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July 2013 Blog Posts (255)

ग़ज़ल एक कोशिश

ग़ज़ल एक कोशिश



ख्वाब दिखाकर दिलबर गायब है

रातो का वो मंज़र गायब है।।



जिसमे डूबी चाहत की किस्ती।

यारो एक समन्दर गायब है।।



खटकाता किसकी कुंडी मैं अब।

देखा जब उसका घर गायब है।।



पेट भरे वो सबका फिर भी उस।

दाता का ही लंगर गायब है।।



कापा जिस्म मिरा रातो में तब।

देखा उठ कर चादर गायब है।।



करके एक दुवा देखी मैंने।

भगवान तिरा मंदर गायब है।।



कर देता घायल मन को…

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Added by Ketan Parmar on July 10, 2013 at 1:52pm — 9 Comments

नवगीत (राजेश कुमार झा)

इक औरत सी तन्‍हाई को

जब यादें कंधा देती हैं

दीर्घ श्‍वांस की

चंड मथानी

मथ जाती

देह-दलानों को

टूटे प्‍याले

रोज पूछते

कम-ज्‍यादा

मयखानों को

गलते हैं हिमखण्‍ड कई पर

धारा कहां निकलती है

नि:शब्‍द सुलगती

रात पसरती

उष्‍ण रोध दे

प्राणों को

कौन रिफूगर

टांक सकेगा

इन चिथड़े

अरमानों को

कैसे पाउं मंजिल ही जब

पल-पल जगह बदलती…

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Added by राजेश 'मृदु' on July 10, 2013 at 1:24pm — 23 Comments

अब तुम्हारे बिना ये सूना सफ़र निभाया नहीं जाता।

ये दर्द कुछ ऐसा है,जो सबको बताया नहीं जाता।

ये ग़म कुछ ऐसा है,जो सबको सुनाया नहीं जाता।

ज़िन्दगी तेरा साथ अब तक बहुत निभाया हमने,

पर अब हमसे यह साथ और निभाया नहीं जाता।

हर ज़ख्म पर रोने की जगह हँसते रहे हम उम्र भर,

पर अब हमसे बेवजह और मुस्कराया नहीं जाता।

छोटी -छोटी खुशियाँ ही तो मांगीं थी तुझसे  हमने,

पर दर्द मिला जो इस दिल में समाया नहीं जाता।

 हर वक़्त सही नाउम्मीदी,नाकामी और बेबसी,

पर अब तुझसे अपना मज़ाक उड़वाया नहीं जाता।

सपने देखकर हमने भी…

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Added by Savitri Rathore on July 10, 2013 at 1:06pm — 9 Comments

मेरे सीने में तेरी जुदाई का गम [नज़्म ]

मेरे सीने में तेरी जुदाई का गम ।

मुझको जीने न दे बेवफाई का गम ।

बदले दुआ के दगा दे गये ।

मोहब्बत की ऐसी सजा दे गये ।

कोई जाकर उन्हें ये बताये ज़रा ,

क्या माँगा था हमने वो क्या दे गये ।

ये हाल दिल का मै किस से कहूँ ,

कौन समझेगा दिल की दुहाई का गम ।

मेरे टूटे दिल की वफ़ा के लिए ।

इन धडकनों की सदा के लिए ।

तुझको कसम है कि मिलने मुझे ,

बस एक बार आजा खुदा के लिए ।

जिसको मिला…

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Added by Neeraj Nishchal on July 10, 2013 at 11:12am — 16 Comments

कुण्डलिया छंद

बरखा रानी आ गई ,लेकर बदरा श्याम |

धरा आज है पी रही ,भर भर घट के जाम|| 

भर भर घट के जाम ,हो रही धरा है तृप्त |

पानी हुआ तुषार, हो रही ग्रीष्म है लुप्त ||

लोग हुए खुशहाल ,चला जीवन का चरखा |

बच्चे  ख़ुशी मनात , मेघा ले आय बरखा ||

|............................|

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Sarita Bhatia on July 10, 2013 at 9:00am — 17 Comments

!!! जीव-प्रकृति से प्यार करें !!!

जीव-प्रकृति से प्यार करें,

बनकर धरा हितेश!

पहाड़ों की शिखाओं पर

हरियाली से केश

कुछ घुंघराले

कुछ लट वाले

कुछ तने-तने रेश।1

बहे पवन पुरवाई या

पछुवा चले बयार

इठलाती औ

बलखाती ज्यों

झूमें मस्त दिनेश।2

गूंजें वन में कलरव धुन

ठुमरी औ मल्हार

नृत्य उर्वशी

रम्भा करती

किरने अर्जुन वेश।3

तितली-भौरें-पाखी-जन

करें सुमन से नेह

चूम-चूम तन

कण पराग मन

मिटे तमस औ…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 10, 2013 at 8:20am — 14 Comments

गीतिका ~

चेहरे पर चेहरे जड़े हैं,

अक्स लोगों से बड़े हैं !

खो गई पहचान जब से 
जहाँ थे अब तक खड़े हैं !

अभी फूलों मे महक है 

इम्तहां आगे कड़े हैं !

ठोकरों से दोस्ती है ?
राह मे पत्थर पड़े हैं !

इन्हें कुछ कहना नहीं 
दर्द हैं ,चिकने घड़े हैं !
_______________प्रो. विश्वम्भर शुक्ल 

(मौलिक और अप्रकाशित )

Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 9, 2013 at 9:30pm — 13 Comments

प्रिय तुम ही

सूरज की रश्मियों मे ,

चमक बन के रहते हो ।

जाग्रत करते सुप्त मन प्राण ,

सुवर्ण सा दमके  तन मन । 

चन्द्रमा की शीतलता मे ,

धवल मद्धम चाँदनी से तुम,

अमलिन मुख प्रशांत हो ।

सागर से गहरे हो तुम ,

कितना कुछ समा लेते हो ।

नूतन पथ के साथी ,

जीवन तरंगो के स्वामी ।

मन हिंडोल के बीच ,

सिर्फ तुम किलोल कालिंदी । .

सुनो प्रिय तुम ही ,

तुम ही .....प्रिय तुम ही ।..... अन्नपूर्णा…

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Added by annapurna bajpai on July 9, 2013 at 8:30pm — 9 Comments

टूटते रिश्तों की किरचें

 

टूटे रिश्तों की किरचियाँ ,

कभी जुड़ नहीं पातीं ,

शायद कोई जादू की छड़ी ,

जोड़ पाती ये किरचियाँ ।

.

ये चुभ कर निकाल देतीं हैं ,

दो बूंद रक्त की , और अधिक

चुभन के साथ बढ़ जाती है ,

पीड़ा न दिखाई देती हैं ।

.

चुप रह कर सह जाती हूँ ,

आँख मूँद कर देख लेती हूँ ,

शायद कोई प्यारी सी झप्पी ,

मिटा पाती ये दूरियाँ। .... अन्नपूर्णा बाजपेई

 

 

अप्रकाशित एवं मौलिक

Added by annapurna bajpai on July 9, 2013 at 8:30pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
रोज शोलों में झुलसती तितलियाँ हम देखते हैं (ग़ज़ल "राज")

रोज शोलों में झुलसती तितलियाँ हम देखते हैं (ग़ज़ल "राज")

२ १ २ २  २ १ २ २  २ १ २ २  २ १ २ २ 

बहर ----रमल मुसम्मन सालिम

 रदीफ़ --हम देखते हैं 

काफिया-- इयाँ 

आज क्या-क्या जिंदगी के दरमियाँ हम देखते हैं 

जश्ने हशमत या मुसल्सल  पस्तियाँ हम देखते हैं 

 

खो गए हैं  ख़्वाब के वो सब जजीरे तीरगी में 

गर्दिशों  में डगमगाती कश्तियाँ हम देखते हैं 

 

ख़ुश्क हैं पत्ते यहाँ अब यास में…

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Added by rajesh kumari on July 9, 2013 at 5:30pm — 40 Comments

उनको शत-शत नमन

उन शहीदों को मेरा

सलाम है सलाम

जाँ बचाते-बचाते

दे गए अपनी जान

नाज करते हैं हम

उनके जज्बात पर

देश के मान पर

तिरंगे के सम्मान पर

जाँ बचाते रहे

बेखौफ हो निडर

एक जिद थी कि

ज्यादा से ज्याद

बचाते रहें

नेक था इरादा

काम नेक था

विधाता ने लिखा पर

कुछ और लेख था

मौत जीती मगर

हो गए वो अमर

उनको शत-शत नमन

मौलिक व अप्रकाशित

 

Added by Pragya Srivastava on July 9, 2013 at 4:30pm — 7 Comments

रोया है कोई … नवगीत /वेदिका

घास का इक नर्म 

बिछौना बनाकर 

ओढ़ कर नीले  

गगन की सर्द चादर 

सोया है कोई …

ओस बिखरी है जो 

हरी हरी घास पर 

साँस भर भर आई 

हर साँस पर 

रोया है कोई …. 

कहीं पुरवाइयों में 

ओस की रुलाइयों में 

चूड़ियों सा चटका है 

टूटा, मेरी कलाईयों में 

बिखरा है कोई …

गर्म लहू जमा वह 

या ठंडी बरसात है 

कुहासे का झाग 

या तो चीख की आग

भिगोया है कोई…

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Added by वेदिका on July 9, 2013 at 3:30pm — 30 Comments

ज्ञानचक्षु

कितना  ही  पास हो  मृत्यु-मुखद्वार

सीमित सोचों के दायरों में गिरफ़्तार,

बंदी रहता है प्रकृत मानव आद्यंत ...

इर्ष्या, काम, क्रोध, मोह और लोभ,

राग और द्वेष

रहते  हैं  यंत्रवत  यह  नक्षत्र-से  आस-पास,

प्रक्रिया में बन जाते हैं यह मानव-प्रकृति,

विकृतियों में व्यस्त, मिलती नहीं मुक्ति।

 

अहंमन्यता के अंधेरे कुँए में निवासित

अभिमान-ग्रस्त मानव संचित करे भंडार,

कुएँ  की  परिधि  में  वह  मेंढक-सा  सोचे

‘कितना विशाल…

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Added by vijay nikore on July 9, 2013 at 12:30pm — 16 Comments

चुरा लेता है दिल सबका [गीत]

चुरा लेता है दिल सबका ,

बड़ा चित चोर है मोहन ।

कि हर जर्रे में बसता है ,

नही किस ओर है मोहन ।

निगाहोँ में भरा हो जब ,

प्रभू के प्रेम का प्याला ।

दिखायी हर जगह देगा ,

तुम्हे वो बांसुरी वाला ।

हर सच्चे दीवाने को

यही महसूस होता है ,

है छाया हर जगह उसकी

बसा हर ठौर है मोहन ।

न दौलत का वो भूखा है ,

न रिश्वत से ही बिकता है ।

हमारी आँख का तारा ,

मोहब्बत से ही बिकता है ।

ज़माना कुछ…

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Added by Neeraj Nishchal on July 9, 2013 at 11:44am — 18 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल लिखने का प्रयास



तसव्वुर जिसका देखा मैंने, हाँ तुम बिल्कुल वैसी हो॥

रात पूनम, महताब जैसी, हाँ तुम बिल्कुल वैसी हो॥



ऐसी ज़ुल्फ़ की छांव जैसे, घटा हों काली…

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Added by Abhishek Kumar Jha Abhi on July 9, 2013 at 10:30am — 6 Comments

प्यार के तट पर काई बहुत है

प्यार के तट पर काई बहुत है 
इसमें आगे गहराई बहुत है  
महफ़िल में रहने वालों को 
इक पल की तनहाई बहुत है 
नकली सिक्कों के बाज़ार में 
असली इक- इक पाई बहुत है 
4
कैसे रचे मेहँदी हांथों में 
किस्मत में अंगडाई बहुत है 
5
दिल का ज़रुरत क्या पत्थर की 
इसके लिए इक राई बहुत  है 
6
" अजय "न…
Continue

Added by ajay sharma on July 9, 2013 at 12:00am — 4 Comments

स्नेह सुधा बरसाओ मेघा//नवगीत//

स्नेह सुधा बरसाओ मेघा,

व्याकुल हुआ तरसता मन।

 

रिश्तों की जो बेलें सूखीं,

कर दो फिर से हरी भरी।

मन आँगन में पड़ी दरारें,

घन बरसो, हो जाय तरी।

सिंचित हो जीवन की धरती।

ले आओ ऐसा सावन।

 

दूर दिलों से बसी बस्तियाँ,

भाव शून्यता गहराई।

सरस सुमन निष्प्राण हो गए

नागफनी ऐसी…

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Added by कल्पना रामानी on July 8, 2013 at 11:00pm — 14 Comments

गज़ल

२   २  १  २     २  २  १  २       २  २  १  २

नायक या खलनायक उसे किस खाते लिखूं  

या भटकी लाली के संग उस को जाते लिखूं

 

जिस  को  खुदा  माना  कभी हम ने दोस्त

दीया कोई  उस की चोखट पर जलाते लिखूं

गा  कोई तुम नगमा सुरीला सा मेरे  दिल

तुझ  को  करीब  पाऊं  लोरी सुनाते लिखूं

वो छोड़ गया जो मुझ को इस भंवर में अब

अब तुम बता मुझको अपना किस नाते लिखूं

 

उस का करें किस बात पै हम यकीं मोहन ,

करते …

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Added by मोहन बेगोवाल on July 8, 2013 at 11:00pm — 5 Comments

नवगीत/ फूटी गागर

मन भौंरे सा आकुल है

तुम चंपा का फूल हुई

मैं चकोर सा तकता हूँ

तुम चंदा सी दूर हूई

 

जब पतझड़ में मेघ दिखा

तब यह पत्ता अकुलाया

ज्यों टूटा वो डाली से

हवा उसे ले दूर उड़ी

 

तपती बंजर धरती सा

बूँद बूँद को मन तरसा

जितना चलकर आता हूँ

यह मरीचिका खूब छली

 

सपन सरीखा है छलता

भान क्षितिज का यह मेरा

पनघट पर जल भरने जो

लाई गागर, थी फूटी

              - बृजेश…

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Added by बृजेश नीरज on July 8, 2013 at 10:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल : ख़ुदा को मस्जिद में पा गया जो वो दौड़ मयखाने जा रहा है

बहर : १२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२

-----------------

नहीं मिला जो जहाँ में जिसको वही उसे खींचता रहा है

ख़ुदा को मस्जिद में पा गया जो वो दौड़ मयखाने जा रहा है

 

वो जिसने माँगी थी सीट मुझसे ये कहके ईश्वर भला करेगा

जरा सा आराम पा गया तो मुझी को अब वो भगा रहा है

 

दवा से जो ठीक हो रहा था उसे पिलाया पवित्र पानी

जो दिन में अच्छा भला था कल तक वो रात भर चीखता रहा है  

 

ख़ुदा का घर सब जिसे समझते वहीं हजारों हुये लापता

बने…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 8, 2013 at 10:07pm — 3 Comments

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