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चाँद तन्हा सा प्यासा औ आवारा क्यों हैं ?

चाँद तन्हा सा प्यासा औ आवारा क्यों हैं ?
हाल उस का भी मुझ सा ही खुदारा क्यों है .

था हमें नाज़ बहुत आपकी दानाई पर ,
तेरी नादानी से ये हाल हमारा क्यों है .

खत नहीं फोन नहीं कोई भी नाता भी नहीं ,
मेरे दिलबर को मेरा दर्द गवारा क्यों है .

मैं ने माना की जुर्म होता है सच का कहना ;
है जुर्म ये तो जुर्म इतना ये प्यारा क्यों है.

दीप जल जायेगा जलता ही चला जायेगा ;
तेरा दीवाना फटेहाल बेचारा क्यों है?

DEEPZIRVI.



--

deepzirvi9815524600

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 12, 2010 at 9:47am
मैं ने माना की जुर्म होता है सच का कहना ;
है जुर्म ये तो जुर्म इतना ये प्यारा क्यों है.

वाह वाह वाह दीप साहिब, कमाल की ग़ज़ल पढ़ी है आपने, दाद कुबूल कीजिये |उम्मीद है कि ऐसे ही आप की और भी कृति तथा अन्य ब्लोग्स पर आपकी टिप्पणियाँ पढ़ने को मिलती रहेगी |

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