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सब अपने भी बेगाने हो गये

इस दुनिया में अब रहा न कोई अपना
अब तो सब अपने भी बेगाने हो गये ,                    
लगने लगा अब हमें कुछ ऐसा,

महफिल में भी अनजाने हो गये  |

 

आखों में ख्वाब जो दिखाया करते थे वो
 ही अब हमारे ख्यालों के नज़ारे हो गये ,
जो खाते थे  कसम  दोस्ती निभाने  की
करें क्या जब वो ही दुश्मन हमारे हो गये

विश्वास जताने वालों ही तोडा है विश्वास
तमन्नाओं के तार-तार अब हमारे हो गये
बीच मंझधार में लाके छोड़ दिया है हमको
किश्ती जो बनने चले थे किनारे हो गये  |

#####
*****उनको कहा गया था कठोर बनने को
कठोर भी ऐसे बने कि पत्थर हो गये !!!!!

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 24, 2011 at 9:23am

अजय जी , काव्य प्रतिभा है आपमे , ख्यालात अच्छे है , थोडा माजने की जरूरत है | आपने लिखा ...........

इस दुनिया में अब रहा न कोई अपना
अब तो सब अपने भी बेगाने हो गये ,                    
लगने लगा अब तो हमें जैसे - भरी
महफिल  में  भी हम वीराने  हो गये  |

विराना = सुनसान , यहाँ विराना कुछ नहीं जम रहा इसे कुछ इस तरह से कहा जा सकता है ................

इस दुनिया में कोई रहा न  अपना,
अब तो अपने सब बेगाने हो गये ,                    
लगने लगा अब हमें कुछ ऐसा,

महफिल में भी अनजाने हो गये  |

वैसे सबका अपना अपना विचार होता है , यह केवल मेरा सुझाव मात्र है अन्यथा नहीं लेंगे, अच्छा लगे तो ठीक नहीं तो हटा दे ,,,,,,,

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