साजन मेरे मुझे बताओ, कैसे दीप जलाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ
इंतिजार में तेरे साजन, लगा एक युग बीता
हाल हमारा वैसा समझो, जैसे विरहन सीता
सूनी सेज चिढ़ाए मुझको, अखियन अश्रु बहाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ
वे सुवासित मिलन की घड़ियाँ, लगता साजन भूले
बौर धरे हैं अमवा महुआ, सरसो भी सब फूले
सौतन सी कोयलिया कूके, किसको यह बतलाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on February 3, 2018 at 11:30am — 20 Comments
इंडिया गेट पर गुलाब सिंह अपने औटो से जा रहा था। तभी वहाँ तैनात हवलदार रोशन ने उसे रोक दिया।
"आज इधर से वाहनों के लिये मार्ग बंद है। केवल पैदल यात्री ही जा सकते हैं"।
"भाई, आज अचानक ऐसा क्यों"?
"इस में इतना चोंकने वाली क्या बात है। आज मंत्री जी की रैली है"।
"वह किसलिये"?
"मंत्री जी के दामाद को गिरफ़्तार ना किया जाय, इसलिये"।
"ऐसा क्या किया है उनके दामाद ने"?
"उनका दामाद दरोगा है, उसने अपने ही मातहत एक हवलदार की पत्नी के साथ बलात्कार किया…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 3, 2018 at 11:00am — 16 Comments
122 122 122 122
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सियासत बिसातें बिछाने लगी है
चुनावी हवा सरसराने लगी है...
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जगा फिर से मुद्दा ये पूजा घरों का
दिलों में ये नफरत बढ़ाने लगी है।
चुनावी हवा.....
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यहाँ बाँट डाला है रंगो में मजहब
बगावत की आंधी सताने लगी है।
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कहीं नाम चंदन कहीं चाँद दिखता
ये लाशें जमीं पर बिछाने लगी है
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नही बात होती है अब एकता की
हमारी उमीदें घटाने लगी है
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क्युँ इन्सां हुआ जानवर से भी…
ContinueAdded by अलका 'कृष्णांशी' on February 3, 2018 at 10:30am — 13 Comments
ग़ज़ल (मुझको अपना बना कर दगा दे गया )
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(फाइलुन-- फाइलुन--फाइलुन--फाइलुन)
कोई उल्फ़त का बहतर सिला दे गया |
मुझको अपना बनाकर दगा दे गया |
जो खता मैं ने की ही नहीं प्यार में
उफ़ मुझे वो उसी की सज़ा दे गया |
दास्ताँ मैं तबाही की कैसे कहूँ
वो मुझे प्यार का वास्ता दे गया |
दूर यूँ मौत से कब हुई ज़िंदगी
कोई जीने की मुझको दुआ दे गया…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on February 2, 2018 at 10:43pm — 10 Comments
गौरी, पिता के स्नेहिल परिधि में एक साथी की परिभाषा का 'प' समझ पाई। उसी पिता के आँगन में एक लंबा सा साथ निभाने के लिए उसके बचपन को बांटने के लिए भाई के रिस्ते ने साथ दिया। तब वह साथी की परिभाषा के दूसरे पायदान पर 'रि' रूपी रिस्ते को समझने की कोशिश भर कर रही थी। पिता का वह आँगन गौरी की परवरिश के साथ-साथ, बेटी के पराये होने का एहसास भी कराता रहता था। उसकी शिक्षा-दीक्षा की इतिश्री मानकर पिता ने जीवन के लिए, फिर से एक साथी की तलाश शुरू कर दी। जो बेटी भाग्य विधाता होगा। पिता से भी ज्यादा अच्छे से…
ContinueAdded by Vijay Joshi on February 2, 2018 at 12:30am — 2 Comments
ज़िन्दगी की सच्चाई पन्नों पर
हरकीरत हीर जी कौन हैं -- यह मुझे पता नहीं, मैं उनसे कभी मिला नहीं, परन्तु हरकीरत हीर जी क्या हैं, यह मैं उनकी रचनाओं में ज़िन्दगी की सच्चाई से भरपूर संवेदनाओं के माध्यम बहुत पास से जानता हूँ।
ज़िदगी के उतार-चढ़ाव में गहन उदासी को हम सभी ने कभी न कभी अनुभव किया है, परन्तु भावनाओं को कैनवस पर या पन्ने पर यूँ उतारना कि…
ContinueAdded by vijay nikore on February 1, 2018 at 10:13pm — 10 Comments
उसने कहा 2=3 होता है
मैंने कहा आप बिल्कुल गलत कह रहे हैं
उसने लिखा 20-20=30-30
फिर लिखा 2(10-10)=3(10-10)
फिर लिखा 2=3(10-10)/(10-10)
फिर लिखा 2=3
मैंने कहा शून्य बटा शून्य अपरिभाषित है
आपने शून्य बटा शून्य को एक मान लिया है
उसने कहा ईश्वर भी अपरिभाषित है
मगर उसे भी एक माना जाता है
मैंने कहा इस तरह तो आप हर वह बात सिद्ध कर देंगे
जो आपके फायदे की है
उसने…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 1, 2018 at 8:45pm — 6 Comments
221 2121 1221 212
हमनें यूँ ज़िन्दगानी का नक्शा बदल लिया
देखा तुझे जो दूर से रस्ता बदल लिया
तुमने भी अपने आप को कितना बदल लिया
नज़रों की ज़द में आते ही चहरा बदल लिया
जब इस सराय फानी का आया समझ में सच
हमनें भरी दुपहर में कमरा बदल लिया
दादी की जलती उंगलियों का दर्द अब नहीं
हामिद ने इक खिलौने से चिमटा बदल लिया
दीवानगी भी ,शाइरी भी,दिल भी, शहर भी
तुमको भुलाने के लिए क्या क्या बदल लिया
कांपी तमाम रात…
ContinueAdded by मनोज अहसास on February 1, 2018 at 6:12pm — 6 Comments
आहट की प्रतीक्षा में ...
जाने
कितनी घटाओं को
अपने अंतस में समेटे
अँधेरे में
चुपचाप
बैठी रही
कौन था वो
जो कुछ देर पहले
देर तक
मेरे मन की
गहन कंदराओं में
अपने स्वप्निल स्पर्शों से
मेरी भाव वीचियों को
सुवासित करता रहा
और
मैं
ऑंखें बंद करने का
उपक्रम करती हुई
उसके स्पर्शों के आग़ोश में
मौन अन्धकार का
आवरण ओढ़े
चुपचाप
बैठी रही
आहटें
रूठ गयीं…
Added by Sushil Sarna on February 1, 2018 at 3:23pm — 13 Comments
भीतर-बाहर
हाँफती धुमैली साँसों की धड़कन
लगता है यह गाड़ी अचानक
किन्हीं अनजान अपरिचित
दो स्टेशनों के बीच
ज़बर्दस्ती
रोक दी गई है, कब से…
ContinueAdded by vijay nikore on February 1, 2018 at 9:06am — 13 Comments
हौसलों की बैसाखी से
हर मंज़िल को पार किया है
दया-सहानुभूति को
हरदम दर किनार किया है
जब-जब घिरे बादल विपत्ति के
बिजलियाँ चमकीं विचलन की
ख़ुद को मैंने धारदार किया है
बाधाओं को परास्त करता गया
बीज सफलता के बोता गया
भय के काँटों को लाचार किया है
गिरा नहीं , लड़खड़ाया नहीं
इरादा कभी मेरा डगमगाया नहीं
जीवन सुनामी को पार किया है
किया सदैव साहस का आलिंगन
धैर्य का उपवन सजाया है
संघर्षों का मैंने श्रृंगार किया है ।…
Added by Mohammed Arif on February 1, 2018 at 8:30am — 9 Comments
2122 1122 1122 22/112
ये हमारी है दुआ शाद तू गुलफा़म रहे
दूर ही तुझसे सदा गर्दिश-ए-अय्याम रहे
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सारी दुनिया में तेरे इल्म की महके ख़ुश्बू
जब तलक चाँद सितारें हों तेरा नाम रहे
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इस तरह तेरे तसव्वुर में मगन हो जाऊँ
मुझको अपनों से न ग़ैरों से कोई काम रहे
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जब तेरी दीद को हम शहर में तेरे पहुंचें
अपने दामन से न लिपटा कोई इल्ज़ाम रहे
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तेरी ख़ुशहाली की हरपल ये दुआ करते हैं
तेरे दामन में ख़ुशी सुब्ह रहे शाम रहे …
Added by SALIM RAZA REWA on February 1, 2018 at 7:30am — 26 Comments
२२१ १२२२ २२१ १२२२
नफरत के बबूलों को आँगन में उगाओ मत
पाँवों में स्वयं के अब यूँ शूल चुभाओ मत।१।
ऐसा न हो यारों फिर बन जायें विभीषण वो
यूँ दम्भ में इतना भी अपनों काे सताओ मत।२।
फितरत नहीं छिपती है कैसे भी मुखौटे हों
समझो तो मुखौटे अब चेहरों पे लगाओ मत।३।
माना कि तमस देता तकलीफ बहुत लेकिन
घर को ही जला डाले वो दीप जलाओ मत।४।
ढकने को कमी अपनी आजाद बयानों पर
फतवों के मेरे हाकिम पैबंद लगाओ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 1, 2018 at 6:00am — 15 Comments
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