टूटे रिश्तों की किरचियाँ ,
कभी जुड़ नहीं पातीं ,
शायद कोई जादू की छड़ी ,
जोड़ पाती ये किरचियाँ ।
.
ये चुभ कर निकाल देतीं हैं ,
दो बूंद रक्त की , और अधिक
चुभन के साथ बढ़ जाती है ,
पीड़ा न दिखाई देती हैं ।
.
चुप रह कर सह जाती हूँ ,
आँख मूँद कर देख लेती हूँ ,
शायद कोई प्यारी सी झप्पी ,
मिटा पाती ये दूरियाँ। .... अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीया अन्नपूर्णाजी, आपकी रचना आत्माभिव्यक्ति शैली में अंतर्सम्बन्धों की व्यथा को साझा करती है.
सादर बधाई स्वीकारें.
आदरणीया यदि जादू की झड़ी होती तो मानव न जाने और क्या क्या करता अच्छा है कि जादू की झड़ी नहीं है. बहरहाल प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीया अनुपमा जी, सच है एक बार दरार पड़ जाने पर रिश्तों को वापस जोड़ना असम्भवं ही है इसलिए इन्हैं टूटने से बचाना ही एक उपाय है !
रिश्तों का सही चित्रण !
आ० अन्नपूर्णा जी
टूटे रिश्तों की चुभती किरचियों की पीड़ा.... सच में कोइ झप्पी होती इन्हें फिर जोड़ , दूरियां मुता देने के लिए
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई
दरकते रिश्तों पर आपके उद्गार काफी सुंदर हैं, ये भीतर तक पैठती है, झकझोरती हैं और बड़ी देर तक गूंजती हैं, सादर
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