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सत्य कब्र से भी निकलकर दौड़ता है

राम थक चूके थे
रावण को बाण मारते -मारते
विभीषण ने बताया
उसकी नाभि में तो अमृत है
राम ने अमृत घट फोड़ दिया
रावण मारा गया ॥

तुम भी थक जाओगे
मेरे दोस्त !!!
सत्य को मारते -मारते
क्योकि ....
सत्य रूपी मानव के
अंग -अंग में अमृत -कलश है ॥

अगर , सत्य को
जिंदा भी दफ़न कर दोगे
मेरे दोस्त ... तो वह
कब्र से निकलकर भी दौड़ने लगेगा ॥

Added by baban pandey on October 12, 2010 at 4:41pm — 3 Comments

बिरहा अग्नि







बिरहा अग्नि



सुंदर छटा बिखरी उपवन में

खुशबु भरी मदमस्त पवन में

अजब सोच है मेरे मन में

सजन संग आज मिलन होगा

बलम संग आज मिलन होगा

---

मैं चातक हूँ स्वाति साजन ,

मैं मयूर सावन है साजन ,'

दीप हो तुम तो स्वाति मैं हूँ

जो तुम सीप तो मोती मैं हूँ ,

हूँ मैं चकोर तेरी मेरे चंदा

क्यों चकोर से दूर है चंदा

वन उपवन सब झूम रहा है ,

मस्त पवन भी घूम रहा है

जाने क्यों…
Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 4:30pm — 1 Comment

आपके दो-चार शब्द .....

सबसे पहले तो मैं ये बताना चाहता हु की क्या आप जानते है की कवियों और कलाकारों को उनके कविता और कला के बदले में क्या मिलता है ?और क्या देना चाहिए?और सबसे अहम् प्रश्न की वे चाहते क्या है ? मैं सबसे पहले इस अहम् प्रश्न का जवाब देना चाहूँगा ,की एक सच्चा कवि और कलाकार अपने मेहनत के बदले न तो आपसे पैसा चाहता है ,न तो आपका दो-चार घंटा समय चाहता है !अगर कुछ चाहता है ,तो वो है आपका प्यार,प्रोत्साहन,सलाह,प्रतिक्रिया -जिसे देने के लिए सिर्फ आपका २ मिनट का समय ही काफी होगा .



जहा तक मेरी अपनी समझ… Continue

Added by Ratnesh Raman Pathak on October 12, 2010 at 4:30pm — 1 Comment

जाने क्या हो गया है आपसे मिलकर मुझको --------

जाने क्या हो गया है आपसे मिलकर मुझको

ढूँढती रहती है दिन रात ये आंखें तुझको

मै दोस्तों से तेरी बात किया करता हूँ

तेरी यादों में सुबह शाम जिया करता हूँ |





और तू है कि मुझे गैर का समझती है

बस यही बात मेरे दिल को भी खटकती है

रोज़ मंदिर में शिवालय में सर झुकाता हूँ

तुम्हे पाने की दुआ मांग के घर आता हूँ |





सामने तुम नहीं होती तो दिल तड़पता है

मै कहीं ढूँढता हूँ ये कहीं भटकता है

फिर कहीं खो गया है इसका पता दो मुझको

छुपा के… Continue

Added by jagdishtapish on October 12, 2010 at 10:36am — 3 Comments

दिल दिल है ...

दिल दिल है शीशा नहीं,
शीशे से भी नाजुक दिल ।
ये दिल दिल का साथी है,
ये दिल दिल का है कातिल ।
यार तुम्हारी बात कहू,
यार तुम्ही तो हो मेरे ।
तुम्ही हो जीवन मेरा,
तुम्ही जीवन का हासिल ।
तेरे दिल की कहता हू,
तेरे दिल की सुनता हु
मेरे दिल की जाने न,
क्यों हो मुझ से तू गाफिल,

deepzirvi@yahoo.co.in
--
deepzirvi9815524600

Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 7:00am — 1 Comment

मेरा दिलबर हसीन नही बेशक

मेरा दिलबर हसीन नही बेशक
कोई उस सा कहीं नहीं बेशक .

वो कही की नही है शेह्जादी,
वो है दिल की मेरे खुशी बेशक .

आँखें उसकी न शरबती न सही ,
उस की आँखों में हूँ में ही बेशक .

उसकी आवाज़ में खनक न सही ,
करती है वो मेरी कही बेशक .

दीप बन कर कभी जो मैं आया ,
ज्योति बन कर के वो जली बेशक .
deepzirvi 9815524600

Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 6:57am — 2 Comments

लोथ हूँ , लाश हूँ एक गाथा हूँ ।

अकेला नही हूँ पर तन्हा हूँ

दरया होकर भी प्यासा हूँ ।

मरती चिडिया देखूं रो दूँ ,

बेशक मै सब में हंसता हूँ ।

तू सेठानी बेशक बेशक ,

मैं याचक दर पर आया हूँ ।

दाज के लिए दरवाजे पर

बैठी बेटी का पापा हूँ ।

बूढे बाप के खाली बेटे की

लाश उठाते में हाफा हूँ ।

श्वासों की हूँ आवागमन मैं

लोथ हूँ , लाश हूँ एक गाथा हूँ ।


--

deepzirvi9815524600

Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 6:56am — 3 Comments

चाँद तन्हा सा प्यासा औ आवारा क्यों हैं ?

चाँद तन्हा सा प्यासा औ आवारा क्यों हैं ?

हाल उस का भी मुझ सा ही खुदारा क्यों है .



था हमें नाज़ बहुत आपकी दानाई पर ,

तेरी नादानी से ये हाल हमारा क्यों है .



खत नहीं फोन नहीं कोई भी नाता भी नहीं ,

मेरे दिलबर को मेरा दर्द गवारा क्यों है .



मैं ने माना की जुर्म होता है सच का कहना ;

है जुर्म ये तो जुर्म इतना ये प्यारा क्यों है.



दीप जल जायेगा जलता ही चला जायेगा ;

तेरा दीवाना फटेहाल बेचारा क्यों… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 6:30am — 1 Comment

हमे अजमाने की कोशिश न कर

हमे आजमाने की कोशिश न कर

जरा दूर जाने की कोशिश न कर



अगर साथ चलने गवारा न हो .

(तो) बहाने बनाने की कोशिश न कर.



मेरा दामन तुम्हारे लिए ही बना ,

ये कह कर लुभाने की कोशिश न कर .



सिर्फ तेरे आंसू ही मांगे हैं ,अब,

देख ले भाग जाने की कोशिश न कर .



तेरा इतिहास का पोथा थोथा छोडो ,

'आज ' से भाग पाने की कोशिश न कर .



कल अँधेरे में थे; दीप अब है जला .

दीप से मुंह फिराने की कोशिश न कर.



दीप… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 6:30am — 3 Comments

ग़ज़ल

हर दिन जमाना दिल को मेरे आजमाता है,
मिलता है जो भी, बात उसकी ही चलाता है.

मालूम है मुझको की आईना है सच्चा पर,
ये आजकल, सूरत उसी, की ही दिखता है.

पीना नहीं चाहा कभी मैने यहाँ फिर भी,
मयखाने का साकी, ज़बरदस्ती पिलाता है.

सच है खुदा तू ही मदारी है जहाँ का बस,
हम सब कहाँ है नाचते, तू ही नचाता है.

"मासूम" अब रोना नहीं दुनिया मे ज़्यादा तुम,
इस आँख का पानी उठा सैलाब लाता है.

Added by Pallav Pancholi on October 12, 2010 at 12:00am — 1 Comment

आपस में भाइयों को लड़ाकर चला गया

शैतान अपना काम बनाकर चला गया

आपस में भाइयों को लड़ाकर चला गया



फिर आदतन वो मुझको सताकर चला गया

हँसता हुआ जो देखा रुलाकर चला गया



उल्फत का मेरी कैसा सिला दे गया मुझे

पलकों पे मेरी अश्क सजाकर चला गया



"जाने से जिसके नींद न आई तमाम रात"

वो कौन था जो ख्वाब में आकर चला गया



बदनाम कर रहा था जो मुझको गली गली

देखा मुझे तो नज़रें झुकाकर चला गया



कातिल को जब वफाएं मेरी याद आ गयीं

तुरबत पे मेरी अश्क बहाकर चला… Continue

Added by Hilal Badayuni on October 11, 2010 at 11:00pm — 5 Comments

निर्बाध प्रहशन



मैंने पूछा था

तट की गीली रेत से

जीवन क्या है

और क्या है

तेरी नियति ?

कुचली जाती पैरों से

क्या हुआ विलुप्त

दर्द की

अनुभूति !!!?



उसने हँसकर

कहा-

जीवन क्या

और मरण क्या

नश्वरता का है

प्रहशन ,

कूल**

परिवर्तन

ही बंधन है

मध्य है

जीवन की

निर्बाध गति ।

~शशि रंजन मिश्र



** कूल=… Continue

Added by Shashi Ranjan Mishra on October 11, 2010 at 7:00pm — 1 Comment

लघुकथा: मोहनभोग -संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा: मोहनभोग

-संजीव वर्मा 'सलिल'

*

*

'हे प्रभु! क्षमा करना, आज मैं आपके लिये भोग नहीं ला पाया. मजबूरी में खाली हाथों पूजा करना पड़ रही है.



' किसी भक्त का कातर स्वर सुनकर मैंने पीछे मुड़कर देखा.



अरे! ये तो वही सज्जन हैं जिन्होंने सवेरे मेरे साथ ही मिष्ठान्न भंडार से भोग के लिये मिठाई ली थी फिर...?



मुझसे न रहा गया, पूछ बैठा: ''भाई जी! आज सवेरे हमने साथ-साथ ही भगवान के भोग के लिये मिष्ठान्न लिया था न? फिर आप खाली हाथ कैसे? वह मिठाई क्या… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2010 at 6:30pm — 3 Comments

जनक छंदी मुक्तिका: सत-शिव-सुन्दर सृजन कर ------- संजीव 'सलिल'

जनक छंदी मुक्तिका:



सत-शिव-सुन्दर सृजन कर



संजीव 'सलिल'



*

*



सत-शिव-सुन्दर सृजन कर,



नयन मूँद कर भजन कर-



आज न कल, मन जनम भर.







कौन यहाँ अक्षर-अजर?



कौन कभी होता अमर?



कोई नहीं, तो क्यों समर?





किन्तु परन्तु अगर-मगर,



लेकिन यदि- संकल्प कर



भुला चला चल डगर पर.





तुझ पर किसका क्या असर?



तेरी किस पर क्यों नज़र?



अलग-अलग जब… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2010 at 5:55pm — 1 Comment

इंतज़ार ...

मैं करता हूँ तेरा इंतज़ार प्यार में ,
प्यार करता है तेरा इंतज़ार मुझमे ..

शाम से ही रोशन ये चाँद ,
पलकें झपकते ये सितारे तमाम ,
ख्वाबों की बार बार आती जाती मुस्कान ,
हैं सभी बेचैन तेरे इंतज़ार में..

हवाएं ,
लहरें
और मैं
इंतज़ार का ही हैं नाम , प्यार में..

ख़ामोशी करती है प्यार
और प्यार करता है ख़ामोशी,
मैं करता हूँ दोनों
प्यार और खामोश इंतज़ार ...

Added by Veerendra Jain on October 11, 2010 at 1:20pm — 2 Comments

दूर तुम हो पास अब तन्हाई है

दूर तुम हो पास अब तन्हाई है

ज़िंदगी किस मोड़ पर ले आई है



हुस्न वाले चैन छीने दर्द दें

अक्ल अब जा के ठिकाने आई है



काटनी होगी फसल तन्हाई की

पर्वतों सी हो गयी ये राई है



रात आधी चाँद पूरा नींद गुम

चोट दिल की भी उभर सी आई है



आजकल क्यूँ गुम से रहते हो बड़े

मुझसे पूछे रोज मेरी माई है



तुम न हो तो फ़िक्र करते सब मेरी

दोस्त पूछे, ध्यान रखता भाई है



दिल न लगता है किसी भी अब जगह

दिल लगाने की सज़ा यूँ पाई… Continue

Added by vikas rana janumanu 'fikr' on October 11, 2010 at 1:00pm — 5 Comments

ज़माना याद रखे जो ,कभी ऐसा करो यारो .

ज़माना याद रखे जो ,कभी ऐसा करो यारो .

अँधेरे को न तुम कोसो, अंधेरों से लड़ो यारो .



निशाने पे नज़र जिसकी ,जो धुन का हो बड़ा पक्का ;

'बटोही श्रमित हो न बात जाये जो ' बनो यारो .



जगत में भूख है ,तंगी - जहालत है जहां देखो ;

करो सर जोड़-कर चारा चलो झाडू बनो यारो .



रखे जो आग सीने में, जो मुख पे राग रखता हो ;

अगर कुछ भी नही तो राग दीपक तुम बनो यारो .





नदी भी धार बहती है,लहू भी धार बहती है ,

जो धारा प्रेम की लाये वो भागीरथ बनो यारो… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 6:59pm — 5 Comments

खिलौना अपने दिल का

खिलौना अपने दिल का हम तुम्हे फौरन दिला देते;
तुम्हे एस की जरूरत है;अगर तुम ये बता देते .
कभी इस से कहा तुम ने कभी उस से कहा तुम ने ;
मुझे अपना समझ क्र तुम कभी दिल की सुना देते .
deepzirvi@yahoo.co.in

Added by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 6:55pm — 1 Comment

आदमी को ढूढने में खो गया है आदमी .

आदमी को ढूढने में खो गया है आदमी.
आँख है खुली मगर सो गया है आदमी.

खुद जला है रातदिन खुद मिटा है रातदिन ;
और खुद की खोज में ,लो गया है आदमी .

घर बना सका नही वो तमाम उम्र में ;
रात दिन बेशक कमाई को गया है आदमी.

एक दिल की दास्ताँ ये दास्ताँ नही सुनो;
दिल्लगी से दिल लगाई हो गया है आदमी.

दीप हर डगर जले ,हर नगर ख़ुशी पले;
बीज हसीन ख्वाब से बो रहा है आदमी
------------------------------------

Added by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 6:30pm — 1 Comment

रौशनी-अँधेरे का तो रहा बखेडा है

सूरजों की बस्ती थी, जुगनुओं का डेरा है ,

कल जहा उजाला था अब वहां अँधेरा है.



राह में कहाँ बहके, भटके थे कहाँ से हम ,

किस तरफ हैं जाते हम, किस तरफ बसेरा है.



आदमी न रहते हों बसते हों जहां पर बुत ,

वो किसी का हो तो हो, वो नगर न मेरा है.



रहबरों के कहने पर रहजनों ने लूटा है ,

रौशनी-मीनारों पे ही बसा अँधेरा है .



मछलियों की सेवा को जाल तक बिछाया है ,

आजकल समन्दर में गर्दिशों का डेरा है.



दीप को तो जलना है, दीप तो जलेगा ही… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 10, 2010 at 6:30pm — 2 Comments

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