For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

May 2014 Blog Posts (119)

ग़ज़ल - क्यों शरमाने लगे थे - पूनम शुक्ला

२१२२ / २१२२ / २१२२
दूर से तो गीत वो गाने लगे थे
पास आते ही क्यों शरमाने लगे थे
मेरे दिल में बस गए थे वो उसी दिन
जब से मेरा दिल वो बहलाने लगे थे
दूर थे पर पास ही थीं उनकी यादें
हमने कहा कब आप अनजाने लगे थे
धड़कनों नें खुद ही घुल मिल बात कर ली
तेरे तरन्नुम सारे पहचाने लगे थे
हम हैं तुममें तुम हो हम में अब ये जाना
पर नजारे कब से समझाने लगे थे

मौलिक एवं अप्रकाशित

पूनम शुक्ला

Added by Poonam Shukla on May 7, 2014 at 12:17pm — 10 Comments

ग़ज़ल - बहाने पे बहाना हो रहा है

१२२२    १२२२     १२२

जमाना अब दीवाना हो रहा है

खुदी से ही बेगाना हो रहा है

 

जला डाला था जिसने घर हमारा

वही अब आशियाना हो रहा है

 

जो हमने…

Continue

Added by अमित वागर्थ on May 7, 2014 at 11:00am — 20 Comments

वक़्त....(लघु-कथा)

 "  सच!  बहुत ही अच्छे इंसान थे  बल्लू भैया !!    क्षेत्रीय बैंक के अध्यक्ष पद पर  होते हुए उन्होंने सभी की बहुत मदद की , जो कोई भी पहचान वाला आकर अपनी समस्या बतलाता , उसे  कैसे न कैसे बैंक से आर्थिक मदद  दिलवा ही देते थे.  आज कई लोग तो उन्हीं की वजह से आबाद हुए बैठे है"

 

" हाँ भाई..!  उनकी माँ के  मर जाने के बाद आज उनका  अपना कोई भी तो नहीं.  देखा न !  पिछले वर्ष जब उनकी माँ की मृत्यु हुई थी तो बल्लू भैया के साथ-साथ सैकड़ों लोग सिर मुंडवाने को आगे आ गये और कहने लगे कि यह हम…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on May 7, 2014 at 10:58am — 40 Comments

ग़ज़ल -- मोतिओं की तरह जगमगाते रहो --सलीम रज़ा रीवा

फ़ाएलुन / फ़ाएलुन / फ़ाएलुन / फ़ाएलुन 

212 // 212 // 212 // 212

मोतिओं की तरह जगमगाते रहो 
बुलबुलों की तरह चहचहाते…
Continue

Added by SALIM RAZA REWA on May 6, 2014 at 10:00pm — 19 Comments

ग़ज़ल :अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

आदमी में आदमीयत है नहीं

इससे बढ़कर  कोई दहशत है नहीं

 

रासते, मंजिल, सफ़र, सब है मगर

इस मुसाफिर में वो सीरत है नहीं

 

बीज जो बोया वही उग पायेगा

इस जमीं की वो हकीकत  है नहीं

 

काम के बन जायेंगे हम भी यहाँ

जब बड़े लोगों की सोहबत है नहीं

 

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं

 

अब गिला ‘निस्तेज’ कर के क्या करे

अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

भुवन…

Continue

Added by भुवन निस्तेज on May 6, 2014 at 9:30pm — 14 Comments

नैन समर्पण ....

नैन समर्पण ....

नैन कटीले होठ रसीले
बाला ज्यों मधुशाला
कुंतल करें किलोल कपोल पर
लज्जित प्याले की हाला
अवगुंठन में गौर वर्ण से
तृषा चैन न पाये
चंचल पायल की रुनझुन से मन
भ्रमर हुआ मतवाला
प्रणय स्वरों की मौन अभिव्यक्ति
एकांत में करे उजाला
मधु पलों में नैन समर्पण
करें प्रेम श्रृंगार निराला

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on May 6, 2014 at 5:30pm — 18 Comments

बात करते गाँव की - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

रोज    की   है   बादलों   से   छेड़खानी   आपने

और  गढ़  ली  प्यास  की  कोई  कहानी  आपने

***

चाह  रखते  हो  भगीरथ  सब  कहें  इतिहास में

पर न  खुद से  एक  दरिया  भी  बहानी  आपने

***

बात  करते  गाँव  की  पर कब  उसे  तरजीह दी

गाँव  को  तम  दे   सजाई   राजधानी    आपने

***

आपको दरिया मिली हर प्यास को सच है मगर

खोद  कूआँ  कब   निकाला  यार  पानी  आपने

***

लाख  दुख  मैं  मानता  हूँ  आपने  झेले  मगर

झोपड़ी  का  दुख  न   झेला  …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2014 at 12:00pm — 14 Comments

कुछ दोहे (जवाहर लाल सिंह)

माली ऐसा चाहिए, किसलय को दे प्यार

खरपतवारहि छांटके, कलियन देहि निखार.

नित उठ देखे बाग़ को, नैना रहे निहार 

सिंचन, खुरपी चाहिए, मन में करे विचार

हवा ताजी तन में लगे, करे भ्रमर गुंजार,

दिल में यूं खुशियाँ भरे, होवे जग से प्यार

कर्म सबहि तो करत हैं, गर न करे प्रचार

लोग न जानहि पात हैं, जाने बस करतार     

दीपक ऐसा चाहिए, घर में करे प्रकाश

तन मन जारे आपनो, किन्तु नेह की आश.

उजियारा लेते…

Continue

Added by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2014 at 11:00am — 20 Comments

किसका साया ……

किसका साया ……

किसका साया मुझे जीने कि सज़ा देता है

कफ़स में आरज़ू की .रूह को क़ज़ा देता है

पेशानी पे बहारों की .अलम लिखने वाली

कौन मेरी आँखों को नमी की क़बा देता है

थी जब तलक साथ तो ज़िंदगी हसीन थी

अब दर्दे हिज़्र मुझे .हर लम्हा रुला देता है

मेरे ख्वाबों के शबिस्तानों में ..रह्ने वाली

बेवफा लौ मेँ पतंगा .खुद को जला देता है

बेवजह मेरे अश्कों की ..वज़ह बनने वाली

कौन मुझे कफ़न मेँ साँसों की दुआ देता…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 5, 2014 at 5:36pm — 14 Comments

जो तू आये तो तुझे अपनी आँखों में क़ैद कर लूँ मैं।

तुझे अपनी ज़िंदगी में इस तरह शामिल कर लूँ मैं,

कि तू मेरे पास न भी हो तो तेरा दम भर लूँ मैं।।



हर घड़ी रहता है इन आँखों को इन्तज़ार तेरा,

जो तू आये तो तुझे अपनी आँखों में क़ैद कर लूँ मैं।



तेरे तसव्वुर में डूबी हैं तन्हाइयाँ और ज़िंदगी मेरी,

ग़र तुझे पा लूँ तो अपनी हर हसरत पूरी कर लूँ मैं।



तेरी बाँहों में आज पिघल जाने को जी चाहता है,

तेरे सीने से लगकर हमेशा को आँखें बंद कर लूँ मैं। …

Continue

Added by Savitri Rathore on May 5, 2014 at 4:26pm — 13 Comments

गोधूली में

गोधूली में

बहुत ही कोमल स्वर में

दर्द से भरे हुए,

सूरज जब डूब रहा होता है

मैं जानती हूँ ज़िंदगी!

तुम मेरे लिये गाती हो.

छत से सूखे कपड़े उठाती हुई

बेचैन

मैं ठिठक जाती हूँ.

कुछ पल, कुछ अनबूझे सवाल

मंडराते हैं मेरे आस पास

चिड़ियों की तरह

जो दाना चुगकर, गाना गाकर

लौट जाते हैं अपने घोंसले में.

सांझ

रह जाती है कुँवारी

रात घिर आती है ज़मीं पर

गगन से उतरता है एक चाहत भरा धुंध

और-

पसर जाता है सरसों के खेत…

Continue

Added by coontee mukerji on May 5, 2014 at 2:00pm — 10 Comments

पहाड़ और स्नो व्हाइट

(बर्फ सी उजली व नीली ऑखों वाली नील मैम को   यह कहानी नज़र करता हूं। जो तन व मन से खूबसूरत तो हैं ही, और जिनकी खूबसूरत उंगलियां  पत्थरों मे भी जान ड़ाल देती हैं। जिन्हें आज भी कामशेत पूणे की वादियों में देखा जा सकता है। उन्ही की जिंदगी से यह कहानी चुरायी है।’)

             

आज भी - दिवाकर अपने सातों  रंग समेट मेज पे पसरा है । पहाड़ खिला है । हरे, भूरे, मटमैले रंगो मे अपनी पूरी भव्यता के साथ । रोज सा। मानो सातो रंग छिटक दिये गये हों एक एक कर। इंद्र धनुष…

Continue

Added by MUKESH SRIVASTAVA on May 4, 2014 at 1:30pm — 6 Comments

निकाल दूँ कैसे तुझे अपने खयाल से

1212 2212   22  1212

भले नहीं रिश्ता तेरा अब मेरे हाल से

निकाल दूँ कैसे तुझे अपने खयाल से

फकीर जैसा हो गया हूँ तेरे इश्क में

बचा नहीं अब तक कोई भी हुस्न जाल से

कोई नहीं क्या हद कोई इस इन्तजार की

गुजर रहे है दिन महीने जैसे साल से

रकीब की महफिल को जब तूने सजा दिया

तो हो गया सबको अचम्भा इस कमाल से

कहाँ कहाँ ढूँढू तुझे दुनिया की भीड में

जहाँ परेशाँ हैँ यहाँ अब तो सवाल से

उमेश…

Continue

Added by umesh katara on May 4, 2014 at 12:40pm — 10 Comments

दूर गगन के टिम-टिम तारें

दूर गगन के टिम-टिम तारें,

लुक छिप कर सब करें इशारे।

धरती पर क्षण भंगुर जीवन,

जैसे निश में जुगुनू हारे।।

स्वार्थी मानव लोभ सताए,

दम्भ ज्ञान से मन बहलाए।

अहं द्वेष माया के बन्धन,

जैसे मृग कश्तूरी धारे।।1



देश-गॉंव की बातें करके,

जाति-धर्म को आड़े करके।

स्वार्थ फलित विष तन में बोते,

जैसे राजनीति भिनसारे।।2



भव सागर में कश्ती सारी,

तूफां संग बवन्डर भारी।

उमड़-घुमड़ कर सॉंझ सबेरे,

जैसे वर्षा-सूखा…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2014 at 10:53am — 7 Comments

नवगीत...आजाद शुका खूंखार हुआ

नवगीत...आजाद शुका खूंखार हुआ

छत्तीस गढ़ के दो राहे पर,

तेरा मेरा साथ हुआ।

एक मात्र माशा रत्ती का

जमकर सोलह श्रृंगार हुआ।।

एक-एक मिलकर जो ग्यारह,

वह दो नम्बर व्यवहार करे।

तीन तिकड़मी सी मॅंहगाई,

जीवन भर आघात करे।

तीन-पॉंच मन राजनीति का,

आजाद शुका खूंखार हुआ।।1

चार वेद-ॠतु-वर्ण व्यवस्था,

चारों खाने चित्त हुए जब।

पंच तत्व कण के परमेश्वर-

छिन्न--िभन्न रिश्ते करते अब।

छवों शस्त्र के सात रंग-रस,

स्वर…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 3, 2014 at 9:40pm — 7 Comments

गौरैया

गौरैया

माँ ! आँगन में अपने

अब क्यों नहीं आती गौरैया

शाम सवेरे चीं चीं करती

अब क्यों नहीं गाती गौरैया

फुदक- फुदक कर चुग्गा चुगती

पास जाओ तो उड़ जाती

कभी खिड़की, कभी मुंडेर पर

अब क्यों नहीं दिखती गौरैया

माँ बतला दो मुझ को

कहाँ खोगई  गौरैया ?

विकास के इस दौर में,बेटा !

मानव ने देखा स्वार्थ सुनेरा

काटे पेड़ और जंगल सारे

 और छीना पंछी का रैन बसेरा

रुठ गई हम से अब हरियाली

पत्थर का…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on May 3, 2014 at 7:39pm — 10 Comments

आल्हा छंद - मसाला क्रिकेट(आईपीएल) अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

क्रिकेट की मंडी भारत है, जहाँ हर क्रिकेटर बिक जाय।  

लग जाती है जिसकी बोली, खुश होकर “याहू” चिल्लाय।।

 

पशु जैसे नीलाम हो गये, धन के आगे सब मजबूर।  

क्रेता इन सब का मालिक है, और सभी बँधुवा मजदूर॥  

अच्छा है मौजूद नहीं थे, जहाँ हुए थे सब नीलाम। 

ठोक बजाकर देखे जाते, नस्ल कौन सी, क्या है दाम।।

 

इज्ज़त से बढ़कर पैसा है, जो देता ऐश्वर्य तमाम।

खुश दिखते हैं बिकने वाले, नहीं बिके तो, नींद हराम॥      

खेल अज़ब है…

Continue

Added by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 3, 2014 at 7:30pm — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
'' ईश्वर होना चाहता भी हूँ या नहीं " ( अतुकांत ) गिरिराज भंडारी

ईश्वर होना चाहता भी हूँ या नहीं

******************************

आज पूजा जा रहा हूँ ।

दूर दूर से आ कर

नत मस्तक हो हज़ारों हज़ारों भक्त

दुआयें मांगते हैं , चढ़ावे चढ़ाते हैं ,

अपनी अपनी मुरादों के लिये ।

उनकी अटूट ,गहरी आस्थाओं ने, विश्वासों ने  

सच में ज़िन्दा कर दिया है

मेरे अंदर , ईश्वरत्व ,

वो ईश्वरत्व

जो सारे ब्रम्हांड के कण कण में है ।

पूरी हो रहीं है मुरादें भी,

पर ,

कैसे कहूँ मै शुक्रिया उन…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 3, 2014 at 6:43pm — 19 Comments

स्त्री की दुनिया

स्त्री की ये दुनिया

बहुत सिमटी हुई

बहुत कोमल

ठीक जैसे आईना

जरा सी खरोंच काफी

उसके स्वरूप को

निमिष भर में वीभत्स करने

और

वो खरोंच धीरे-धीरे बढ़ी

तो

आईना चटक जाए

ये अनुभूत सत्य है ,

उस चटक को कई बार

महसूस किया

आईने के सौ -सौ टुकडो को

अश्रू युक्त सिसकियां सुनाते

उम्मीदों के नीड़ को

थरथरा धूलि धूसरित देख

रोम-रोम काँप उठा था

इसीलिए कहती हूँ

लौट जाओ आवारा बादल

किसी के आशियाने…

Continue

Added by Deepika Dwivedi on May 3, 2014 at 6:07pm — 9 Comments

रहना हमे सचेत ....(रोला)

मेरे अजीज दोस्त, अमर मै अकबर है तू ।

मै तो तेरे साथ, साथ तो हरपल है तू ।।

रहना हमे सचेत, लोग कुछ हमें न भाये ।

हिन्दू मुस्लिम राग, छेड़ हम को भरमाये ।।



मेरे घर के खीर, सिवइयां तेरे घर के ।

खाते हैं हम साथ, बैठकर तो जी भर के ।।

इस भोजन का स्वाद, लोग वो जान न पाये ।

बैर बीज जो रोप, पेड़ दुश्मनी का लगाये ।। रहना हमे सचेत ....



यह तो भारत देश, लगे उपवन फूलों का ।

माली न बने चोर, कष्ट दे जो शूलों का ।।

रखना हमको ध्यान, बांट वो हमें न…

Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on May 3, 2014 at 6:00pm — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service