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इबादत...

 

उखाड़ दो खूंटे ज़मीन से इबादतगाहों के ,

 

उतारो गुम्बद,

 

समेटो खम्भे,

 

उधेड़ दो सारे मंदिर-मस्जिदों के धागे,

 

मिट्टी-पत्थरों में ख़ुदा नहीं बसता,

 

सुकूँ…

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Added by Veerendra Jain on May 23, 2011 at 1:40pm — 10 Comments

मात मिली

रस्ते रस्ते बात मिली 
नुक्कड़ नुक्कड़ घात मिली
 
चिंदी चिंदी दिन पाए है
 क़तरा क़तरा रात मिली
 
सिला करोड़ योनियों का है
ये मानुष की जात मिली
 
बादल लुका-छिपी करते थे 
कभी कभी बरसात मिली
 
चाहा एक समंदर पाना 
क़तरों की औकात मिली
 
जीवन को जीना चाहा पर 
सपनों की…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 23, 2011 at 11:30am — 3 Comments

अजायब घर में रखा हुआ इन्सान

जब गुजर कर सफ़र से थक जाता हूँ मै

तब तब उस गाँव के पुराने घर जाता हूँ  मै ,



गाँव के आम के  बगीचे में जितना हम तोड़ कर फेंक दिया करते थे

उससे  बहुत कम  इस शहर  में पैसे के बराबर   तौल कर के लाता हूँ में  ..



जब भी मिलता हूँ इस  शहर में… Continue

Added by Rajeev Kumar Pandey on May 23, 2011 at 9:51am — No Comments

समाज में गहरी होती अंधविश्वास की जड़ें

सूचना क्रांति के दौर में हम भले ही अंतरिक्ष और चांद पर घर बसाने की सोच रहे हों, लेकिन अंधविश्वास अब भी हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है। वैज्ञानिक युग के बढ़ते प्रभाव के बावजूद अंधविश्वास की जड़ें समाज से नहीं उखड़ रही हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जादू-टोना के नाम पर लोगों को प्रताड़ित किए जाने, आंख फोड़ने, गांव से बाहर निकाल देने सहित कई तरह…

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Added by rajendra kumar on May 23, 2011 at 12:21am — No Comments

फुटकर शेर

दायरे सिमट के रह गए हैं यूँ ग़म-ए-रोज़गार में,
दोस्तों से भी मिला अब तो करते हैं वो बाज़ार में....

पैसा तो हाथों का मैल होता है,
लेकिन अक्सर ये मलाल होता है.
होने लगते हैं हाथ मैले तो,
रिश्तों से क्यूँ, इंसान हाथ धोता है.

‎"नागहाँ ये अजब सा मुकाम आया, 
आज तन्हाई को भी तन्हां पाया.."

Added by AjAy Kumar Bohat on May 21, 2011 at 7:50am — No Comments

पावस आएगा क्या ????

मुझे पता है,

तुम पावस के एक टुकड़े को 

देखते हो टकटकी बांधे ,

आँखों में पाले सपने सा 

नजदीकी रिश्तेदारी में गए अपने सा.

पर अब पावस भी नहीं आता बेलौस

आता है एक धुंधले कुहासे में ढका,

शरमाता,संकुचाता,लडखडाता ,

कभी किसी ठूंठ के कंधे पर 

सर रख सिसकी भरता पावस 

आता है.....

शहर की चौहद्दी पर ठिठकता,

धुएं से सहमता लौट जाता है,

फिर किसी दिन आने को .....

आंचल में मीठा पानी लाने को,

तुम कब तक देखोगे राह पावस की 

वो आएगा तो भी आ नहीं… Continue

Added by Sheel Kumar on May 20, 2011 at 10:45pm — 1 Comment

भोलू का बेटा

आसमां बिजलियों से जो डर जायेगा
फिर ये भोलू का बेटा किधर जायेगा
 
नींद में करवटें जुर्म  ऐलानिया 
जुर्म किस ने किया किस के सर जायेगा
 
जो बताया सलीके में क्या खामियां 
एक अहसान सर से उतर जायेगा
 
ज्ञान पच ना सका वो करे उलटियाँ
जैसे बू से ये गुलशन संवर जायेगा
 
गालियाँ, प्यालियाँ,कुछ बहस,साजिशें 
गर ये सब ना मिला वो…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 19, 2011 at 11:00pm — No Comments

आसमां झुकता है

कभी कभी अपनी आवाज़,

किसी अनदेखे पहाड़ से,

टकरा कर,

वापस लौट आती है,

कभी कभी,

सुबह के इंतज़ार में,

रात के बाद,

फिर रात ही आती है,

जिंदगी तब,

बेईमान लगती है,

और बिलकुल नहीं भाती है;

कभी लाख कोशिशों के बावजूद,

एक राही छूट जाता है,

बहुत सँभालने पर भी,

कांच का गिलास,

टूट जाता है,

कभी अरमानों का पुलिंदा,

एक मन में,

सिमट नहीं पाता है,

और कितना भी,

खाद दो, पानी दो,

बगीचे का एक पौधा,

रोज़ सूख जाता है;

और ऐसे… Continue

Added by neeraj tripathi on May 19, 2011 at 6:48pm — No Comments

कविता : हम-तुम

हम-तुम
जैसे सरिया और कंक्रीट
दिन भर मैं दफ़्तर का तनाव झेलता हूँ
और तुम घर चलाने का दबाव

इस तरह हम झेलते हैं
जीवन का बोझ
साझा करके

किसी का बोझ कम नहीं है
न मेरा न तुम्हारा

झेल लेंगें हम
आँधी, बारिश, धूप, भूकंप, तूफ़ान
अगर यूँ ही बने रहेंगे
इक दूजे का सहारा

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 17, 2011 at 11:44pm — 1 Comment

ग़ज़ल :- पहरे शब्दों पर भी अब पड़ने लगे

ग़ज़ल :- पहरे शब्दों पर भी अब पड़ने लगे

पहरे शब्दों पर भी अब पड़ने लगे ,

घाव जो गहरे थे अब बढ़ने लगे |

 …

Continue

Added by Abhinav Arun on May 17, 2011 at 10:01am — 7 Comments

दो मुक्तक.....

 

= एक =

कोई इंसा "किसी" के लिए - 

सिसकता है, मचलता है, तड़पता है......

रोता है, मुस्कुराता है....

गाता है, गुनगुनाता है....…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on May 17, 2011 at 9:06am — 3 Comments

मेरी हालत पे तरस खाने के बाद .......

मेरी हालत पे तरस खाने के बाद ,
रो पड़े थे सभी मुस्कुराने के बाद ,
क्या करूं इस दिले नामुराद का ,
याद करता है उनको उनके जाने के बाद ,
होश की बातें अभी मत करो साहब ,
होश मे आऊंगा मैं इस पैमाने के बाद ,
देख कर तुम जिसे सजते सवरते हो ,
याद आएगा ओ आइना टूट जाने के बाद ,
हाथों की लकीरों पे ऐतबार दिला के ,
कोई लूट गया मुझको दिल लगाने के बाद ,
जा रहा हूँ इस ऐतबार पे दुनिया से ,
याद न आना मुझको भूल जाने के बाद ll

Added by कमल वर्मा "गुरु जी" on May 16, 2011 at 4:34pm — No Comments

ज़िन्दगी के कैनवास पर...

 

 

 

ज़िन्दगी के कैनवास पर

जीवन का मनमोहक चित्र

बनाता है वो

रंग भी मुरीद हैं

उसकी इस कला के ,

रंग प्यार के

रंग अपनेपन के

रंग दोस्ती के

रंग करुणा…

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Added by Veerendra Jain on May 16, 2011 at 11:50am — 4 Comments

बुढापा जो बरपा है

अभी अभी मैं नींद से जागा…

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Added by Ravindra Koshti on May 16, 2011 at 12:26am — 2 Comments

नज़्म : - तब तुम मुझको याद करोगी !

नज़्म : - तब तुम मुझको याद करोगी !

सूनेपन की रेत पे लम्हे दुःख की सुबहो - शाम लिखेंगे…

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Added by Abhinav Arun on May 15, 2011 at 8:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल : - राग मुझको सुहाता नहीं दोस्तो

ग़ज़ल : - राग  मुझको सुहाता नहीं दोस्तो !

राग  मुझको सुहाता नहीं दोस्तो ,

मैं कोई गीत गाता नहीं…

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Added by Abhinav Arun on May 15, 2011 at 8:00pm — 6 Comments

ज्ञान का दीप

ज्ञान का दीप

जिंदगी प्रेम में ही  गर  मिली रह गयी,
ज्ञान का दीप कैसे जला पाओगे ?…

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Added by R N Tiwari on May 15, 2011 at 7:00pm — 2 Comments

गजल-मुफलिसी बेबाक हो गई

गजल

 

मुफलिसी बेबाक हो गई।
भूख ही खुराक हो गई।।

 

जिसने किया खुदी को बुलंद
जहाँ में उसकी धाक हो गई।।

 

जो पल में छीन लेते थे जिंदगी।
वो हस्तियां भीं खाक हो गई।।

 

किसी को गरज नहीं यहां जहाँ की।
सबको अपनी प्यारी नाक हो गई।।

 

जिसने इंकलाब का बिगुल बजाया।
उसकी बात "चंदन" मजाक हो गई।।

Added by nemichandpuniyachandan on May 15, 2011 at 5:30pm — 1 Comment

कैसे दोगे पीर ...?

स्वाती की बूंदों सा टपका

स्नेह, बन गया मोती

विरहा चातक जलता फिरभी

बन दीपक की ज्योती...



नयनों में छवि छोड़ सदा को

चाँद बस गया दूर…

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Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on May 15, 2011 at 8:25am — 5 Comments

ग़ज़ल : नासूर है ...

फ़िक्रमंदों का अज़ब दस्तूर है 
ज़िक्र हो बस फिक्र का मंज़ूर है
 
जो कभी इक शे'र कह पाया नहीं 
वो मयारी हो गया मशहूर है
 
जो किसी परचम तले आया नहीं
वो नहीं आदम भले मजबूर है
 
मोड़ औ नुक्कड़ ज़हां के देख लो 
ये कंगूरा  तो बहुत मगरूर है
 
चन्द साँसों का सिला जो ये मिला 
चौखटों की शान का मशकूर है
 
ये कसीदे शान में किस की…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 15, 2011 at 1:30am — 9 Comments

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