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निकाल दूँ कैसे तुझे अपने खयाल से

1212 2212   22  1212

भले नहीं रिश्ता तेरा अब मेरे हाल से

निकाल दूँ कैसे तुझे अपने खयाल से

फकीर जैसा हो गया हूँ तेरे इश्क में

बचा नहीं अब तक कोई भी हुस्न जाल से

कोई नहीं क्या हद कोई इस इन्तजार की

गुजर रहे है दिन महीने जैसे साल से

रकीब की महफिल को जब तूने सजा दिया

तो हो गया सबको अचम्भा इस कमाल से

कहाँ कहाँ ढूँढू तुझे दुनिया की भीड में

जहाँ परेशाँ हैँ यहाँ अब तो सवाल से

उमेश कटारा

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 458

Comment

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Comment by umesh katara on May 15, 2014 at 7:44pm

शुक्रिया मीना जी

Comment by umesh katara on May 15, 2014 at 7:43pm

शुक्रिया महिमा जी

Comment by Meena Pathak on May 11, 2014 at 2:31pm

अति सुन्दर .... बधाई 

Comment by MAHIMA SHREE on May 10, 2014 at 11:37am

behad umda prstuti bdhai aapko saadar

Comment by umesh katara on May 8, 2014 at 10:26am

शुक्रिया शिज्जू शंकर जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 7, 2014 at 10:32pm

बड़े उम्दा खयालात हैं आदरणीय उमेश जी बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by umesh katara on May 5, 2014 at 7:56pm

शुक्रिया अरुन कुमार जी

Comment by umesh katara on May 5, 2014 at 7:56pm

शुक्रिया कुन्ती मुकर्जी जी

Comment by coontee mukerji on May 5, 2014 at 1:31am

कहाँ कहाँ ढूँढू तुझे दुनिया की भीड में

जहाँ परेशाँ हैँ यहाँ अब तो सवाल से.....बहुत खूब.....हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2014 at 8:54pm

कहाँ कहाँ ढूँढू तुझे दुनिया की भीड में

जहाँ परेशाँ हैँ यहाँ अब तो सवाल से

उम्दा गज़ल के लिए बधाई.............

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