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ज्ञान का दीप

जिंदगी प्रेम में ही  गर  मिली रह गयी,
ज्ञान का दीप कैसे जला पाओगे ?
घर में ही अँधेरा घुसा रह गया,
व्यर्थ में ही सितम को सजा पाओगे .
प्रेम साथी है केवल चमन के लिए,
ज्ञान दीपक जलाना गमन के लिए.
प्रेम बंधन में यदि तुम बंधे रह गए,
क्या सोये हुए को जगा पाओगे?
जगाओगे जब भी होगी दिवाली,
रातें बनेगीं सारी उजाली .
उजाले में रहते सबेरा हुवा  तो ,
हर बंधनों को खुला पाओगे.
ख़तम हो चुकी हैं शीतल हवाएं,
तपती हुयी आग शोले गिराए,
यह सूचना है तेरी जिंदगी का,
खिज़ा के ही मौसम में ही पाओगे.
अभी वक्त है ज्ञान दीपक जलाना,
उठो और चलो तुमको मंजिल है पाना,
कहीं से ढिलाई कभी आगई तो ,
कैसे के डोली सजा पाओगे ?

आर.एन. तिवारी

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Comment by R N Tiwari on May 16, 2011 at 9:36am
धन्यवाद ,बागी जी !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 15, 2011 at 9:32pm
सुंदर भाव, बधाई आर एन तिवारी जी

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