पिताजी की डायरी से...
स्मृति में..
मेरे नगमे तुम्हारे लबो पर,
अचानक ही आते रहेंगें .
एक गुजरी हुई जिंदगी में ,
फिरसे वापस बुलाते रहेगें.
याद आयेगा तुमको सरोवर
और पीपल की सुन्दर ये छाया .
ये बिल्डिंग खड़ी याद होगी ,
जिसको यादों में हमने बसाया .
बरबस ये कहेंगे कहानी ,
और हम…
ContinueAdded by R N Tiwari on January 28, 2011 at 10:00am — 2 Comments
एक थैली बूंदी...
- शमशाद इलाही अंसारी "शम्स"
पता नहीं मुझे आज
एक थैली बूंदी की याद
इतनी क्यों आ रही है..?
आज के दिन..
जब स्कूल में
बंटा करती थी..
तमाम उबाऊ क्रिया कलापों
और न्यूनतम स्तर के
पाखण्डों के बाद
बस प्रतीक्षा रहती थी
कब मिलेंगी
वो, गर्म गर्म बूंदियों की
रस भरी थैलियां
जो, न जाने कब और कैसे
जुड़ गयी थी
गणतंत्र दिवस…
ContinueAdded by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on January 26, 2011 at 7:09pm — 9 Comments
Added by Abhinav Arun on January 26, 2011 at 7:00pm — 10 Comments
ओ. बी. ओ. परिवार के सम्मानित सदस्यों को सहर्ष सूचित किया जाता है की इस ब्लॉग के जरिये बह्र को सीखने समझने का नव प्रयास किया जा रहा है| इस ब्लॉग के अंतर्गत सप्ताह के प्रत्येक रविवार को प्रातः 08 बजे एक गीत के बोल अथवा गज़ल दी जायेगी, उपलब्ध हुआ तो वीडियो भी लगाया जायेगा
आपको उस गीत अथवा गज़ल की बह्र को पहचानना है और कमेन्ट करना है अगर हो सके तो और जानकारी भी देनी है, यदि उसी बहर पर कोई दूसरा गीत/ग़ज़ल मिले तो वह भी बता सकते है। पाठक एक…
ContinueAdded by RP&VK on January 26, 2011 at 5:00pm — 18 Comments
पिताजी की डायरी से.....
नेता जी.
Added by R N Tiwari on January 26, 2011 at 12:13pm — 3 Comments
Added by Sujit Kumar Lucky on January 26, 2011 at 9:30am — 6 Comments
हर रुख से चली यूं तो हवा अपने वतन में
सावन कभी पतझड़ न बना अपने वतन में
साज़िश तो बहुत रचते रहे अम्न के दुश्मन...
रिश्तों पे रही महरे-खुदा अपने वतन में
हर हीर के दिल में है बसी झांसी की रानी
हर रांझे में बिस्मिल है छिपा अपने वतन में
…
ContinueAdded by shahid mirza shahid on January 26, 2011 at 4:30am — 7 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 25, 2011 at 11:30pm — 9 Comments
Added by R N Tiwari on January 25, 2011 at 9:25pm — 1 Comment
Added by Abhinav Arun on January 25, 2011 at 3:51pm — 10 Comments
Added by R N Tiwari on January 25, 2011 at 11:33am — 1 Comment
दरख़्त बदल रहा है
स्वयं खा फल रहा है ।१।
मैं लाया आइना क्यूँ
ये सबको खल रहा है ।२।
दिया सबने जलाया
महल अब गल रहा है ।३।
छुवन वो प्रेम की भी
अभी तक मल रहा है ।४।
डरा बच्चों को ही अब
बड़ों का बल रहा है ।५।
लिखा जिस पर खुदा था
वही घर जल रहा है ।६।
दहाड़े जा रहा वो
जो गीदड़ कल रहा है ।७।
उगा तो जल चढ़ाया
अगन दो ढल रहा है ।८।Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 24, 2011 at 9:30pm — 3 Comments
Added by R N Tiwari on January 24, 2011 at 10:00am — 13 Comments
Added by shahid mirza shahid on January 23, 2011 at 7:00pm — 8 Comments
पिता जी की डायरी से....
हाय भगवन क्या दिखाया ,
शांति मन में विक्रांति लाकर .
सरज का नव पुष्प कोमल ,
अग्नि ज्वाला में फसाकर,
वेड ही दिवस महिना ,
श्वेत ही वर्ण था निशा का,
शास्त्र ही दिन शेष था.
सूर्य था पश्चिम दिशा का.
उत्साह का उस दिन था पहरा ,
नयन सबही के खिले थे.
एक वर वधु के व्याह में ,…
Added by R N Tiwari on January 23, 2011 at 6:30pm — 4 Comments
Added by shalini kaushik on January 23, 2011 at 9:46am — 2 Comments
सिमरन दो साल के बेटे विभु को लेकर जब से मायके आई थी उसका मन उचाट था, गगन से जरा सी बात पर बहस ने ही उसे यंहा आने के लिए विवश किया था | यूँ गगन और उसकी 'वैवाहिक रेल' पटरी पर ठीक गति से चल रही थी पर सिमरन के नौकरी की जिद करने पर गगन ने इस रेल में इतनी जोर क़ा ब्रेक लगाया क़ि यह पटरी पर से उतर गई और सिमरन विभु को लेकर मायके आ गयी | सिमरन अपने घर से निकली तो देखा विभु उस फूल की तरह मुरझा गया था जिसे बगिया से तोड़कर बिना…
ContinueAdded by shikha kaushik on January 23, 2011 at 9:00am — 2 Comments
महफिल में भी अनजाने हो गये |
आखों में ख्वाब जो दिखाया करते थे वो
Added by Ajay Singh on January 22, 2011 at 8:30pm — 1 Comment
घबरा जाता हूँ में
जब वो दिन याद आते हैं
पीड़ा के वो पल
टूट कर बिखर गया था में जब
वो रोज आँखें नम होना
वो हर हर बात पर आने वाली सिसकी
वो फूंक फूंक कर क़दमों को बढ़ाना
वो लाचार जिंदगी
रास्ते में पड़ा पत्थर जिसकी तकदीर का कोई पता नहीं
जाने कब कोई ठोकर मारकर आगे चल पड़े
जैसे उसका कोई वजूद ही नहीं
अपने अंजाम से बेखबर
वो छोटी छोटी चीज़ों का ध्यान रखना
वो बिस्तर पर पड़े रहकर रोज सोचते…
ContinueAdded by Bhasker Agrawal on January 22, 2011 at 3:16pm — 2 Comments
हर सुबह नई आशा के साथ जागो;
दिल में विश्वास रखो ऊपर वाले के प्रति;
गिरो अगर तो गिरकर संभालो खुद को;
जिन्दगी में जीत फिर तुम्हारी होगी!
ये मत सोचो क्या खो दिया;…
ContinueAdded by shikha kaushik on January 22, 2011 at 9:30am — 2 Comments
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