सूरज की गरमी को देखो, पड़ती सब पे भारी
सूखे ताल तलैया भाई, पिघली सड़कें सारी
सूख चली देखो हरियाली, सहमा उपवन सारा.
पंथिन को तो छांह नहीं अब, क्योंकर चलता…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 7, 2012 at 12:30pm — 29 Comments
मंजिले ऊँची बनाना आज की तामीर है ,
इस सदी की दोस्तों कितनी अजब तस्वीर है ...
ये है कंप्यूटर सदी यानि ज़माना है नया ,
कितनी आसानी से बदली जा रही तस्वीर है ...
क्या कटेगी ज़िन्दगी अपनों की मोबाईल बगैर ,
ये हमारे दौर की मुंह …
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 7, 2012 at 11:30am — 11 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 7, 2012 at 9:30am — 15 Comments
औरत न तेरा दर कहीं काँटों भरी डगर है
तेरे जन्म के पहले ही बनती यहाँ कबर है l
रखती कदम जहाँ है गुलशन सा बना देती
फिर भी यहाँ दुनिया में होती नहीं कदर है l
ये नादान नहीं जानते कीमत नहीं पहचानते
तेरे बिन कायनात तो सूखा हुआ शजर है l
जब भी कहीं देश में कोई ज्वलंत समस्या उठी है तो चारों तरफ एक चर्चा का विषय बन जाती है. भ्रूण हत्या भी एक ऐसा ही विषय बना हुआ है. भारत में आये दिन खबरों में, या फिर कभी रचनाओं, कभी लेखों या सिनेमा के माध्यम से…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on May 7, 2012 at 6:00am — 12 Comments
मै ६ दिसंबर हूँ
मै ११ सितम्बर हूँ
२६ नवम्बर हूँ
आंसुओं का
महासागर हूँ मै !
--------------------------
गोल-गोल
बूँद भरी
पूर्ण हो
निकल पड़ी
-------------------…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 6, 2012 at 10:09pm — 5 Comments
मैंने अपनी हर दुआ में बस तुझे मांगा यहाँ
तेरे आने से मिला है अब मुझे सारा जहाँ
लब हैं नाजुक पंखुड़ी से ये गुलाबों की तरह
जुल्फों में उलझे पड़े जो जी रहे हैं अब कहाँ
भूलूं कैसे "दीप" आखिर वो हया रुखसार की
उनके बिन कैसे रहूँगा मैं यहाँ औ वो वहाँ
…………."दीप"…………..
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 6, 2012 at 8:48pm — 3 Comments
तुम क्या समझो तुम क्या जानो
है पीर कहा ? है दर्द कहाँ ?
क्यों है मन आकुल व्याकुल सा
क्यों है तन थका थका सा ये
क्यों हार - हार कर भी लेती हूँ
जीने की प्रबल प्रतिग्या मैं
क्यों बुझे हूऐ दीपों में मैं
आशा की जोत जलाती हूँ
क्यों हूँ रूठी हूँ दुनिया से मैं
क्यों फिर भी सबसे हिली मिली
हैं प्रश्न बहुत पर फिर भी
मैं क्यों खडी - खडी मुस्काती हूँ ?
क्या है ? क्यों है ? कैसा है ?
प्रश्नों की ठेलम ठेली है !
हो चकित देख कर…
Added by Monika Jain on May 6, 2012 at 7:00pm — 11 Comments
दर्द भरा है ये समां, होने लगा धुआं धुआं.
ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.
दो पल मुझे हंसा गया, सदियों मगर रुला गया.
सीने में आग जल गयी, इतना मुझे सता गया,
रोने लगा रुवां रुवां, चल दिल चलें अपने…
ContinueAdded by इमरान खान on May 6, 2012 at 11:41am — 7 Comments
Added by Nilansh on May 6, 2012 at 9:30am — 6 Comments
उफ़!.... बड़ी गर्मी है!
घर के दरवाजे-खिड़कियाँ बंद हैं
एयर कंडीसन ऑन है
बहुत अच्छा लग रहा है!
तभी,
बिजली चली गयी!
थोड़ी देर बाद ही
तन से, निकलने लगे पसीने!
ओह कैसी चिपचिपाहट,
कपड़े हो गए गीले!
खिड़की खोलकर झाँका
एक गर्म हवा का झोंका
मानो चेहरे की कोमलता को
निचोड़ गया
तन को झकझोड़ गया!
उफ़!... बड़ी गर्मी है!
मैं पांचवी मंजिल से झांक रहा था
देखा,
कुछ मजदूर इस गर्मी में भी
मन लगाकर,
हंसमुख चेहरे दिखाकर
काम कर रहे…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2012 at 6:27am — 19 Comments
एक नयी दुनिया
एक नयी दुनिया देखी है … अन्तः मन की आँखों से
जिसमे कोई रंग नहीं हैं , पर सारे रंगों से सुन्दर…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on May 5, 2012 at 9:42pm — 6 Comments
कुछ नया इसमें नहीं , दास्तां पुरानी दे गया
Added by dilbag virk on May 5, 2012 at 8:18pm — 6 Comments
Added by Abhinav Arun on May 5, 2012 at 7:11pm — 17 Comments
न जाने क्यूँ किसी को खल रहा हूँ ,
मै अपनी रह गुज़र पर चल रहा हूँ ....
दीया हूँ हौसलों का इसलिए मै ,
मुकाबिल आँधियों के जल रहा हूँ ....
मै तेरे नाम की शोहरत हूँ शाएद ,
इसी बयेस सभी को खल रहा हूँ .....
मुझे तू याद रखे या भुला दे ,
मै तेरी याद में हर पल रहा हूँ ....…
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 5, 2012 at 12:30pm — 17 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 5, 2012 at 12:00am — 10 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on May 4, 2012 at 8:47pm — 32 Comments
खूबसूरत सपनों नें
कितनी रातों को मुझे जगाया,
कंटीले रास्तों पर
बेतहाशा दौड़ाया,
बार-बार गिराया..
फिर भागने के लिए
सम्हल सम्हल उठना सिखाया,
और मैं भागती गयी...
घायल पैरों के
फूटे छालों से
रिसते लहू की
परवाह किये बिना
बस भागती गयी...
पर
हमेशा
सिर्फ दो कदम के फासले पर
मुस्कुराते रहे सपने ..
मुझे भगाते रहे सपने..
हाथ आते ही
फिर रूप बदल
सिर्फ दो कदम से
मुझे ललचाते रहे सपने..
एक न बुझने…
Added by Dr.Prachi Singh on May 4, 2012 at 4:00pm — 16 Comments
खोल दिए पट श्यामल अभ्रपारों ने
मुक्त का दिए वारि बंधन
नहा गए उन्नत शिखर
धुल गई बदन की मलिनता …
ContinueAdded by rajesh kumari on May 4, 2012 at 10:30am — 20 Comments
-नसीब-
कहते हैं,नसीब से जो होता है,वो बहुत अच्छा होता है,
नसीब से ही मिलना और नसीब से ही कोई जुदा होता है,
बिछड जाते है अपने दिल के टुकड़े भी कभी-कभी..
देता है खुदा वही जो हमारे लिये अच्छा होता हैं ll
नसीब के भरोसे न कभी हाथ पे हाथ धर बैठना यारो,
न होना परेशां जो न मिल पाये मेहनत का फल यारो,
इंसान की मेहनत के आगे दुनिया का सर भी झुका होता…
Added by praveen on May 4, 2012 at 10:00am — 9 Comments
छन्न पकैया .......
Added by AVINASH S BAGDE on May 4, 2012 at 10:00am — 17 Comments
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