For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल एक कोशिश

ख्वाब दिखाकर दिलबर गायब है
रातो का वो मंज़र गायब है।।

जिसमे डूबी चाहत की किस्ती।
यारो एक समन्दर गायब है।।

खटकाता किसकी कुंडी मैं अब।
देखा जब उसका घर गायब है।।

पेट भरे वो सबका फिर भी उस।
दाता का ही लंगर गायब है।।

कापा जिस्म मिरा रातो में तब।
देखा उठ कर चादर गायब है।।

करके एक दुवा देखी मैंने।
भगवान तिरा मंदर गायब है।।

कर देता घायल मन को मेरे।
वार किया वो खंज़र गायब है।।

"केतन " ढुंढ़े उसको जग सारा।
बाहर मैं, वो अन्दर गायब है।।

$$@@अनजान केतन@@$$

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 679

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ketan Parmar on July 12, 2013 at 2:19pm

Sukriyaa Sir ji

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 12, 2013 at 9:23am

ओपन बुक्स ओंन लाइन एक ऐसा मंच मिला है जहाँ वाकई में हम सब को सीखने का मौका मिल रहा है ..आदरनीय सौरभ जी, बागी जी और वीनस जी सभी का सहयोग और मार्गदर्शनहम सबको सतत मिल रहा है  .किसी की उजागर की गयी कमियां रचनाकार के साथ पाठकों के लिए भी बेहद उपयोगी हैं ...........आपका प्रयास काबिले तारीफ़ है ..हार्दिक बधाई के साथ ..

Comment by Ketan Parmar on July 11, 2013 at 7:11pm

Uprokt ghazal ka matra bhar hai 22 22 22 22 2

Comment by Ketan Parmar on July 11, 2013 at 7:11pm

Bilkul sir ji sukriya

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2013 at 3:37pm

केतन भाई जी प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें और श्री सौरभ सर जी कहे पर सज्ञान करें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2013 at 3:28pm

इस प्रयास के लिए शुभकामनाएँ.

हिन्दी शब्दों की अक्षरियों में अन्यथा परिवर्तन उचित नहीं.  जहाँ मात्राएँ गिरानी होगी पाठक तदनुरूप गिरा कर मिसरे को समझ लेंगे.

आपने नौ ग़ाफ़ के मिसरों का अपनी प्रस्तुत ग़ज़ल में प्रयोग किया है लेकिन उचित होगा कि आप ग़ज़ल को अपलोड करने के साथ उसके मिसरों का वज़्न भी स्पष्ट कर दिया करें. 

सधन्यवाद

Comment by Ketan Parmar on July 11, 2013 at 1:14pm

गॉदान, प्रेमचन्द जी की रचना है उससे प्रेरित हो कर कहने की कोशिश की है
आशा है सभी मित्रो गुरुजानो को पसंद आएगी।

आपके आशीर्वाद का  इंतज़ार होगा 

Comment by Ketan Parmar on July 11, 2013 at 1:03pm

वीनस केसरी ji

Saadar sweekare aur bhi kuch sujhav denge toh khushi hogi sir ji taki aur nikhar aa sake

Comment by वीनस केसरी on July 11, 2013 at 11:36am

बहुत खूब केतन साहब मंजरकशी में आप सफल रहे ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service