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औरत न तेरा दर कहीं काँटों भरी डगर है  

तेरे जन्म के पहले ही बनती यहाँ कबर है l

रखती कदम जहाँ है गुलशन सा बना देती     

फिर भी यहाँ दुनिया में होती नहीं कदर है l  

ये नादान नहीं जानते कीमत नहीं पहचानते

तेरे बिन कायनात तो सूखा हुआ शजर है l 

जब भी कहीं देश में कोई ज्वलंत समस्या उठी है तो चारों तरफ एक चर्चा का विषय बन जाती है. भ्रूण हत्या भी एक ऐसा ही विषय बना हुआ है. भारत में आये दिन खबरों में, या फिर कभी रचनाओं, कभी लेखों या सिनेमा के माध्यम से इस समस्या की तरफ जनता का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश होती है. बिडम्बना ये है कि गरीबी के कारण उनमें लड़कियों के भ्रूण की हत्यायें अधिक होती है. कहीं पर गरीबी ऐसा करने को विवश करती है तो कहीं नाजायज़ औलाद होने के कारण ऐसा होता है. जो भी कारण हों किन्तु पाप-पुन्य की इतनी बातें करने वाले देश में, जहाँ बेटियों को देवी समान समझा जाता है और कई व्रत-उपवास में उन्हें जिमाया जाता है व उनके पैर पूजे जाते हैं, जन्म देते समय उनका ये अपमान...हत्या का प्लान !  

एक औरत जो बच्चे को जन्म देती है वो भी कभी बेटी बन कर ही पैदा होती है. किन्तु जब भी उसकी कोख से बेटी के जन्म का आभास मिलता है तो परिवार में सबके चेहरे लटक जाते हैं. ऐसी सोच क्यों रखते हैं लोग? आजकल बेटियाँ पढ़ लिखकर अपने कदमों पर खड़ी होकर खुद के लिये वर ढूँढने की भी हिम्मत रखती हैं. किन्तु कुछ पिछड़े हुये वर्ग शायद गिरी हुई आर्थिक परिस्थितियों से या कहो कि बेटी को अब भी एक भार की तरह समझकर उसे जन्म देने से बचते हैं. उसे इस दुनिया में एक कली बन कर भी आने का अवसर नहीं मिलता, फूल बनकर मुस्कुराने की बात तो अलग रही.

समाज के डर से आजकल भी भारत ही क्या पश्चिमी देशों में भी कई बार नाजायज औलाद को लोग कूड़ेदान, नाली या सड़क के किनारे फेंक जाते हैं. जानवरों को तो लोग घर में पालते हैं और इंसान अपने शरीर के टुकड़े को फेंक देते हैं. अभी दो दिन पहले ही एक जगह यू.के. में जहाँ सारे शहर का कूड़ा लाकर इकठ्ठा किया जाता है वहाँ कचरे के दुर्गन्धित ढेर पर एक मरा हुआ नवजात शिशु पाया गया जिसे देखकर किसी ने खिलौना समझकर जब हाथ में उठाया तो वो मरा हुआ बच्चा निकला. खबर में जब ये बात आयी तो काफी खोजबीन के बाद जन्म देने वाली माँ का पता लगा. जिसने जन्म तो दिया किन्तु इतनी कम उम्र होने की वजह से व परिवार के डर से पालने की क्षमता नहीं रखती थी तो अपने बच्चे को कूड़े के ढेर में फेंक गयी. मजबूरी ने माँ की ममता को हरा दिया था. किन्तु बाद में पश्ताताप होने पर उसका रो-रोकर बुरा हाल हुआ.   

भारत में तो समस्या बहुत गंभीर है. वैसे पश्चिमी सभ्यता के देशों में ये समस्या कम नहीं है. ऐसे बच्चे कभी शादी के पहले, कभी अपहरण का परिणाम या कभी उनकी परवरिश की समस्या का सामना ना कर पाने की वजह से कूड़ेदान, झाड़ के नीचे, या चर्च के बाहर अक्सर पाये जाते हैं. या फिर लोग अस्पताल में ही बच्चे को चुपचाप छोड़कर चले जाते हैं. अब कई देशों में कुछ ऐसी जगहें बना दी गयी हैं जहाँ ‘बेबी बिन’ यानि झूला या पालना रख देते हैं और लोग अनचाहे बच्चे उसमें चुपचाप रख कर चले जाते हैं. और वहाँ उनका चैरिटी से चलाई गयी संस्था पालन-पोषण करती है. कुछ अच्छी तकदीर वाले बच्चे संतान रहित लोगों द्वारा गोद भी ले लिये जाते हैं.  

ये भाग्य की बिडम्बना ही तो है कि जहाँ लोग एक बच्चे के लिये तरसते हैं, इलाज कराते हैं, दरगाह व मंदिरों में जाकर मन्नतें माँगते हैं अपने खुद के बच्चे के लिये वहाँ बेटा या बेटी होने के बारे में कोई पक्षपात का सवाल ही नहीं उठता. और दूसरी तरफ वो वाकये हो रहे हैं जहाँ बिन माँगे हुये ही ईश्वर लोगों को छप्पर फाड़ कर अनचाही औलादें दे रहा है. पर वो लोग अपनी आर्थिक स्थिति से इतने लाचार हैं कि उनकी बच्चों को पालने की चिंता से रातों की नींद हराम हो रही है. फिर भी वो बेटा या बेटी की परवाह ना करते हुये उन्हें ईश्वर की देन समझ कर स्वीकार करते है. मेक्सिको में एक औरत, जो केवल ३२ साल की है और पहले से ही चार बच्चों की माँ है, कुछ हफ़्तों बाद इकट्ठे नौ बच्चों को जन्म देने जा रही है. उसे दिन रात उन बच्चों के भविष्य की चिंता लगी रहती है कि इतने सारे बच्चों को कैसे पालेगी. ऐसे ही अमेरिका में एक औरत, जिसे लोगों ने ‘आक्टोमम’ नाम दे रखा है क्यों कि करीब तीन साल पहले उसके आठ बच्चे हुये थे (सभी जिन्दा हैं ईश्वर की कृपा से) अब गरीबी की अवस्था में मजबूरी के कारण अपने बच्चों की परवरिश करने और सर पर छत बनाये रखने के लिये किसी पोर्न मूवी में काम करने पर विवश हो गयी है ताकि सर पर से उधार का कर्ज उतार सके व घर की कुड़की होने से बचा सके. उसके पास और कोई चारा नहीं है वरना उसके बच्चों को सोशल वेलफेयर वाले ले जायेंगे. अब वह अपने बच्चों को अपने पास रखकर उनकी परवरिश की खातिर वो काम करने जा रही है जो वह कभी नहीं करना चाहती थी. ऐसी कुर्बानी भी अपने बच्चों के लिये एक माँ ही दे सकती है.

एक औरत कभी तो कोख में मर जाती है

या फिर उसकी जिंदगी जहर बन जाती है l 

-शन्नो अग्रवाल     

 

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Comment by Shanno Aggarwal on May 12, 2012 at 3:15am

भावेश जी, लेख पढ़ने और इसकी सराहना के लिये आपका हार्दिक धन्यबाद.

Comment by Bhawesh Rajpal on May 10, 2012 at 10:28am
आपके इस लेख ने अन्दर तक हिला दिया  ! ऐसे बच्चे जिन्हें जन्मोपरांत  अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है ,
 उन्हें सजा मिलती है ,उस  अपराध की जो उन्होंने किया ही नहीं  ! मासूमों का इस संसार में ऐसा स्वागत !
काश ! ईश्वर मुझे इतना साम्यर्थ्वान  बनाए कि किसी बच्चे को असहाय न रहना पड़े ! 
Comment by Shanno Aggarwal on May 8, 2012 at 10:01pm

धन्यबाद सुरेन्द्र जी. ये ज्वलंत मुद्दा इन दिनों एक चर्चा का विषय बना हुआ है. 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 7, 2012 at 11:28pm

आदरणीय शन्नो जी ..भ्रूण हत्या समाज का एक घिनौना रूप बन के उभर रहा है विरोध का  स्वर जारी रहे ...बहुत कुछ  उल्टा हो रहा है .. हर कुछ दिख रहा है समाज  में . -सटीक -भ्रमर ५ 

Comment by Shanno Aggarwal on May 7, 2012 at 11:24pm

गणेश जी, छोटू जी एवं अरुण जी, आप सबकी भावाव्यक्ति के लिये साभार धन्यबाद. इस तरह के मुद्दों पर समाज में जागरूकता की ही जरूरत है. 

Comment by Abhinav Arun on May 7, 2012 at 6:29pm

आज के हालात बयां करता आलेख आदरणीया शन्नो जी !! हमें सोचने पर विवश करता है ! इस मंथन विन्दु की प्रस्तुति हेतु हार्दिक साधुवाद !!

Comment by ganesh lohani on May 7, 2012 at 3:08pm

बहुत अच्छा सन्देश शन्नो दीदी | बधाई|

Comment by Shanno Aggarwal on May 7, 2012 at 2:10pm

राजेश कुमारी जी, प्राची जी, प्रदीप जी एवं महिमा जी, आप लोगों ने इस लेख को पढ़ा और सराहा इसके लिये अत्यंत आभार व हार्दिक धन्यबाद. 

दुनिया भर में ही ऐसे किस्से हो रहे हैं. लेकिन उस औरत के बारे में सोचकर मन बेचैन हो जाता है जिसकी परिस्थितियाँ उसे कितना मजबूर कर देती होंगी और साथ में कलंक का भय भी कि उसे अपनी संतान से जुदा होना पड़ता है. कैसी कशमकश का सामना करती होगी वो और जीवन पर्यन्त अपने को कभी माफ नहीं कर पाती होगी. शायद जिस तरह अन्य समस्याओं को लेकर समाज के दृष्टिकोण में परिवर्तन आ रहा है उसी तरह इस तरफ भी भविष्य में शायद कुछ बदलाव आये.  

Comment by MAHIMA SHREE on May 7, 2012 at 1:06pm
आदरणीया शन्नो दी ,
सादर नमस्कार
समाज के एक ज्वलंत मुद्दे को आपने सिर्फ भारतीय सामाजिक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि विश्व पटल पे रख के देखा .. और सच्चाई भी यही है
बहुत-२ बधाई आपको ..
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 7, 2012 at 10:41am

आदरणीय  अग्रवाल जी , सादर. 

बहुत सुन्दर, प्रभावशाली ढंग से सभी क्षेत्रों को समाहित करते हुए प्रस्तुति हेतु बधाई.

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