For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,939)

वरिष्ठ नागरिक दिवस पर चन्द दोहे .....

वरिष्ठ नागरिक दिवस के अवसर पर चन्द दोहे : ....

दृग जल हाथों पर गिरा, टूटा हर अहसास ।

काया  ढलते ही लगा, सब कुछ था आभास ।।

जीवन पीछे रह गया, छूट गए मधुमास ।

जर्जर काया क्या हुई, टूट गई हर  आस ।।

गिरी लार परिधान पर, शोर हुआ घनघोर ।

काया पर चलता नहीं, जरा काल में जोर ।।

लघु शंका बस में नहीं, थर- थर काँपे हाथ ।

जरा काल में खून ही , छोड़ चला फिर साथ ।।

वृद्धों को बस दीजिए , थोड़ा सा सम्मान ।

अवसादों को…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 21, 2023 at 2:45pm — 4 Comments

सावन गीत....कजरी

मोरा साजन छूटो जाय

सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..

पपीहा करत है पी हू पी हू

मोहे जोबन विरह हो जाय

सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!

कोयल बोलै कुूहू कुहू बागन में

मोरा सावन सूखौ जाय

सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!

नाचत मोर बदरिया बरसत है

मोरा आँगन बिसरौ जाय

सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..!

मरौ ददुरवा बूँद  पी  रह जाय

लो सोवत रहत साल भर वो तो

मो पै बिन पिया…

Continue

Added by Chetan Prakash on August 21, 2023 at 2:30pm — 1 Comment

फोन आया

फोन आया, 

कई सालों के बाद 

फिर उसका फोन आया 

पहले जब 

घंटी बजती थी, 

दिल की धड़कन भी बढ़ती थी 

लेकिन आज फोन बजा 

तो धड़कन ने इशारा नहीं…

Continue

Added by AMAN SINHA on August 19, 2023 at 9:00pm — 1 Comment

लघुकथा -सीख

सीख ......

"पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की टाँगें दबाते हुए पूछा ।

"कुछ मत पूछ बेटा । हर तरफ मार काट, भागम-भाग ,     हर तरफ चीखें  ही चीखें  थी । हमने थोड़े से गहने  और सामान बाँधा और सब कुछ छोड़ कर निकल लिए ।" पापा ने कहा ।

"आप सुरक्षित कैसे निकले "। सुशील ने पूछा ।

"ह्म्म । बेटे!सन् 1947 के विभाजन में  सम्भव नहीं था वहाँ से सुरक्षित निकलना । उसी कौम का  एक  इंसान फरिश्ता बन कर हमारी मदद को आया और किसी तरीके से बचते बचाते…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 19, 2023 at 4:49pm — 7 Comments

दोहा त्रयी : मजबूर

दोहा त्रयी. . . . मजबूर

आँखों से ही दूर है, अब  आँखों का नूर ।
बदले इस परिवेश में, ममता है मजबूर ।।

वर्तमान ने दे दिया, माना धन भरपूर ।
लेकिन कितना कर दिया, मिलने से मजबूर ।।

धन अर्जन करने चला, सात समंदर पार ।
मजबूरी ने कर दिया, सूना घर संसार ।।

सुशील सरना / 18-8-23

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on August 18, 2023 at 3:08pm — 4 Comments

ग़ज़ल (महब्बतों से बने रिश्ते यूँ बिखरने लगे)

1212 - 1122 - 1212 - 112/22

महब्बतों से बने रिश्ते यूँ बिखरने लगे 

मुझी से कट के मेरे मेह्रबाँ गुज़रने लगे

*

मशाल इल्म की फिर से बुझा गया कोई 

फ़सादी सारे जिहालत में रक़्स करने लगे

अवाम जिनको समझती रही भले किरदार 

मुखौटे उन के भी चेहरों से अब उतरने लगे

ख़ुलूस और महब्बत के पैरोकार भी अब

धरम के नाम पे आपस में वार करने लगे 

*

सिला ये हमको मिला उन से दिल लगाने का

जुनून-ए-इश्क़ में हर…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 18, 2023 at 8:31am — 4 Comments

एक ताज़ा ग़ज़ल

212 1222 212 1222

दिलजले लगे हैं फिर घर नया बसाने में

रह गये हैं वो खुद पीछे हमें उठाने में

रतजगे कई होते दोस्त घर बनाने में

भारती बहा है खूँ फिर इसे बसाने में

राह भटके रहबर अब ख़ुदगर्ज़ हुए हैं वो

बेलगाम होकर याँ व्यस्त घर लुटाने में

बाँट कर हुकूमत ने साधे स्वार्थ अपने हैं

पर लगे ज़माने उसको हमें जगाने में

भुखमरी ग़रीबी हटती नहीं हटाने से

बढ़ रही अमीरी उल्टा उसे भगाने…

Continue

Added by Chetan Prakash on August 16, 2023 at 8:30am — 2 Comments

स्वतंत्रता में साहित्यकारों का अतुलनीय योगदान

रचनात्मक योगदान से समृद्ध स्वाधीनता का साहित्य'

स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में सृजनशील लेखनधर्मियों का अतुल्यनीय योगदान.......

स्व की भावना से प्रेरित आजादी का आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जन-जन के अवचेतन मन को जाग्रत करने आंदोलन चलाये गए। देशी रियासतों पर राज करते हुये उनके जीवन मूल्यों पर हस्तक्षेप करना, क्रूरता पूर्वक नरसंहार के विरूद्ध चेतना जगाने में साहित्यकारों का योगदान अविस्मरणीय हैं। महासंग्राम की धधकती ज्वाला की प्रचंड रूप प्रदान करने में सृजनकारों ने अपने ओजपूर्ण…

Continue

Added by babitagupta on August 15, 2023 at 3:14pm — No Comments

एक जनम मुझे और मिले

एक जनम मुझे और मिले मैं देश की सेवा कर पाऊं 

दुध का ऋण उतारा अब तक, मिट्टी का ऋण भी चुका पाऊं 

 

मुझको तुम बांधे ना रखना अपनी ममता के बंधन में 

मैं उसका भी हिस्सा हूँ तुमने है जन्म लिया जिसमे  

 

शादी बच्चे घर संसार, ये सब मेरे पग को बांधे है 

लेकिन मुझसे मिट्टी मेरी बस एक बलिदान ही मांगे है 

 

सब ही आंचल मे छुपे तो देश को कौन सम्हालेगा 

सीमा पर शत्रु सेना से फिर कौन कहो लोहा लेगा 

 

तुमने दुध पिलाया मुझको…

Continue

Added by AMAN SINHA on August 15, 2023 at 1:30pm — No Comments

आजादी का मान रखो



जब आजादी पायी है तो, आजादी का मान रखो।

देश, तिरंगे, लोकरीति की, सबसे ऊँची शान रखो।।

*

पुरखों ने बलिदान दिया था, खुली हवा हम पायें।

मस्त गगन में विचरें, खेलें, मिलकर लय में गायें।।

राजनीति की चकाचौंध में, कभी नहीं भरमायें।

भले-बुरे की, सोचें समझें, तब निर्णय पर आयें।।

*

सिर्फ स्वार्थ की अति से बेबश, पुरखे दास बने तब।

स्वार्थ न फिर सिर चढ़े हमारे, सोते जगते ध्यान रखो।

*

भूमि एक थी, धर्म एक तब, किन्तु एकता टूटी।

इस कारण ही सब ने आकर, इज्जत…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 15, 2023 at 6:42am — 2 Comments

रोला छंद

*रोला छंद*

बहुत दिखाते ज्ञान, तनिक उस पर क्या चलते

बोल कर्म के साथ, मिलें तो क्यों घर जलते

कोरी है बक़वास, शास्त्र की बातें करना

अपना ही व्यवहार, परे उससे यदि धरना।

रहें हजारों साथ, अकेले या वे रह लें

सच को कितना झूठ, झूठ को या सच कह लें

दुष्टों के क्या कृत्य, सही फल दे पातें हैं

कुटिल सदा ही मात, सुजन से खा जातें हैं।

धरती का दिल आज, देख कर जाए घटता

चहुँदिक दे आवाज़, शीश मानव का कटता

कुढ़ता शुद्ध विचार, शील पर चलती…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 14, 2023 at 7:41pm — 3 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1212 1212 1212 1212

सुनो पुकार राष्ट्र की बढ़े चलो सुजान से

मिटेंगे अंथकार के निशाँ बढ़ो सुजान से

निशाना चूक जाए ना बचे रहो सुजान से

वो सारा देश देखता तुम्हें, चलो सुजान से

रहेगा नाम वीरों का किताबों में रिसालों में

मरो तो देश के लिये सखा जियो सुजान से

हमें जहाँ को देना है नहीं किसी से लेना है

ऐसा विचार हो कहीं सही पढ़ो सुजान से

निशान छोड़ जाओ कोई वक़्त की शिलाओं…

Continue

Added by Chetan Prakash on August 14, 2023 at 2:30pm — 2 Comments

नलके का पानी

ठंडा है मीठा है थोड़ा सा गाढ़ा है 

पर मेरे घर तक आता है नलके का पानी 

जब भी दिल चाहे प्यास बुझाता है 

ठंडक दे जाता है नलके का पानी 

जब से घर आया है सबको लुभाया है 

हिम्मत बढ़ाया है नलके का पानी…

Continue

Added by AMAN SINHA on August 13, 2023 at 9:10am — No Comments

चौपाई छंद - जीवन

चौपाई छंद - जीवन

जीवन का जो  मर्म  न  जाने ।

दर्द किसी  के  क्या  पहचाने ।।

जग में  निष्ठुर  वो  कहलाता ।

जो साँसों को समझ न पाता ।1।

*

         यौवन के जब दिन हैं आते ।

         आँखों  में   सपने  लहराते ।।

          रातें  लगतीं   सदा  सुहानी ।

          हर पल लिखता नई  कहानी ।2।

*

यादों   का  है  दिल  से  नाता ।

दिल आँसू को  सदा छिपाता ।।

आँखों  में  रातें  छिप   जातीं ।

कह न व्यथा अन्तस की पातीं ।3।

*

          …

Continue

Added by Sushil Sarna on August 12, 2023 at 2:41pm — 2 Comments

देश समूचा पूँजी अपनी - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

हिन्दू भैया!,मुस्लिम भैया!, क्यों करते हो दंगा।

हो जाता है  इस से  जग में, देश  हमारा नंगा।।

एक साथ में रहते  देखो, बीतीं  कितनी सदियाँ।

फिर भी नहीं सुहाने देती, इक दूजे को अँखियाँ।।

*

क्यों इतनी घृणा को मन में, पाल रहे हो अपने।

क्यों अपने हाथों से अपने, जला रहे हो सपने।।

जो मजहब के बने पुरोधा, कितना मजहब मानें।

झाँक कभी जीवन में उनके, ये सच भी तो जानें।।

*

वँटवारे की पीर सहन की, पुरखों ने जो सब के।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2023 at 4:28pm — No Comments

फूलों की चोरी

फूलों की चोरी

उषा अवस्थी



फूलों की चोरी

बिना किसी परिश्रम



न पानी डालने का श्रम

न माली के खर्च का गम

पकी -पकाई रोटियाँ 

खाने को तैयार

करने को प्रभु को प्रसन्न

सर्व सुलभ हथियार



कुछ कर्म करते-करते

स्वाभाविक हो चले हैं

वह पाप नहीं

आदत में शुमार,

लगते भले हैं



उनके लिए यह चोरी नहीं

साधारण सी बात है

दूसरों की मेहनत

उनकी ख़ैरात है



चोरी का आरम्भ ,

उस पेन्सिल के समान

जिस…

Continue

Added by Usha Awasthi on August 7, 2023 at 6:36pm — 2 Comments

जॉन तुम जीवन हो

तुमको पढ़ा तुमको जाना तो ये समझ में आया है

कितनी बेकरारी को समेट कर तूने कोई एक शेर बनाया है

 

रईसी ऐसी की बस इशारों में मुआ हर काम हो जाए

फकीरी ऐसी की जो सब पाकर भी बेइंतजाम हो जाए

 

हमने सुने है किस्से तेरी बेरुखी की ज़िंदगी से

शोहरत पाकर भी कोई कैसे तुझसा बेनाम हो जाए

 

लिखा जो तूने कहा जो तूने कोई ना जान सका

तू सभी का है अभी पर तब तुझे कोई ना पहचान सका

 

आज नज़्में तेरी दासतां बताती है

कैसे…

Continue

Added by AMAN SINHA on August 6, 2023 at 8:56pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक

खुद पर खुद का जब नहीं, चलता कोई जोर ।

निर्णय  उस  इंसान के , पड़ जाते कमजोर ।।

जीवन मधुबन ही नहीं, यहाँ फूल अरु शूल ।

सुख के पथ पर है पड़ी , यहाँ दुखों की धूल ।।

रिश्ते कागज पुष्प से, हुए आज निर्गंध ।

तार -तार सब हो गए, रेशम से अनुबंध ।।

कौन यहाँ पर पारसा, किसे कहें हम चोर ।

सच्चाई की राह में, मचा झूठ का शोर ।।

मीठी लगती चाँदनी, तीखी लगती धूप ।

ढल जाएगा एक दिन, चाँदी जैसा रूप…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 4, 2023 at 1:06pm — 2 Comments

राष्ट्र कवि

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तजी

मानस भवन में आरय़जन जिसकी उतारे आरती।

भगवान भारतव्रष में गूंजें हमारी भारती।।

हिंदी साहित्य के राष्ट्र कवि  पद्मभूषण से सम्मानित श्री मैथलीशरण गुप्त जी का जन्म ३ अगस्त,१८८५ में उत्तर प्रदेश के जिला झाँसी के चिरगांव में हुआ था.हम सब प्रतिवर्ष जयंती को कवि दिवस के रूप में मनाते हैं.अपनी पहली काव्य रचना 'रंग में भंग'रचने वाले गुप्त जी को मूल्यों के प्रति आस्था के अग्रदूत दद्दा के नाम से विख्यात हुए.इस विख्यात रचनाकार का विषय भारतीय संस्कृति और देश…

Continue

Added by babitagupta on August 3, 2023 at 2:01pm — No Comments

दोहा त्रयी - बदनाम

दोहा त्रयी : बदनाम

उल्फत में रुसवा हुए, मुफ्त हुए बदनाम ।
आँसू आहों का मिला , इस दिल को  ईनाम ।।

शमा जली महफिल सजी, चले  जाम पर जाम ।
रिन्दों ने की मस्तियाँ, शाम हुई बदनाम ।।

वफा न जाने बेवफ़ा ,क्या उस पर इल्जाम ।
खाया फरेब इस तरह, इश्क हुआ बदनाम ।।

सुशील सरना / 3-8-23

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on August 3, 2023 at 1:59pm — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service