For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सभी सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार. आदरणीय योगराज भईया द्वारा ओ बी ओ में प्रस्तुत विलुप्त प्राय छंद "छन्न पकैया" सचमुच मन को भाता है... तभी से  -

.

छन्न पकैया, छन्न पकैया, देख देख ललचाऊं,

छंद सुहावन मनभावन ये, मैं भी कुछ रच पाऊं ||

.

__________________________________

सादर प्रस्तुत है "छन्न पकैया" पर एक अनगढ़ प्रयास....

__________________________________

छन्न पकैया, छन्न पकैया, पग पग में भरमाये,

अपने घर की राजनीत को, कोई समझ न पाये ||१||

__________________________________

छन्न पकैया, छन्न पकैया, पांच बरस का फेरा,

अमावस्य का कैदी बनकर, तडपा जाय सवेरा ||२||

__________________________________

छन्न पकैया, छन्न पकैया, नाच रही महंगाई,

दिल्ली बैठी ताक रही है, 'श्री - वाहन' की नाईं ||३||

__________________________________

छन्न पकैया, छन्न पकैया, चारा खा धमकायें,

जाने कब खुश हो पाएंगी, पटना की सब गायें ||४||

__________________________________

छन्न पकैया, छन्न पकैया, कितने और तिहाडी.

सभी जुटे हैं आज बचाने, अपनी अपनी बाडी ||५||

__________________________________

छन्न पकैया, छन्न पकैया, हेमचिडा था न्यारा,

पंख सुनहरे तोड़ तोड़ कर, करते सब बँटवारा ||६||

__________________________________

छन्न पकैया, छन्न पकैया, छन्न बजा था चांटा,

रीत पुरातन सीख निकालें, कांटे से अब काँटा ||७||

__________________________________

छन्न पकैया, छन्न पकैया, बूढा एक पुकारे,

सारा भारत साथ खडा हो, अम्बर में ज्यों तारे ||८||

__________________________________

छन्न पकैया, छन्न पकैया, बचे न भ्रष्टाचारी,

दिल्ली की संसद पर भैया, जनसंसद हो भारी ||९||

__________________________________

छन्न पकैया, छन्न पकैया, तीन रंग लहरायें,

विश्व विजयी तिरंगा प्यारा, मिलके सारे गायें ||१०||

__________________________________

______________________________________

- संजय मिश्रा 'हबीब'

Views: 551

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 7, 2012 at 11:39am

भाई हबीब जी, आदरणीय योगराज जी के प्रयास को आपने इस रचना द्वारा बहुत ही आगे बढाया है, कथ्य और शिल्प बहुत ही बढ़िया लगे बधाई स्वीकार करें |

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on January 4, 2012 at 5:12pm

सर्वादरणीय सौरभ भैया जी, मोहिनी जी, योगराज भईया जी, नीरज जी, धरम भाई जी... आप सब की सराहना उत्साह का संचार कर रही है... अत्यंत आभार आदरणीय दादा मुनि जी का इस मनभावन छंद को पुनर्जीवित कर मंच पर प्रस्तुत करने और एक नई धरातल प्रदान करने हेतु....

छन्न पकैया, छन्न पकैया, छन्न छन्न गिरधारी,

अपनी किरपा रखे सभी पर, सरस्वती महतारी ||

जय ओ बी ओ | जय गिरधारी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2012 at 4:20pm

बहुत सुन्दर और सफल प्रयास ! ’छन्न पकैया’ का कलेवर कितना सजा-निखरा है कि कई विन्दु समाहित होते चले गये  हैं. संजय भाई , आपकी रचना विषय-आयाम के कारण मुग्ध करनेवाली तो है ही, यह पद्य रूप के लिहाज से भी गठी हुई है.  इस हेतु विशेष बधाई.

Comment by mohinichordia on January 4, 2012 at 3:25pm

 छन्न-पैकया  की पकड़  घर की राजनीति से देश की राजनीति तक पहुँच गई ,बेटी की किलकारी को भी स्वर मिल गया |बधाई आदर णीय योगराज प्रभाकर जी को ,सभी सदस्यों को इस विधा  से परिचित कराने के लिये |


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 4, 2012 at 11:04am

छन्न पकैया, छन्न पकैया, झूमूँ, नाचूँ, गाऊँ,

संजय भाई हरेक छंद पे, वारी वारी जाऊँ


प्रिय संजय भाई, इस बेहद दिलकश लोक काव्य विधा पर आपको कलम आजमाई करते देख मन झूम झूम जा रहा है. इतनी प्रसन्नता हो रही है कि ब्यान नहीं कर पा रहा हूँ. विश्वास करें कि मैं एक एक छंद को कई कई बार पढ़ चुका हूँ, लेकिन दिल नहीं भर रहा. आपने जिस संजीदगी से विभिन्न विषयों पर छंद कहे हैं वह अपनी मिसाल आप हैं. दरअसल इस मृतप्राय: विधा को यदि नवजीवन देना है तो ऐसे ही संजीदा प्रयासों की आवश्यकता होगी. १० छंदों में १० अलग अलग रंग और कलेवर लेकर आपनी बात को कहना आपनी प्रौढ़ साहित्यक सोच का परिचायक है. मैं इस सद्प्रयास के आपने तह-ए-दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ.

Comment by धर्मेन्द्र शर्मा on January 3, 2012 at 8:21pm

आदरणीय संजय मिश्रा हबीब जी, आपके इन छन्न पकैया ने तो कमाल कर दिया. एक से बढ़ कर एक. चाहे दूषित राजनीति हो, कुत्सित मानसिकता हो या फिर बढती महंगाई....सभी को अपनी चपेट में ले गयी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये मित्र. जय गिरधारी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
11 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
11 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service