सामान उठाते हैं
अब लौट के जाते हैं
दिल मेरा दुखाने को
अहबाब भी आते हैं
ये चाँद-सितारे भी
रातों को रुलाते हैं
जो टूट के मिलते थे
वो रूठ के जाते हैं
मैं उनका निशाना हूँ
वो तीर चलाते हैं
हम अपनी उदासी को
हँस-हँस के छुपाते हैं
की ख़ूब अदाकारी
पर्दा भी गिराते हैं
.......दीपक कुमार
Added by दीपक कुमार on January 10, 2012 at 12:25am — 10 Comments
बेवफा होना तेरा क्या क्या सितम ढाने लगा
अब तो मैं मंदिर में भी जाने से घबराने लगा
हो अलग तुमने जला डाली थी मेरी याद तक
मैं तेरी तस्वीर से दिल अपना बहलाने लगा
भोर की पहली किरण मैंने चुराकर दी जिसे
दूसरे के घर को अब वो फूल महकाने लगा
सर्द रातों में लिपट जाता था कोहरे की तरह
मैं बना सूरज तो दुःख का चाँद शरमाने लगा
घर के आगे जब से इक ऊँची ईमारत बन गई
मेरे घर आने से अब सूरज भी कतराने लगा
………………………………….. अरुन…
ContinueAdded by Arun Sri on January 9, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
तुम्हारी याद मे........
मैं खोयी थी अपने इन्द्रधनुषी सपनों में
अचानक बादलों की एक गडगडाहट ऩे
मुझे तुमसे मिला दिया|
लेकिन मैं कभी मन से
तुम्हारी न बन सकी|
तुम्हारा नियंत्रण मेरी देह पर था,
परन्तु मन आज भी
उन्ही इन्द्रधनुषी सपनों मे
रंगा हुआ था |
धीरे धीरे हमारे बीच दूरियाँ बढ़ने लगी,
बात बेबात तकरारे बढ़ने लगी,
आँगन मे गुलाब के साथ
कैक्टस भी फलने फूलने लगा|
और एक दिन
जब तुम चले गए
मुझे छोड़कर तन्हा
कहीं दूसरे…
Added by dr a kirtivardhan on January 8, 2012 at 9:00pm — 1 Comment
सपना ---
लंगड़े की बैशाखी,बच्चे का खिलौना,
रेल आई -रेल आई,लेकर दौड़ा छोना |
.
सुख की परिभाषा उस बच्चे से पूछो,
ना खाने को रोटी,ना सोने का बिछोना|
.
खेलता है फिर भी,रुखी रोटी खा,
मांगता नहीं वह कार या खिलौना|
.
देखा है मैंने उसको सपने सजाते,
खुले गगन तले चाहता है वह सोना|
.
धरती से अम्बर उसकी सीमाएं हैं,
देखता है सबको रोटी का वह सपना|
.
.
डॉ अ कीर्तिवर्धन…
Added by dr a kirtivardhan on January 8, 2012 at 8:30pm — 8 Comments
Added by mohinichordia on January 8, 2012 at 8:47am — 8 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 7, 2012 at 11:58pm — 3 Comments
अंदाज़ क्या खूब हैं उनकी नज़रों के या रब,
Added by AjAy Kumar Bohat on January 7, 2012 at 9:00pm — 6 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on January 7, 2012 at 7:00pm — 2 Comments
जब भी तुझको पाने का ख्याल आए |
पाए किस तरह ज़हन में सवाल आए ||
.
छोड़ कर हिया वो आ लगे गले से ,
जब उनसे हम पूछने उनका हाल आए |
.
बिन उनके तो हम बैठे रहें बुझे से ,
उन्हें देख कर सूरत पे…
Added by Nazeel on January 7, 2012 at 12:00pm — 3 Comments
याद आता है
अपना बचपन,
जब हम उड़ान में रहते थे
बेफिक्री के असमान में रहते थे
दिन गुजरता था बदमाशियों में
पर रात अपने ईमान में रहते थे !
याद आता है,
दिन भर तपते सूरज को चिढाना
आंधियो के पीछे भागना
उनसे आगे निकलने की कोशिश करना
जलती तेज हवाओं से हाथ मिलाना,
और फिर ..............
पता ही नही चला कि
कब माँ की कहानियों की गोद से उठकर
हमारी नींद सपनो के आगोश में चली गई !
दिन से अच्छी थी रातें
हमेशा से
और…
Added by Arun Sri on January 7, 2012 at 11:00am — 6 Comments
कमर-तोड़ महंगाई पे,बारम्बार चुनाव!
Added by AVINASH S BAGDE on January 6, 2012 at 7:58pm — 15 Comments
प्यास बुझती नहीं ..
देश था परतंत्र
गुजरे ज़माने की बात है
मुद्दतों बाद तुमसे मुलाकात है.
गुलामी की ज़ंजीर डली थी पाँव मे.
तपती धूप
दोपहरी जेठ की
कौन बैठता था छाओं में.
पर प्यास तो थी
जीभ पर नहीं
ज़हन में…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on January 6, 2012 at 12:00pm — 3 Comments
तुझ बिन जिंदगी हमसे, कुछ ऐसे फिसल रही है ,
ज्यों कतरा कतरा जान, हर दम निकल रही है .
हर आहट पे तू आया, गफलत मुझे सताती ,
ख्वाबों से घायल नींदें , हर पल संभल रही है .
तुझे बेवफा जो कहते, वो लोग हैं बहुत से ,
लोगों को तू दिखा दे, वो वफ़ा मचल रही है .
.
मैं जानता हूँ जानम , तेरी मजबूरियों को ,
तू एक बार आ जा, मेरी…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 5, 2012 at 4:49pm — 3 Comments
मेरे मन !
तुमने अपनी खुशी खो दी ?
मायूस हो गये,
मुर्झा गये ?
किसी ने तुमको झिड़का
या दर्द दिया,
अपमानित, प्रताड़ित किया और
तुमने घुटने टेक दिये, क्यों ?
क्यों किसी की ओछी बातों से ,
अपशब्दों की बौछार से,
कठोर शब्दों के तीरों से
छलनी हो गये ?
कमज़ोर हो गये ?
समझना, वो शब्द
तुम्हारे लिए थे ही नहीं
सिर्फ किसी को अपने
दिल की कड़वाहट निकालने का
माध्यम मिल गया था ।
सुना…
ContinueAdded by mohinichordia on January 4, 2012 at 3:30pm — 7 Comments
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी से प्रभावित होकर मैंने भी छन्न पकैया में कुछ लिखने का प्रयास किया है. मेरी मूल रचना में कुछ कमियाँ थी जो योगराज जी ने सुधारी, योगराज सर आपका बहोत बहोत शुक्रिया. वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !
.
छन्न पकैया , छन्न पकैया , मेहनत की है रोटी,
कहने को युवराज है, लेकिन बाते छोटी-छोटी ||१||
.
छन्न पकैया, छन्न पकैया , खूब बड़ी महंगाई
कुर्सी पे हाकिम जो बैठा , शुतुरमुर्ग है भाई…
ContinueAdded by shashiprakash saini on January 4, 2012 at 2:30pm — 17 Comments
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी द्वारा इस मंच पर लाई गई इस विलुप्तप्राय विधा से प्रेरित हो मैंने भी चरणबद्ध तरीके से एक बेटी से सम्बंधित कटु सत्यों को रेखांकित करने प्रयास किया है ! वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !
छन्न पकैया छन्न पकैया सबकी है मत मारी
सर को पकड़े बैठ गए सुन बेटी की किलकारी
छन्न पकैया छन्न पकैया छीना है हर मौका
छोड़ पढाई नन्ही बेटी, करती चूल्हा चौंका
छन्न पकैया छन्न पकैया जीवन भर…
ContinueAdded by Arun Sri on January 4, 2012 at 2:00pm — 17 Comments
बीते कल का फ़साना
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on January 4, 2012 at 2:00pm — 10 Comments
क्या जलना नहीं आता..?
जो लिखना चाहता था
वो चाहकर लिख न पाया
जो लिखता रहता हूँ
वो दिल को कहाँ भाता
यह मेरी…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on January 4, 2012 at 12:38pm — 9 Comments
कभी-कभी मैं सोचता हूँ की
ये रोटियाँ, रोटियाँ न हो कर
जैसे कोई रबड़ हैं
जो मिटा देती हैं
भूख को,
लेकिन असल समस्या
तो उस कलम की है
जो लिखती जा रही है,
भूख, भूख, भूख.....
मुक़द्दर में तू कैसे-कैसे ईनाम लिखता है
कहीं की सुबह, कहीं की शाम लिखता है |
करूँ तो करूँ कैसे तेरी इनायतों का शुक्रिया
कहाँ-कहाँ की रोटियों पे तू मेरा नाम लिखता है…
Added by AjAy Kumar Bohat on January 3, 2012 at 7:00pm — 10 Comments
सभी सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार. आदरणीय योगराज भईया द्वारा ओ बी ओ में प्रस्तुत विलुप्त प्राय छंद "छन्न पकैया" सचमुच मन को भाता है... तभी से -
.
छन्न पकैया, छन्न पकैया, देख देख ललचाऊं,
छंद सुहावन मनभावन ये, मैं भी कुछ रच पाऊं ||
.…
Added by Sanjay Mishra 'Habib' on January 3, 2012 at 6:30pm — 6 Comments
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