नज़्म : - तब तुम मुझको याद करोगी !
सूनेपन की रेत पे लम्हे दुःख की सुबहो - शाम लिखेंगे
थाम के तेरी नाज़ुक उंगली भूला सा एक नाम लिखेंगे
दिल के दस्तावेज की स्याही जब आंसू से धुल जायेगी
सर्द हवा के हलके झोंके से जब तन्द्रा खुल जायेगी
ख्वाब में तेरे भूला चेहरा बनकर तुझको छल जाऊँगा
तब तुम मुझको याद करोगी और मैं तुमको याद आऊँगा |
शाम किसी जब घर की देहरी पर तुम बेमन सी बैठोगी
दूब की एक टहनी को लेकर अपनी उंगली में ऐन्ठोगी
चाँद सा कोई झिलमिल चेहरा भी ना मन को भा पायेगा
सांझ की उस झुरमुट में मैं घायल जुगनू बन आ जाऊंगा
तब तुम मुझको याद करोगी और मैं तुमको याद आऊँगा |
कोई भुला सा एक नगमा जब होंठों से फूट पड़ेगा
या पन्नों के बीच दबा सूखा गुलाब जब छूट पड़ेगा
दर्द में डूबी तेरी सासें रात की रानी सी महकेंगी
खुशियों के मोती चुनने में जीवन की कश्ती बहकेगी
लहरों में तेरा चेहरा बनकर मैं तुझपर छा जाऊंगा
तब तुम मुझको याद करोगी और मैं तुमको याद आऊँगा |
सावन के आने की आहट तेरी आँखें नम कर देगी
हरे भरे खुश रंग रूप में खुशी भी आना कम कर देगी
भादो की बरछी सी बौछारें जब सीने को बीन्धेंगी
तेरी आँखें गये वक्त की याद के बिरवे को सींचेंगी
बीच बादलों के मैं बिजली बनकर तुझको चौकाऊंगा
तब तुम मुझको याद करोगी और मैं तुमको याद आऊँगा |
जेठ की तपती दोपहरी में सूनापन खाने दौडेगा
बेचैनी का सूत्र ढूँढने तेरा भोला मन भरमेंगा
कोई नन्हा सा बच्चा जब खेलेगा तेरे आँचल से
चिहुंक उठोगी दरवाजे की हिलती बजती सी सांकल से
सांकल की दस्तक में ढलकर बच्चे की आँखों में पलकर
स्वप्न सुहाना दिखलाऊंगा तुमको जीना सिखलाऊंगा
तब तुम मुझको याद करोगी और मैं तुमको याद आऊँगा |
जब भी पढोगी नज्में मेरी या ग़ज़लों को तुम गाओगी
आँखों से ढलते अश्कों में अपने अभिनव को पाओगी
साथ किसी का हाथ भले हो कसक तो होगी सीने में
खुद से कहोगी तुमभी अक्सर क्या रखा है जीने में
असमंजस की मनःस्थिति से तुमको वापस लाऊंगा
तब तुम मुझको याद करोगी और मैं तुमको याद आऊँगा |
(अभिनव अरुण की डायरी से ब-कलम खुद)
Comment
साथ किसी का हाथ भले हो कसक तो होगी सीने में
खुद से कहोगी तुमभी अक्सर क्या रखा है जीने में
बहुत खूब अभिनवजी, बरबस किताबे ज़िन्दगी के कुछ वो पन्ने पलट गए, जो जीवन की आपाधापी में बंद हो गए थे.बेहतरीन ख्यालात के लिए साधुवाद.
आपके स्नेह का शुक्रिया बागी भाई ! असल में इधर कुछ नया लिखना नहीं हो पा रहा सोचा क्यों कुछ अपना पसंदीदा पुराना ही सही शेयर किया जाये ... खामोशी से यही भला ! वैसे कभी मैं इस नज़्म को लोगों को खोज खोज कर सुनाया करता था और तारीफ पाता था !
जब भी पढोगी नज्में मेरी या ग़ज़लों को तुम गाओगी
आँखों से ढलते अश्कों में अपने अभिनव को पाओगी
साथ किसी का हाथ भले हो कसक तो होगी सीने में
खुद से कहोगी तुमभी अक्सर क्या रखा है जीने में
वाह अरुण भाई वाह, बेहतरीन भाव है, या यह कहे कि अभिनव का अनुभव बोल रहा है तो शायद अतिश्योक्ति न होगा :-)
खुबसूरत रचना हेतु बहुत बहुत बधाई,
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