For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,988)

ग़ज़ल....दिल जला के रौशनी होती नहीं है-बृजेश कुमार 'ब्रज'

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन

दर्द अपना यूँ सर-ए-बाज़ार कर के

क्या मिलेगा वक़्त से तक़रार कर के

कुछ नहीं हासिल,समझते क्यों नहीं हो

गम उठाना आह भरना प्यार कर के

सामने उस मोड़ पर कुछ अनमना सा

शख़्स इक बैठा है सब न्योछार कर के

बन्दगी उल्फत है मैं था इस गुमां में

वो नहीं आया अना को पार कर के

दिल जला के रौशनी होती नहीं है

ये भी 'ब्रज' ने देखा है सौ बार कर के



(मौलिक एवं अप्रकाशित)…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 25, 2018 at 6:00pm — 23 Comments

क्या है कविता?

क्या है कविता?

 

भाव-प्रवण शब्दों का

मोहक जाल

डम-डम, डिम-डिम

ध्वनियों का कमाल

प्रकृति में गुंजायमान,

अनहत नाद?

स्यात, प्रणय का…

Continue

Added by SudhenduOjha on June 25, 2018 at 5:14pm — No Comments

शहीद (लघुकथा)

संसद भवन के बाहर भूख हड़ताल पर बैठे हुए उन युवाओं को दो महीनों से अधिक का समय हो गया था पर न तो किसी अख़बार में इसकी कोई ख़बर थी और न ही न्यूज़ चैनल्स पर चर्चा। 

“इन बेरोज़गार लौंडों के पास अब कोई काम नहीं रह गया है।” बड़ी-बड़ी मूँछों वाले उस स्थानीय बुज़ुर्ग ने अपने पास खड़े अधेड़ से कहा। “कुछ नहीं मिला तो सरकार को ही बदनाम करने में लग गए।”

“कह क्या रहे हैं ये लोग?” अधेड़ ने जिज्ञासा व्यक्त की।

“कह रहे हैं कि जब देश की जनता भूखों मर रही है तो कोई…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 25, 2018 at 4:30pm — 9 Comments

हाइकू

अरण्य घन

सुन स्वर लहरी

मादल थाप

  

पवन मंद

बिखरे मकरंद

नव अंकुर

  

ढीठ हवाएँ

पत्ते बुहार रहीं

पतझड़ में

  

पर्वत नाले

पार करती चली

चंचल नदी

 

 मेघ ढिठौना

तपते आकाश में

बरसेगा क्या

… मौलिक एवं अप्रकाशित

(मादल की थाप का प्रसंग आशापूर्ण देवी जी की कहानी से )

 

 

Added by Neelam Upadhyaya on June 25, 2018 at 3:00pm — No Comments

सुबह जरूर आयेगी  -  लघुकथा   –

सुबह जरूर आयेगी  -  लघुकथा   –

वह रात सूरज और संध्या के जीवन की ऐसी रात थी कि दोनों की ही अग्नि परीक्षा की घड़ी आगयी थी। कौन खरा उतरेगा , यह तो ऊपर वाला ही तय करेगा ।

 दोनों की शादी को जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी नहीं हुए थे कि दोनों ने अकेले पिक्चर देखने, वह भी नाइट शो, का प्रोग्राम बना लिया। शहर के बिगड़े माहौल को देखते हुए घर में कोई भी उनके इस फ़ैसले से खुश नहीं था। मगर सूरज की ज़िद और अति आत्मविश्वास के आगे सब चुप थे। क्योंकि वह एक फ़ौज़ी अफ़सर जो था।

फ़िल्म देखकर निकले तो सूरज…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on June 25, 2018 at 12:40pm — 12 Comments

अदेह रूप .....

अदेह रूप ...

सर्वविदित है

देह का शून्यता में

विलीन होना

निश्चित है

मगर

अदेह चेतना

सृष्टि में व्याप्त

चैतन्य कणों से

निर्मित

आदि अंत से मुक्त

अनंत

अभिश्रुति की

अभिव्यंजना है

मुझे तुमसे मिलने के लिए

उन अदृश्य कणों से निर्मित

धागों की अदेह को

अपने चेतन में

अवतरित करना होगा

मैं

मेरी देह सी

अतृप्त नहीं रह सकती

मैं

तुमसे

अवश्य मिलूंगी

अपने

अदेह रूप…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 25, 2018 at 11:59am — 10 Comments

मन का भंवर ...

    अकस्मात मीनू के जीवन में कैसी दुविधा आन पड़ी????जिन्दगी में अजीब सा सन्नाटा छा गया.मीनू ने जेठ-जिठानी के कहने पर ही उनकी झोली में खुशियाँ डालने के लिए यह कदम उठाया था लेकिन...पहले से इस तरह का अंदेशा भी होता तो शायद....चंद दिनों पूर्व जिन ख्यावों में डूबी हुई थी,वो आज दिवास्वप्न सा लग रहा था....

      तेरे पर्दापर्ण की खबर सुन किलकारी सुनने को व्याकुल थे.....तब तेरे अस्तित्व से वो अपरिचित थे तो जिठानी जी की दुःख…

Continue

Added by babitagupta on June 24, 2018 at 3:00pm — 8 Comments

अमर हो गयी .. (लघु रचना )

अमर हो गयी .. (लघु रचना )

स्मृति गर्भ में
एक शिला
साकार हो उठी
भाव अस्तित्व
उदित हुआ
शिला की दरारों से
आसक्ति
अदृश्यता की घाटियों से
प्रवाहित हो
स्मृतियों वीचियों पर
अक्षय पल सी
सुवासित हो
अमर हो गयी

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 24, 2018 at 1:27pm — 8 Comments

पास रहते लोग से हम दूर कितने हो गए

2122   2122     2122     212

दूरियां नजदीकियां बन तो गयी हैं आजकल

पास रहते लोग से हम दूर कितने हो गए

 

माँ पिता सारे मरासिम गुम  हुए इस दौर में  

रोटियों के फेर में मजबूर कितने हो गए

 

भूल जाओगे मुझे तुम एक दिन मालूम था

इश्क में मेरे मगर मशहूर कितने हो गए

 

पत्थरों पर सर पटककर फायदा कोई नहीं

उसके दर पर ख्वाब चकनाचूर कितने हो गए

 

रात काली नागिनों सी डस रही है आजकल

हमनशीं थे कल तलक मगरूर…

Continue

Added by Neeraj Neer on June 24, 2018 at 11:35am — 20 Comments

काल कोठरी

काल कोठरी

निस्तब्धता

अँधेरे का फैलाव

दिशा से दिशा तक काला आकाश

रात भी है मानो ठोस अँधेरे की

एक बहुत बड़ी कोठरी

सोचता हूँ तुम भी कहीं …

Continue

Added by vijay nikore on June 24, 2018 at 1:22am — 37 Comments

आपको तो दिल जलाना आ गया

2122 2122 212

जख्म  देकर  मुस्कुराना  आ   गया ।

आपको तो दिल जलाना आ गया ।।

काफिरों  की ख़्वाहिशें  तो  देखिये ।

मस्जिदों में सर झुकाना  आ गया ।।

दे गयी बस इल्म इतना मुफलिसी ।

दोस्तों  को  आजमाना  आ  गया ।।

एक  आवारा  सा  बादल  देखकर ।

आज मौसम आशिकाना आ गया ।।

क्या  उन्हें   तन्हाइयां  डसने  लगीं ।

बा अदब  वादा…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 23, 2018 at 4:24pm — 19 Comments

जाने के बाद ... लघु रचना

जाने के बाद ... लघु रचना

गुज़र गयी
एक आंधी
तुम्हारे स्पर्शों की
मेरी देह की ख़ामोश राहों से
समेटती हूँ
आज तक
मोहब्बत की चादर पर
वो बिखरे हुए लम्हे
तुम्हारे
जाने के बाद

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 23, 2018 at 4:00pm — 12 Comments

ग़ज़ल

तन्हा तन्हा रहता हूँ,
मैं भी साये जैसा हूँ।

खाली मौसम होता है,
तुम बिन जब मैं होता हूँ।

मैंने तुमको अपना माना
मैं भी देखो कैसा हूँ।

उसकी आंखें बादल है
मैं भी भीगे रहता हूँ।

चुपके से सुन लेना तुम
जो भी तुमसे कहता हूँ।

जाने वालों जाओ तुम
अब थोड़ी मैं रोता हूँ।

अपनी सूखी आंखों में
अब भी सपने बोता हूँ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sarthak on June 22, 2018 at 11:19pm — 7 Comments

कर नेकी दरिया में डाल

है धुआँ-धक्कड़ और बवाल

चेहरे-चेहरे लिक्खे सवाल

कर नेकी दरिया में डाल

 

बाबा खेल-खिलांवे भइय्या

नाचे भक्तिन ताल-तलईय्या

चोर सियार सब होशियार

मूड़ी काटे भए चमार

ये सूअर हैं, हरामखोर हैं

इनकी लें हम उतार खाल

(उपरोक्त पंक्तियाँ ढोंगी बाबाओं के संदर्भ में हैं)

 

है धुआँ-धक्कड़ और बवाल

चेहरे-चेहरे लिक्खे सवाल

कर नेकी दरिया में डाल

 

जात अहीर, अहीरन के साथे

देश-मुल्क अब किसके…

Continue

Added by SudhenduOjha on June 22, 2018 at 7:30pm — No Comments

मानव सभ्यता का इतिहास (लघुकथा)

“कितने हसीन थे वो दिन जब पूरे आसमान पर अकेले मेरा राज हुआ करता था।” अपनी पतंग को माँझे से बाँधते हुए छोटा सा वह लड़का अपने सुनहरे अतीत में खो गया। 

अपने मोहल्ले में तब वो अकेले ही पतंग उड़ाने वाला हुआ करता था। न तो उसे कोई रोकने वाला था और न ही टोकने वाला। वह पूरी तरह से स्वतंत्र था। उस वक़्त उसकी बस एक ही हसरत होती, “एक दिन अपनी पतंग चाँद तक ले जाऊँगा।”

मगर यह ज़्यादा दिन चला नहीं। धीरे-धीरे उसके मोहल्ले में दूसरे पतंगबाज़ भी आने लगे। उनके आते ही आसमान में…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 22, 2018 at 5:37pm — 8 Comments

लघुकथा-पराकाष्ठा

मोबाइल पर मेल का नोटिफिकेशन देख मोहन की आँखें चमक उठीं।शायद पायल का मेल हो।जल्दी से मेल खोला..हाँ ,ठीक 17 दिन बाद पायल का मेल था।अक्सर मेल नोटिफिकेशन देख खिल जाता है मोहन लेकिन अक्सर मायूसी ही हाथ लगती।खैर देखूं तो सही क्या लिखा है...अपने चश्मे को ठीक करता हुआ मोहन मेल पढ़ने लगा।"56 को हो गईं हूँ मैं और आप भी 60-65 तो होंगे ही,अब तो बता दो क्या मायने रखती हूँ मैं?और क्यों?" पिछले 40 सालों से ये सवाल कई बार पूछा था पायल ने लेकिन "कुछ सवालों को लाजबाब रहने दो" कह कर हर बार टाल गया मोहन।पर…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 22, 2018 at 5:30pm — 20 Comments

आप बीती...

इक आवारा तितली सी मैं

उड़ती फिरती थी सड़कों पे...



दौड़ा करती थी राहों पे

इक चंचल हिरनी के जैसे ...



इक कदम यहाँ इक कदम वहाँ

बेपरवाह घूमा करती थी...



कर उछल कूद ऊँचे वृक्षों के

पत्ते चूमा करती थी...



चलते चलते यूँ ही लब पर

जो गीत मधुर आ जाता था...



बदरंग हवाओं में जैसे

सुख का मंजर छा जाता था...



बीते पल की यादों से फिर

मैं मन ही मन भरमाती थी...



इठलाती थी बलखाती थी

लहराती फिर…

Continue

Added by रक्षिता सिंह on June 21, 2018 at 11:30pm — 16 Comments

क्षणिकायें — डॉo विजय शंकर



बहुत कुछ , बहुत हास्यास्पद है ,

फिर भी किसी को हंसी आती नहीं।

बहुत कुछ , बहुत दुखदायी है , 

फिर भी आंसू किसी को आते नहीं।… 1.

बाज़ार भी अजीब जगह है

जहां आप शाहंशाह होकर भी

रोज बिक तो सकते हैं , पर एक

दिन को भी अपनी पूरी हुकूमत में ,

पूरा बाज़ार खरीद नहीं सकते ………. 2 .

बहुत शिकायतें हैं हवा से

कि बुझा देती हैं चिरागों को ,

चलो एक चिराग ही बिना

हवा के जला के दिखा दो। ……….. 3…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 21, 2018 at 8:30pm — 13 Comments

कुछ क्षणिकाएं :

कुछ क्षणिकाएं :

1

शुष्क काष्ठ

अग्नि से नेह

असंगत आलिंगन

परिणति

मूक अवशेष

................

2

त्वचा हीन

नग्न वृक्ष

अवसन्न खड़े

अकाल अंत की

आहटों के मध्य

.............................

3

ईश्वर

किसी देवता का

सर्जन नहीं

गढ़त है वो

इंसान की

..........................

4

करता रहा

प्रतीक्षा

एक शंख

नाद के लिए

चिर निद्रा में सोये

मरघट में…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 21, 2018 at 4:04pm — 14 Comments

बातें.....

बातें  ... 

लम्हों की आग़ोश में

नशीली सी रातों की

शीरीं से अल्फ़ाज़ की

महकती बातें

बे हिज़ाब रातों की

शोख़ी भरी शरारतों की

तन्हाई में भीगी

बरसाती बातें

आँखों के सागर में

जज़्बात की कश्ती में

यादों के साहिल पे

सुलगती बातें

जिस्म की पनाहों में

अनदेखी राहों में

दिल की गुफ़ाओं में

बहकती बातें

मोहब्बत के मौसम में

आँखों की शबनम में

ग़ज़ल की करवटों…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 21, 2018 at 12:30pm — 14 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आदरणीया, प्रतिभा पाण्हे जी,बहुत सरल, सार-गर्भित कुण्डलिया छंद हुआ, बधाई, आपको"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आप, भगवान के बिकने के पीछे आशय स्पष्ट करें तो कोई विकल्प सुझाया जाय, बंधु"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आपके जानकारी के किए, पँचकल से विषम चरण प्रारम्भ होता है, प्रमाणः सुनि भुसुंडि के वचन सुभ देख राम पद…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आपके जानकारी के किए, पँचकल से विषम चरण प्रारम्भ होता है, प्रमाणः सुनि भुसुंडि के वचन सुभ देख राम पद…"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। अच्छी रचना हेतु बधाई"
6 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आदरणीया प्रतिभा जी ,सादर नमस्कार। छंद अच्छा है। बधाई"
6 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"बेटी के ब्याह और पिता की चिंता पर आपने गहन सृजन किया है..हार्दिक बधाई..वैसे बेटियाँ और उनके पिता अब…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आदरणीय प्रतिभा पाण्डे जी, सुंदर कुण्डलिया के लिए बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आदरणीय अशोक कुमार ती रक्ताले जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, बहुत सुंदर भावपूर्ण छंद मुक्त रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
7 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"देवी के नौ रूपों का वर्णन करती दोहावली के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय..सादर"
7 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"दर्प (कुण्डलिया छंद) _____________ लंका रावण की जली,और जला अभिमान।दर्प बन गया काल था, काम न आया…"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service