For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्रे मुतक़ारिब मुसम्मन महज़ूफ़
122/122/122/12
***********************
न पीपल की छाया, न पोखर दिखे;
मेरे गाँव के खेत बंजर दिखे; (1)
हैं शुअरा जहाँ में बड़े नामवर,
मगर कब 'असद' सा सुख़नवर दिखे;(2)
कहूँ क्या मैं मा'शर की हालत हुई,
ज़ुबां पर ख़ुदा हाथ ख़ंजर दिखे;(3)
जो मज्लिस में तल्क़ीन दें सब्र की,
वो गोशे में आपे से बाहर दिखे;(4)
न मिल पाया बंदा कोई काम का,
जो लफ़्फ़ाज़ ढूँढ़े सरासर दिखे;(5)
लहू से रही सुर्ख़ बरसों ज़मीं,
ज़रा अब तो कश्मीरी केसर दिखे;(6)
बदल जाए ये बेख़ुदी होश में,
इक अर्सा हुआ तल्ख़ तेवर दिखे;(7)
बदन पर कफ़न सी सफ़ेदी न हो,
तेरे पाँव में फिर महावर दिखे; (8)
कड़ी धूप में वो निखरने लगा,
पसीना है मेहनत का ज़ेवर दिखे;(9)
वतन का भला हो मुक़र्रर तभी,
तरक़्क़ी जो हर सू बराबर दिखे; (10)
तमन्ना है 'वाहिद' मेरी बस यही,
मकां-रोटी सबको मयस्सर दिखे;(11)
***********************

  • वाहिद काशीवासी

   {16032013}
-------------------------------------
मा'शर=मित्रमंडली; तल्क़ीन=सदुपदेश/नसीहत;

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 898

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 15, 2013 at 7:42pm

आदरणीय सौरभ जी,

सादर प्रणाम! ग़ज़ल को आपकी पारखी नज़रों का अनुमोदन प्राप्त हुआ, आह्लादित हूँ! सादर,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 15, 2013 at 7:40pm

भाई  संदीप 'दीप' जी,

आपने सराहा मेरा मान बढ़ा! आपका हार्दिक धन्यवाद! :-)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 14, 2013 at 10:13am

पूरी ग़ज़ल एक संवेदनशील हृदय की व्यक्त हुई आह सी सामने आती है.

फिर भी इन अश’आर को बार-बार उद्धृत करना चाहूँगा.

न पीपल की छाया, न पोखर दिखे;
मेरे गाँव के खेत बंजर दिखे; (1)

जो मज्लिस में तल्क़ीन दें सब्र की,
वो गोशे में आपे से बाहर दिखे;(4)

लहू से रही सुर्ख़ बरसों ज़मीं,
ज़रा अब तो कश्मीरी केसर दिखे;(6)

कड़ी धूप में वो निखरने लगा,
पसीना है मेहनत का ज़ेवर दिखे;(9)
वतन का भला हो मुक़र्रर तभी,
तरक़्क़ी जो हर सू बराबर दिखे; (10)
तमन्ना है 'वाहिद' मेरी बस यही,
मकां-रोटी सबको मयस्सर दिखे;(11)

बहुत-बहुत बधाई संदीप भाईजी.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 11, 2013 at 9:06pm

वाह वाह आदरणीय संदीप भाई सादर 

बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है 

हर इक शेर पे दाद क़ुबूल कीजिये 

 इस अशआर पर विशेष दाद कुबूलें 

 कड़ी धूप में वो निखरने लगा,
पसीना है मेहनत का ज़ेवर दिखे;

जय हो 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 10, 2013 at 1:18pm

हार्दिक आभार एवं कृतज्ञता प्रकट करता हूँ आदरणीय भ्रमर जी! आपसे तो सदैव ही मार्गदर्शन एवं सहयोग प्राप्त होता रहता है! सादर,

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 10, 2013 at 12:00am

बदन पर कफ़न सी सफ़ेदी न हो,
तेरे पाँव में फिर महावर दिखे; (8)
कड़ी धूप में वो निखरने लगा,
पसीना है मेहनत का ज़ेवर दिखे;(9)
वतन का भला हो मुक़र्रर तभी,
तरक़्क़ी जो हर सू बराबर दिखे; (

प्रिय वाहिद काशी वासी भाई जी आप की रचनाओं के।। छंदों के गजलों के क्लिष्ट शब्दों को समझने में ताकत तो बड़ी लगती है लेकिन ईर्ष्या भी होती है साथ साथ आनंद भी फिर भोले बाबा की कृपा आप पर यों ही बनी रहे तो हम भी सीखते ही रहें कुछ उर्दू फ़ारसी ......सुन्दर 

..जय श्री राधे आभार प्रोत्साहन हेतु 
भ्रमर ५ 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 9, 2013 at 2:28pm

आदरणीय जवाहर भाई, केवल प्रसाद जी, राम शिरोमणि जी, अरुन'अनंत' जी, राजेश जी, स्नेही अशोक जी एवं वंदना जी आप सभी के प्रोत्साहन हेतु अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ! सादर,

Comment by Vindu Babu on April 6, 2013 at 10:30am
बहुत अच्छी गजल पेश की है आपने आदरणीय वाहिद जी,शब्द शिल्प प्रशंसनीय है।
वदन पर फिर कफन सी सफेदी न हो..
अति सुन्दर
Comment by Ashok Kumar Raktale on April 5, 2013 at 8:51pm

कड़ी धूप में वो निखरने लगा,
पसीना है मेहनत का ज़ेवर दिखे;............मेहनतकशों के लिए क्या खूब लिखा है वाह!

.....और मक्ता भी कमाल है.बहुत बहुत बधाई आदरणीय संदीप जी इतनी सुन्दर गजल के लिए.

Comment by राजेश 'मृदु' on April 5, 2013 at 6:31pm

तमन्ना है 'वाहिद' मेरी बस यही,
मकां-रोटी सबको मयस्सर दिखे;

तमन्‍ना पूरी हो हम भी दुआ करेंगें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
7 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
9 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
9 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service