तो उत्तर यही मेरा
होती है यार मौत का अवसान जिन्दगी।२।
*
कहते हैं सन्त मीन सी दानों को देखकर
माया के जाल फसती है नादान जिन्दगी।३।
*
आचल में मौत सासों को लेते न चूकती
भटकी कहीं जो भूल से यूँ ध्यान जिन्दगी।४।
*
जैसे विचार वैसी ही जग में बनाती है
सच है सभी की आज भी पहचान जिन्दगी।५।
*
करता रहा है प्यार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2022 at 2:50pm — No Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
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लगाओ लगाओ सदा कर लगाओ
बहुत तुच्छ है ये बड़ा कर लगाओ।।
*
अभी रोटियों को अठन्नी बची है
रहे जेब खाली नया कर लगाओ।।
*
कभी रक्त बहता दिखे घाव पर से
दवा छोड़ उस पर कटा कर लगाओ।।
*
गया बचपना तो उसे छोड़ना मत
युवापन बुढ़ापा ढला कर लगाओ।।
*
घटा धूप बारिश तजो चाँदनी मत
मिले मुफ्त क्यों ये हवा कर लगाओ।।
*
जो पीते पिलाते उन्हें मुफ्त बाँटो
न पीते हुओं पर नशा कर लगाओ।।
*
विलासी लगा है उदासी नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 20, 2022 at 7:28am — 4 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
समझ मत उसे यूँ बुरा और होगा
तपेगा दुखों में खरा और होगा।।
*
उजाला कभी जन्म लेगा वहाँ भी
अँधेरा कहाँ तक भला और होगा।।
*
रवैय्या है बदला यहाँ चाँद ने अब
रहेगा कहीं पर पता और होगा।।
*
लहू में है उस के वही साहूकारी
कहा और होगा लिखा और होगा।।
*
करो जुर्म जमकर ये अन्धेर नगरी
सजा को तुम्हारी गला और होगा।।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 18, 2022 at 6:40am — 6 Comments
22 22 22 22 22 22
घुटकर मरने जीने पर भी टैक्स लगेगा
एक दिन आँसू पीने पर भी टैक्स लगेगा
नदी साफ तो कभी न होगी लेकिन एक दिन
दर्या, घाट, सफ़ीने पर भी टैक्स लगेगा
दंगा, नफ़रत, हत्या कर से मुक्त रहेंगे
लेकिन इश्क़ कमीने पर भी टैक्स लगेगा
पानी, धूप, हवा, मिट्टी, अम्बर तो छोड़ो
एक दिन चौड़े सीने पर भी टैक्स लगेगा
भारी हो जायेगा खाना रोटी-चटनी
धनिया और पुदीने पर भी टैक्स…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2022 at 6:34pm — 5 Comments
2122 1212 22
उसकी आँखों से जूझते आँसू
मैंने देखे हैं बोलते आँसू
कैसे आँखों में बाँध रक्खोगे,
हिज्र की शब में काँपते आँसू,
राज़ कितने छुपाये हैं मन में,
उस की पलकों से झाँकते आँसू
कैसे तस्लीम कर लिये जायें
बेवफ़ा तेरे वास्ते आँसू,
इब्तिदा इश्क़ की हँसाती थी,
इंतिहा में हैं टूटते आँसू
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on July 15, 2022 at 7:44pm — 3 Comments
दोहा त्रयी : फूल
कागज के ये फूल कब, देते कोई गंध ।
भौंरों को भाता नहीं, आभासी मकरंद ।।
इस नकली मकरंद पर, मौन मधुप गुंजार ।
अब कागज के फूल से, गुलशन है गुलज़ार ।।
अब कागज के पुष्प दें, प्रीतम को उपहार ।
मुरझाता नकली नहीं, फूलों का संसार ।।
सुशील सरना / 15-7-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 15, 2022 at 3:17pm — No Comments
पा लेता हूँ जहां को तेरी चौखट पर लेकिन
तेरी एक बूंद से मेरी प्यास नहीं बुझती
भुला सकता हूँ मैं अपना वजूद भी तेरी खातिर पर
तुझसे एक पल की दूरी मुझसे बर्दाश्त नहीं होती
भूल जाता हूँ मैं ग़म अपने होंठो से लगाकर तुझे
जब तक छु ना लूँ तुझे मेरी रफ्तार नहीं बढ़ती
बड़ा सुकून मिलता है नसों मे तेरे घुलने से
किसी भी साज़ मे ऐसी कोई बात…
ContinueAdded by AMAN SINHA on July 15, 2022 at 10:20am — No Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 14, 2022 at 8:59am — 8 Comments
Added by Usha Awasthi on July 11, 2022 at 11:11pm — No Comments
जो मैं होता गीत कोई तो तुम भी मुझको गा लेते
जो मैं होता खामोश परिंदा तो अपना मुझे बना लेते
जो मैं होता फूल कोई तो गजरा मुझे बना लेते
जो मैं होता इत्र कोई तो तन पर मुझे लगा लेते
जो मैं होता काजल तो तुम टीका मेरा कर…
ContinueAdded by AMAN SINHA on July 11, 2022 at 1:01pm — No Comments
मुक्तक : गाँव .....
मिट्टी का घर ढूँढते, भटक रहे हैं पाँव।
कहाँ गई पगडंडियाँ, कहाँ गए वो गाँव ।
पीपल बूढ़ा हो गया, मौन हुए सब कूप -
काली सड़कों पर हुई, दुर्लभ ठंडी छाँव ।
*******
कच्चे घर पक्के हुए, बदल गया परिवेश ।
छीन लिया हल बैल का, यंत्रों ने अब देश ।
बदले- बदले अब लगें , भोर साँझ के रंग -
वर्तमान में गाँव का, बदल गया है पेश ।
(पेश =रूप, आकार )
********
गाँवों…
Added by Sushil Sarna on July 11, 2022 at 1:00pm — No Comments
212 212 212 212
साथ यादों के उनके ज़माने चले
हम ग़ज़ल कोई जब गुनगुनाने चले
है मुहब्बत का दुश्मन ज़माना तो क्या
हीर राँझा को दरया मिलाने चले
हाथ थामो मेरा और चलो उस तरफ़
जिस तरफ़ दुनिया भर के दिवाने चले
चाह सुहबत की है इसलिए आज हम
चाय पर दोस्तो को बुलाने चले
दाद महफ़िल में जब ख़ूब मिलने लगी
यूँ लगा शेर सारे ठिकाने चले
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on July 11, 2022 at 8:13am — 3 Comments
२२२ २२२ २२
***************
ये मत पूछो क्या-क्या निकला,
आँसू का इक दरया निकला
हम उसके दिल से यूँ निकले
जैसे कोई काँटा निकला
जिसको जितना गहरा समझे
वो उतना ही उथला निकला
हिज्र की शब की बात बताऊँ ?
सदियों जैसा लम्हा निकला
दुनिया का ग़म, आहें, तड़पन
दिल से कितना मलबा निकला ....
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on July 8, 2022 at 6:46pm — 5 Comments
कुछ उक्तियाँ
उषा अवस्थी
आज 'गधे' को पीट कर
'घोड़ा' दिया बनाय
कल फिर तुम क्या करोगे
जब रेंकेगा जाय?
कैसे - कैसे लोग है
कैसे - कैसे घाघ?…
Added by Usha Awasthi on July 6, 2022 at 3:30pm — No Comments
बुढ़ापा ....
तन पर दस्तक दे रही, जरा काल की शाम ।
काया को भाने लगा, अच्छा अब आराम ।1।
बीते कल की आज हम, कहलाते हैं शान ।
शान बुढ़ापे की हुई, अपनों से अंजान ।2।
झुर्री-झुर्री पर लिखा, जीवन का संघर्ष ।
जरा अवस्था देखती ,मुड़ कर बीते वर्ष ।3।
देख बुढ़ापा हो गया, चिन्तित क्यों इंसान ।
शायद उसको हो गया, अन्तिम पल का भान ।4।
काया में कम्पन बढी , दृष्टि हुई मजबूर ।
अपनों से अपने हुए, जरा काल में दूर…
Added by Sushil Sarna on July 6, 2022 at 12:30pm — 4 Comments
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