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ग़ज़ल - पैग़ाम-ए-मौहब्बत

नफरत के बदले प्यार को लुटा रहा हूँ मैं

सदियों पुरानी रस्म को ठुकरा रहा हूँ मैं



मेरी ज़ात को समा ले अपनी ही ज़ात में

है बचा खुचा जो चेहरा वो मिटा रहा हूँ मैं



गीतों में मेरे ख़ुशबू अब होने लगी दोबाला

अब इनमे तेरी रंगत को मिला रहा हूँ मैं



नगमे वफ़ा के शायद निकले तुम्हारी रूह से

यही सोच शेख साहिब तुझे पिला रहा हूँ मैं



तेरे मतब पे जाकर भी इन्सां बना रहूँगा

तेरी रिवायत की जड़ें हिलाने जा रहा हूँ मैं



देता रहा वाईज मुझे जो… Continue

Added by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on September 5, 2010 at 11:19am — 3 Comments

कोई दीवानी इंतजार में शहीदों की ----

अक्सर कई मित्र पूछ लेते हैं हंसी मजाक में --भाई ये ग़ज़ल क्या होती है --

ग़ज़ल कह के ही समझाओ हमें --ऐसी ही मुश्किल को आसान करने का छोटा सा प्रयास

किया है हमने ---उन्हीं मित्रों को सादर समर्पित है

--------------------------------------

शमां से आँख लड़ी हो तो ग़ज़ल होती है ---

या के फिर खूब चढ़ी हो तो ग़ज़ल होती है |



तुम किसी शोख हसीना को छेड़ कर देखो --

जेल जाने की घडी हो तो ग़ज़ल होती है --|



वो शाम से ही अगर ले रहे हों अंगड़ाई --

तमाम रात… Continue

Added by jagdishtapish on September 5, 2010 at 9:30am — 2 Comments

अंजान हक़ीकत

Added by Subodh kumar on September 4, 2010 at 9:30pm — No Comments

झूठ बोलने की जिद

यह जानते हुए
सच की खुशबू
एक दिन फैलेगी ही
उर्जा व्यर्थ गंवाते है हम
ढकने में उसे
झूठ की चादरों से ॥

सच वह ओस है
जिसे प्रत्येक दिन
झूठ का तमतमाता सूरज
गायब कर देता है ॥

मगर पुनः
कल सबेरे
सच का ओस
फिर हाज़िर हो जाता है
अपने चमकीले रूप में ॥

मेरे दोस्त ...
सच को परास्त करना नामुमकिन है
छोड़ दो जिद
झूठ बोलने की ॥

Added by baban pandey on September 4, 2010 at 5:00pm — 1 Comment

कृष्ण तुम हो कहाँ ? Dr Nutan Gairola

तुम कौन ?





तुम कौन जो धीमे सा एक गीत सुना देते हो ,



मन के अन्दर एक रौशन करता दीप जला देते हो|



बंद कर ली मैंने सुननी कानों से आवाजें ,



जब से सुन ली मैंने अपने दिल की ही आवाजें ||





तुम भूखे बच्चो के मुंह से निकली क्रंदन वेदना सी,



तुम जर्जर होते अपेक्षित माँ बापू के विस्मय सी |



तुम पेट की भूख की खातिर दौड़ते बेरोजगार युवा सी,



तुम खुद को स्थापित करती एक नारी की कोशिश सी,



तुम आतंकियों की भेदी… Continue

Added by Dr Nutan on September 4, 2010 at 4:00pm — 6 Comments

वो ज़हान मेरा नही

वो ज़हान
मेरा नही
जहाँ
तेरी खुशबू
न हो
तेरी यादें न हो
जिक्र न हो
जहाँ तेरा
वो महफिल
मुझे रास आती नही

Added by rajni chhabra on September 4, 2010 at 3:30pm — 4 Comments

सरकारी बन्दूक

बन्दूक .....
एक भय है
एक डर है
लोगों को डराने की चीज है
मारने की नहीं ॥
इससे गोलीयाँ
शायद ही कभी निकलती हो ॥


जो इस बात को समझ गया
वह बन्दूक से नहीं डरता ॥
बल्कि ...
चाकू दिखाकर
छीन लेता है बन्दूक ॥

हमारे नक्सली
सरकारी बंदूकों की भाषा
अच्छी तरह पढ़ चूके है ॥

Added by baban pandey on September 4, 2010 at 2:00pm — 3 Comments

Ru-B-Ru

Added by Subodh kumar on September 4, 2010 at 1:00pm — 2 Comments

तेरा ख़याल

हसीं इतना है तेरा ख्याल, पल भर के लिए दिल से निकलता नहीं|

पहले जैसे भी हम जी लिए पर, जीवन अब तेरे बिन देखो चलता नहीं||



वो गज़ब का समय था हमारे लिए, तेरी पहली नज़र का, पहले प्यार का|

सारी बाते बिछड़ जायेंगी एक दिन , कैसे भूलूंगा दिन तेरे इकरार का||

तेरे पहलू में रहने की जिद पे अड़ा, लाख बहलाऊं ये दिल बहलाता नहीं|

हसीं इतना है तेरा ख़याल...............................................



तेरे गेसुओं की घनी छाँव में, मेरा डेरा बने, एक बसेरा बने|

मेरी हर…

Continue

Added by आशीष यादव on September 4, 2010 at 10:30am — 8 Comments

मुक्तिका: चुप रहो... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



चुप रहो...



संजीव 'सलिल'

*

महानगरों में हुआ नीलाम होरी चुप रहो.

गुम हुई कल रात थाने गयी छोरी चुप रहो..



टंग गया सूली पे ईमां मौन है इंसान हर.

बेईमानी ने अकड़ मूंछें मरोड़ी चुप रहो..



टोफियों की चाह में है बाँवरी चौपाल अब.

सिसकती कदमों तले अमिया-निम्बोरी चुप रहो..



सियासत की सड़क काली हो रही मजबूत है.

उखड़ती है डगर सेवा की निगोड़ी चुप रहो..



बचा रखना है अगर किस्सा-ए-बाबा भारती.

खड़कसिंह ले… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 4, 2010 at 8:30am — 5 Comments

अजब हिंद की गजब कहानी कैसे मैं बतलाऊ ,

अजब हिंद की गजब कहानी कैसे मैं बतलाऊ ,

जो जो लुटता हैं हमें उसको मेहमान बनाऊ ,

अफजल गुरु की करनी को आप नहीं भूले होंगे ,

अजमल कसाब क्या किया सोच के जलते होंगे ,

अंग्रेजो की क्या बोलू मुगलों की राज सुनाऊ ,

अजब हिंद की गजब कहानी कैसे मैं बतलाऊ ,

लुट मची लुट लो जो मुग़ल अंग्रेज किये ,

माँ भारती के दामन पर सौ सौ दाग दिए ,

दिल्ली वाले लुट रहे हैं कमनवेल्थ के नाम पर ,

यु पि में भी लुट मची हैं मूर्ति वाला काम पर ,

ये सोचने की समय नहीं हैं दर्द कैसे… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on September 3, 2010 at 5:54pm — 4 Comments

प्रेम का पर्याय है दोस्ती : जया केतकी

दोस्ती, एक ऐसा शब्द इसे जितना परिभाषित करने का प्रयास करो उतना विस्तार पाता है। पर न तो इसमें उलझन हैं और न ही किसी प्रकार के विरोधाभास का डर रहता है। अगर आपकी मित्रता पक्की है तो उससे अच्छा कोई अन्य रिश्ता नहीं। सदियों की विचारधाराओं के सम्मिश्रण से तैयार निष्कर्ष से यह पता चलता है कि समाज के हर वर्ग में दोस्ती की जितनी भी मिसालें हैं सभी यही कहती हैं। मसलन कृष्ण-सुदामा की मित्रता, मित्रता का दायरा परिभाषित नहीं है, फिर भी मित्रता करते समय यह विचार अवश्य ही कर लेना चाहिए कि आपकी मित्रता… Continue

Added by Jaya Sharma on September 2, 2010 at 7:30am — 4 Comments

अवतार हेतु आर्त-निवेदन

सभी ओपन बुक्स परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आईये हम और आप सब मिलकर सच्चिदानन्द घनआनन्द आनन्द स्वरूपा श्री कृष्ण भगवान को एक बार पुनः इस धरती पर अवतरित हो पापों का नाश करने का आर्त निवेदन करें!



हे देवताओं के स्वामी, सेवकों को सुख देने वाले, शरणागत की रक्षा करने वाले भगवान्! आपकी जय हो! ज्य हो!! हे गो-ब्राह्मणों का हित करनेवाले, असुरों का विनाश करने वाले, समुद्र की कन्या (श्रीलक्ष्मी जी)- के… Continue

Added by Narendra Vyas on September 2, 2010 at 6:44am — 4 Comments

चार पंक्तियाँ 'कान्हा' के 'नाम'...!!


घर तू आएगा ये जानती थी मैं...
इसलिए तो मटकी है जान के थोड़ी ऊँची बाँधी...
गुम हो तुझे कुछ पल निहार तो सकूँगी...
वरना तुझे देखने उमड़ पड़ती है हर पल गोपियों की आंधी...!!

::::जूली मुलानी::::
::::Julie Mulani::::

Added by Julie on September 2, 2010 at 1:30am — 2 Comments

बाल गीत: लंगडी खेलें..... -संजीव 'सलिल'

*

बाल गीत:



लंगडी खेलें.....



आचार्य संजीव 'सलिल'

*

आओ! हम मिल

लंगडी खेलें.....

*

एक पैर लें

जमा जमीं पर।

रखें दूसरा

थोडा ऊपर।

बना संतुलन

निज शरीर का-

आउट कर दें

तुमको छूकर।

एक दिशा में

तुम्हें धकेलें।

आओ! हम मिल

लंगडी खेलें.....

*

आगे जो भी

दौड़ लगाये।

कोशिश यही

हाथ वह आये।

बचकर दूर न

जाने पाए-

चाहे कितना

भी भरमाये।

हम भी चुप रह

करें… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 1, 2010 at 10:18pm — 6 Comments

रंगीन आतंकवाद

रंगीन आतंकवाद





'जननी जन्म भूमिष्च स्वर्गादपि गरीयसि' कि भावना से ओत-प्रोत एक युवा, सन्यासी,स्वामी विवेकानंद ने शिकागो कि धरती पर विश्व धर्म सम्मेल्लन में अपने व्याख्यान का प्रारंभ "DEAR SISTER AND DEAR BROTHER ...." से करके पूरी दुनिया में विश्व बंधुत्व के भाव से हिंदुस्तान का परचम लहराने वालI सन्यासी उस समय अपने भगवा वस्त्र में हिदुस्तान का मुकुट बना चमक रहा था,जिसे याद करके आज भी करोनो युवा उत्साह और स्फूर्ति व् नए उमंग से भर जाते हैं. उस सन्यासी, युवा को क्या पता था कि आगामी… Continue

Added by alka tiwari on September 1, 2010 at 5:42pm — 3 Comments

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