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कोई दीवानी इंतजार में शहीदों की ----

अक्सर कई मित्र पूछ लेते हैं हंसी मजाक में --भाई ये ग़ज़ल क्या होती है --
ग़ज़ल कह के ही समझाओ हमें --ऐसी ही मुश्किल को आसान करने का छोटा सा प्रयास
किया है हमने ---उन्हीं मित्रों को सादर समर्पित है
--------------------------------------
शमां से आँख लड़ी हो तो ग़ज़ल होती है ---
या के फिर खूब चढ़ी हो तो ग़ज़ल होती है |

तुम किसी शोख हसीना को छेड़ कर देखो --
जेल जाने की घडी हो तो ग़ज़ल होती है --|

वो शाम से ही अगर ले रहे हों अंगड़ाई --
तमाम रात पड़ी हो तो ग़ज़ल होती है-- |

जब भी सावन में नए हार के लिए बीबी --
थानेदारी पे अड़ी हो तो ग़ज़ल होती है |
|
उनके दीदार की हसरत में दम हो आँखों में --
और वो घूँघट में खड़ी हो तो ग़ज़ल होती है |
|
कोई दीवानी इंतजार में शहीदों की ----
कब्र पे जा के खड़ी हो तो ग़ज़ल होती है --|

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Comment by sanjiv verma 'salil' on September 11, 2010 at 10:46am
मुझको यह रचना रुची.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 6, 2010 at 9:25am
भिन्न भिन्न रंगों से सजी रंगोली की तरह लगी यह ग़ज़ल, श्रृंगार भी है बिरह भी, प्यार भी है इन्तजार भी, छेड़ छाड़ भी है तकरार भी है, बहुत ही उम्द्दा लगा मुझे, सबसे खुबसूरत शे'र जो मुझे लगा वो नीचे लिख रहा हूँ ....

उनके दीदार की हसरत में दम हो आँखों में --
और वो घूँघट में खड़ी हो तो ग़ज़ल होती है ,

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