For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

April 2013 Blog Posts (245)

माँ की सीख -पापा के संस्कार

माँ की सीख पापा के संस्कार

फँसी रहती हूँ इनमें मैं बारम्बार

माँ ने सिखाया था – पति को भगवान मानना

पापा ने समझाया था – गलत बात किसी की न सुनना

 

माँ ने कहा - कितनी भी आधुनिक हो जाना

पर अपने परिजनों का तुम पूरा ख्याल रखना

पढ़लिख आधुनिक बनकर रूढीवादी न बनना

और पुरानी परम्पराओं का भी तुम ख्याल करना......

 

पापा ने बताया - भारतीय संस्कृति बहुत अच्छी है

पर इसकी कुछ मान्यताएं बहुत खोखली हैं

बेटे-बेटी में भेदभाव बहुत…

Continue

Added by vijayashree on April 5, 2013 at 3:30pm — 17 Comments

अंतिम स्पंदन

                 अंतिम स्पंदन

   यदि मैं अर्पित करता भी स्नेह

   उमड़ता रहा है जो मन में मेरे

   क्षण-अनुक्षण तुम्हारे लिए,

   कोई अंतरित ध्वनि कह देती है..कि

   स्नेह  इतना  तुम  सह  ही  न  सकती,

   और फिर द्वार तुम्हारे से लौट आए

  …

Continue

Added by vijay nikore on April 5, 2013 at 1:41pm — 34 Comments

"दोहे "

कबहुँ सुखी क्या आलसी, ज्ञानी कब निद्रालु ?

वैरागी लोभी नहीं, हिंसक नहीं दयालु!! १



शक्ति क्षीण करते सदा, यदि अवगुण हों पास

दुर्गुण रहित चरित्र में, होता शक्ति निवास!!२

गुरुता का व्यवहार ही, गुरु को करे महान

पूजनीय औ श्रेष्ठ जो, पायें खुद सम्मान!!३

नैतिकता सद्चरित का, जिसमें पूर्ण अभाव

दयाहीन उस मनुज के, रहें मलिन ही भाव!!४

अवगुण निज में देखिये, रख सद्गुण पहचान

त्रुटियों से जो सीख ले, जग में वही…

Continue

Added by ram shiromani pathak on April 5, 2013 at 12:30pm — 19 Comments

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें- तृतीय खंड (2)

तृतीय  खंड 

पाठक के लिए: 

हमारे काव्य नायक 'ज्ञानी' की पर्वचन  श्रृंखला  जारी है। ज्ञानी का लक्ष्य मानवीय अनुभूति से उपजे ज्ञान को जन मानस तक पहुँचाना। प्रस्तुत खंड में वह गंगा उत्पुति की कथा बयान कर रहा है। गंगा की उत्पुति विष्णु हृदय से मानी जाती है। वह विष्णु हृदय क्या है - ज्ञानी इस की विवेचना के लिए प्रयतन रत है।
प्रस्तुत कथा और इस का…
Continue

Added by Dr. Swaran J. Omcawr on April 5, 2013 at 11:39am — 14 Comments

!!! मासूम सा बच्चा !!!

!!! मासूम सा बच्चा !!!



जाति-पाति और औकात नहीं!

माँ से बिछड़ा-बाप से बिछड़ा

जन-समाज ने पुचकारा नहीं !

दुनिया देख रहा अब बच्चा !

हिन्दू न मुस्लिम बिलकुल सच्चा!

जिसको देखता उसको लुभाता,

लगता जैसे अपना बच्चा !

मंदिर का घंटा ज्यो बजता,

दौड़ चहेक कर आता बच्चा !

मस्जिद की आजान को सुनकर,

रोज फूक डलवाता बच्चा!

हरी शर्ट-केसरिया नेकर,

नंगे पैर ठुमकता बच्चा !

मंदिर का प्रसाद और हलुवा,

गुरूद्वारे में लंगर चखता !

मस्जिद की मिलाद में…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 5, 2013 at 10:24am — 20 Comments

राना (कनाडा) होली मिलन समारोह सम्पन्न

राजस्थान एसोसियेशन आफ़ नार्थ अमेरिका (राना कनाडा) तथा विश्व हिंदी संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में रविवार, दिनांक ३१ मार्च, २०१३ को स्थानीय भारत माता मंदिर, गोर रोड़, ब्रेम्प्टन, कनाडा में धूम-धाम से होली का पर्व मनाया गया। लगभग २०० सदस्यों की उपस्थिती में रंगों की बौछार, होली गीतों की झंकार और ’होली है’ की हुंकार से सारा वातावरण होलीमय हो गया।

लगभग ५ घंटे चले इस होली कार्यक्रम का प्रारंभन स्नैक्स व ठंडाई से हुआ। होली गीत, चुटकुले तथा एक-दूसरे को रंगों से सराबोर करने की होड़ ने…

Continue

Added by Prof. Saran Ghai on April 5, 2013 at 7:47am — 4 Comments

ग़ज़ल- "न पीपल की छाया, न पोखर दिखे!"

बह्रे मुतक़ारिब मुसम्मन महज़ूफ़

122/122/122/12

***********************

न पीपल की छाया, न पोखर दिखे;

मेरे गाँव के खेत बंजर दिखे; (1)

हैं शुअरा जहाँ में बड़े नामवर,…

Continue

Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 5, 2013 at 2:00am — 14 Comments

क्या जीवन है/हाइकू (प्रयास)

बालू का स्थल
जालाभास रश्मि से
तपती प्यास
------------------

प्रीति सुमन
नागफनी का बाग
व्यर्थ खोजना
------------------

तृप्ति कामना
घी दहकाए ज्वाला
पूर्ति आहुति
-------------------

जीवन यात्रा
हर क्षण रहस्य
रोना या गाना
-------------------
गन्तव्य कहाँ!
लमकन जारी है
क्या जीवन है?
-विन्दु (मौलिक,अप्रकाशित)

Added by Vindu Babu on April 4, 2013 at 11:54pm — 17 Comments

कथा......‘‘जो ध्यावे फल पावे सुख लाये तेरो नाम...........।‘‘

गतांक...2 से आगे--   आज दिवाली का दिन था। घर के सभी लोग चिंतित और अस्त-व्यस्त से बेहाल हो चुके। मेरे मुहल्ले के लोगों का तांता मेरे घर एवं अस्पताल में मेरी शैया के इर्द-गिर्द लगा हुआ था। मेरे मिलने वालों से डाक्टर और नर्स भी काफी परेशान हो थक चुके थे। अब तक इन लोगों ने मेरे रिश्तेदारों एवं मिलने वालों से एक सामंजस्य सा बिठा लिया था। नवम्बर मास का समय और सायं के 6.00 बज रहे थे। किसी को भी आज अमावस्या के दिन घरों में दीप जलाने की कोई चिन्ता नहीं हो रही थी। मेरे बार-बार कहने पर भी लोगो ने जबाब…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 9:15pm — 8 Comments

अक्षर का संसार

कभी कभी शब्द आकार नहीं लेते

और मैं बह जाती हूँ अक्षरों में

सुनो ध्यान से ये क्या कहते है ?

खामोश हैं ???

नहीं इनमे कलकल का नाद…

Continue

Added by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on April 4, 2013 at 8:36pm — 9 Comments

माँ का दर्द

Continue

Added by vijayashree on April 4, 2013 at 7:00pm — 15 Comments

खुशबू ............

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 29 में प्रस्तुत गीत का सस्वर गायन ..........सीमा …

Continue

Added by seema agrawal on April 4, 2013 at 5:00pm — 8 Comments

दाइज ऐसा देना बाबुल

दाइज ऐसा देना बाबुल

जिससे तन-मन जले नहीं

दर्द-वेदना के सिक्‍कों से

जो बेबस हो तुले नहीं

ना गुलाब की कलियां न्‍यारी

स्‍वर्णहार ना चूड़मणि

नहीं मुलायम गद्दी, सोफे

नहीं रेशमी लाश बुनी

देना बाबुल ऐसा ताला

जो बुद्धि पर लगे नहीं

अम्‍लान रूढि़यों की ठोकर से

जो बेदम हो खुले नहीं

लाड़-प्‍यार चाहे ना देना

ना लेना मेरी पोथी

जनमजली ना करना मुझको

शिक्षा बिन सब हैं रोती

देना…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on April 4, 2013 at 4:24pm — 9 Comments

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें- तृतीय खंड (1)

 तृतीय  खंड 

पाठक के लिए: 

हमारे काव्य नायक 'ज्ञानी' की पर्वचन  श्रृंखला  जारी है। ज्ञानी का लक्ष्य मानवीय अनुभूति से उपजे ज्ञान को जन मानस तक पहुँचाना। प्रस्तुत खंड में वह गंगा उत्पुति की कथा बयान कर रहा है। गंगा की उत्पुति विष्णु हृदय से मानी जाती है। वह विष्णु हृदय क्या है - ज्ञानी इस की विवेचना के लिए प्रयतन रत है।
प्रस्तुत कथा और इस का ऐसा पठन शायद किसी और…
Continue

Added by Dr. Swaran J. Omcawr on April 4, 2013 at 4:23pm — 11 Comments

अतुकान्त

गद्य के खंड रचे

प्रवाह भर भर के

इतना प्रवाह के

कविता टिक न सकी

पल भर को

उड़ गयी कहीं दूर

बहुत दूर

कवियों की खोज मे



और लेखक इतराता है

अतुकान्त का बोध कराता

स्वयं को

गुपचुप मुस्काता

सोचता है

कौन जानता है

कविता का आंतरिक सौंदर्य

बाहरी परिवेश

इंफ्रास्ट्रकचर ठीक

मतलब सब ठीक

अंदर जा के

किसको क्या मिला है

लय छन्द ताल

व्यर्थ हैं भाव के बिना

फिर एक मुस्कान भरता है

देखा हो गया न…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 4, 2013 at 2:09pm — 10 Comments

फाग का महीना. ( मनहरण घनाक्षरी पर एक प्रयास)

ढाक अमलतास पे, आ गयी बहार देखो,

सेमर भी कुसुमित, फाग का महीना है |

 

सारे रंग लाल-लाल, फूलों पर दिखाई दें,

कुहु-कुहू कोयल की, राग का महीना है |

 

सूरज का ताप तन, बदन झुलसायेगा,

तपन दहन…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on April 4, 2013 at 2:00pm — 16 Comments

दोहे एक प्रयास

नयन झुकाए मोहिनी, मंद मंद मुस्काय ।

  रूप अनोखा देखके, दर्पण भी शर्माय ।।

नयन चलाते छूरियां, नयन चलाते बाण ।

नयनन की भाषा कठिन, नयन क्षीर आषाण ।।

दो नैना हर मर्तबा, छीन गए सुख चैन ।…

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on April 4, 2013 at 12:30pm — 17 Comments

वक़्त बदल देता है दिल की भावनाओ को भी

वक़्त बहता रहा

कभी पानी की तरह

कभी हवा के मानिद

हम भी बहते रहे बहाव में इसके  

कभी फूल बनकर

कभी धूल बनकर .....

कब जिदगी के उस छोर से हम

इस छोर पर आ गये…

Continue

Added by Sonam Saini on April 4, 2013 at 11:30am — 7 Comments

आकाशीय बिजली !!!

आकाशीय बिजली !!!

 

लप-लप चमकि-चमकि

रहि रहि कुलेल करत

इत उत धावति बदरा मा

कड़क-कड़क कर

मेघ धमकावत।

बालक-नारि हृदय धड़कावत

बालक जायें छिपे अंचरा मा।

नारि मन धक-धक, रहा न जाये

पाए सहारा और अपनापन

छटपटाय झट गले लगावत।

आंखें मींच लई जोरों से

कसमसात और लजावति।

बिजुरी तनिक समझि न पावति,

गिरत-पड़त छपकि-छपकि

लाज-शर्म न झपकि-झपकि।

नयनों से ज्यों तीर चलावति

सर सर सर सर सरर…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 10:01am — 12 Comments

शादी से पहले – शादी के बाद

प्रो. सरन घई, संपादक – “प्रयास”, संस्थापक, विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा

 

शादी से पहले हमको कहते थे सब आवारा,

शादी हुई तो वो ही कहने लगे बेचारा।

 

कुछ हाल यों हुआ है शादी के बाद मेरा,

जैसे गिरा फ़लक से टूटा हुआ सितारा।

 

सब लोग पूछते हैं दिखता हूँ क्यों दुखी मैं,

कैसे बताऊँ उनको, बीवी ने फिर है मारा।

 

शादी हुई है जब से, तब से ये हाल मेरा,

जिस ओर खेता नैया, खो जाता वो किनारा।

 

फिरता था तितलियों…

Continue

Added by Prof. Saran Ghai on April 4, 2013 at 1:07am — 9 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service