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झूठ बोलने की जिद

यह जानते हुए
सच की खुशबू
एक दिन फैलेगी ही
उर्जा व्यर्थ गंवाते है हम
ढकने में उसे
झूठ की चादरों से ॥

सच वह ओस है
जिसे प्रत्येक दिन
झूठ का तमतमाता सूरज
गायब कर देता है ॥

मगर पुनः
कल सबेरे
सच का ओस
फिर हाज़िर हो जाता है
अपने चमकीले रूप में ॥

मेरे दोस्त ...
सच को परास्त करना नामुमकिन है
छोड़ दो जिद
झूठ बोलने की ॥

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 5, 2010 at 10:12am
अच्छी कविता है बब्बन भईया, सत्य यही है कि सत्य पराजित नहीं होता फिर भी हम झूठ पर झूठ बोले जा रहे है, आखिर क्यू ? एक अनुतरित प्रश्न,

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