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सत्य कब्र से भी निकलकर दौड़ता है

राम थक चूके थे
रावण को बाण मारते -मारते
विभीषण ने बताया
उसकी नाभि में तो अमृत है
राम ने अमृत घट फोड़ दिया
रावण मारा गया ॥

तुम भी थक जाओगे
मेरे दोस्त !!!
सत्य को मारते -मारते
क्योकि ....
सत्य रूपी मानव के
अंग -अंग में अमृत -कलश है ॥

अगर , सत्य को
जिंदा भी दफ़न कर दोगे
मेरे दोस्त ... तो वह
कब्र से निकलकर भी दौड़ने लगेगा ॥

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2010 at 9:52pm
सही कहे बब्बन भैया, सत्य परेशान हो सकता है किन्तु हार नहीं सकता, बहुत बढ़िया , अच्छी रचना है |
Comment by आशीष यादव on October 13, 2010 at 7:13am
Sachchai chhup nhi sakati bnawt ke usulo se.
Comment by DEEP ZIRVI on October 12, 2010 at 10:08pm
सत्य रूपी मानव के
अंग -अंग में अमृत -कलश है ॥.. sunder abhivykti waah ji.

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