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भीतर-बाहर

हाँफती धुमैली साँसों की धड़कन

लगता है यह गाड़ी अचानक

किन्हीं अनजान अपरिचित

दो स्टेशनों के बीच

ज़बर्दस्ती

रोक दी गई है, कब से

अमावस की रा्त ...

भीतर-बाहर

बिजली

बुझा दी गई है

इतना भयंकर आकारहीन सुनसान

(भीतर-बाहर)

भविष्यवाणी न कोई सिगनल

हरी झंडी नहीं

लाल झंडी भी नहीं, बस

हाहाकार करता कठिन संग्राम

अर्थहीन अधबना-पन

भीतर-बाहर

पूछूँ किससे, क्या पूछूँ, या न पूछूँ

बन्द कमरे में बन्द 

खिड़की की सलाखों के बीच से चीखूँ ?

माथा ... बन्द दरवाज़े पर पटकूँ ?

है दर्द भरी गहरी तड़फड़ाती अकुलाहट

भीतर-बाहर

शैश्वावस्था में जब कभी था गिरा

अनुरोध करती-सी कहती थी माँ

"चुप" ... "अच्छे बच्चे नहीं रोते"

"मैं हूँ न !"

अब कुलबुलाता शून्य

मानो फैलते अन्धकार की गति की लय

छा गई है भीतर-बाहर

अनवरत भयावनी खामोशी

पथरायी ज़िंदगी को कब से

बुखार-सा चढ़ा है

अनुताप का प्रच्छन्न प्रवाह ...

"कहाँ हो, माँ ?"

      ----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by vijay nikore on February 5, 2018 at 2:30pm

आपका हार्दिक आभार, आ० नरेन्द्र जी।

Comment by narendrasinh chauhan on February 5, 2018 at 2:23pm
खुब सुन्दर रचना
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2018 at 6:13pm

आ. भाई विजय जी, बेहतरीन रचना हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on February 4, 2018 at 12:14pm

आपका हार्दिक आभार, आ० सुरेन्द्र जी। स्नेह बनाए रखें

Comment by vijay nikore on February 4, 2018 at 12:13pm

आपका हार्दिक आभार, आ० बृजेश जी

Comment by vijay nikore on February 4, 2018 at 12:12pm

भाई तस्दीक़ अहमद जी, इस रचना को मान देने के लिए हार्दिक आभार

Comment by नाथ सोनांचली on February 3, 2018 at 12:55pm

आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन। विचारोत्तेजक औए सारगर्भित बेहतरीन रचना लिखी आपने। बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें। सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 2, 2018 at 9:59pm

आदरणीय विजय जी आपकी हर कविता बोलती हुई सी प्रतीत होती है..बहुत ही गहरे भावों से परिपूर्ण...

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 1, 2018 at 8:56pm

मुहतरम जनाब विजय साहिब ,एक और ज़बरदस्त रचना पढ़ने को मिली , मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by vijay nikore on February 1, 2018 at 3:01pm

रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी। आपका स्नेह मनोबल बढ़ाता है।

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