सचमुच कभी नहीं आ सकता इतना अच्छा राज
हर भ्रष्ट भ्रष्टाचार की गंगा में नहा रहा है आज
जितने पैसो में पूरे महीने का राशन लाते थे पिताजी
उतने पैसो में ला रहा हूँ मै मुठ्ठी भर अनाज
Added by RAJESH GOGIYA on June 8, 2012 at 1:00pm — 5 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on June 8, 2012 at 10:45am — 8 Comments
लुटेरे वतन के वतन बेच देंगे
धरा लुट गयी तो गगन बेच देंगे
सजावट बनावट जिसे भा रही हो
कली फूल क्या है चमन बेच देंगे
अगर आँख खोली न अपनी अभी तो
फरेबी कलामो- रमन बेच देंगे
बनाया नहीं गर नया कुंड कोई…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 8, 2012 at 9:06am — 8 Comments
ऋषि मुनियों की ये धरती
बहती ज्ञान की गंगा
योगी सिद्ध जन पूजे जाते
था मन निर्मल तन चंगा
कोई गाये लहराए कोई पूछे
बाबा रे बाबा तेरा रंग कैसा
दिव्य मुस्कान ले बाबा बोले
जिसमें मिला दो उस जैसा
काल बदला विचार बदला
आदमी का हाल बदला
अंधविश्वास आधुनिकीकरण की दौड़
बाबाओं ने भी चोला बदला
बिकता पानी बिकता खून
बिकती भूख गिरते भ्रूण
अस्मत बिकती कटते वन
सफ़ेद चोला काला मन
बिक रही जब हर चीज
बाबा फिर…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 7, 2012 at 9:30pm — 12 Comments
मीनू की डोली जब प्रशांत के घर के आगे रुकी तो दरवाजे पर पूजा की थाली लिए शिखा खड़ी थी | शिखा ने आगे बढ़ कर अपने प्यारे भैया प्रशांत और अपनी प्यारी सखी जो आज दुल्हन बनी ,भाभी के रूप में उसके सामने खड़ी थी ,आरती उतार कर स्वागत किया |बर्तन में भरे हुए चावल को अपने पैर से बिखराते हुए ,पूरे रीति रिवाज के अनुसार मीनू ने अपने ससुराल में प्रवेश किया |पूरा घर खुशियों से चहक उठा ,शिखा ने मीनू को गले लगाते हुए कहा ,''आज तुम्हारा पांच साल से परवान चढ़ता हुआ प्रेम सफल हुआ ,मै जानती हूँ तुम और…
ContinueAdded by Rekha Joshi on June 7, 2012 at 5:25pm — 23 Comments
मन मेरे
हिम्मत न हार
जय तेरी होगी|
निरंतर अग्रसर हो
कर्म के पथ पर,
प्रत्याशा के रथ पर
मिटा के अंतर्द्वंदों को
त्याग आलस्य को,
घातक नैराश्य को
तुझमें नैर्गुण्य नहीं,
तू बिलकुल शून्य नहीं
तुझमें भी क्षमता है
अपनी महत्ता है|
स्वयं की पहचान कर
खुद पर अभिमान कर,
शंखनाद कर दे
अस्तित्व के संग्राम का,
भय क्या परिणाम का
निर्भीकता शस्त्र है
मार्ग प्रशस्त है,
कल्पना के चित्र को
यथार्थ पर उकेर,…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 7, 2012 at 4:30pm — 10 Comments
मैं भी कुछ सुनाऊं तुमको,
जो ऐसी भी शक्ति दी होती
हे माँ तेरी चरणों में,
कुछ मेरी भी अर्जी तो होती
मैं दीन हूँ माँ समझो,
पर हीन न समझा करो
सीने से न अपने सही,
चरणों से न दूर करो
मैं पुत्र कुपुत्र हूँ माँ,
समझा न तेरे मन को
तुम तो माँ कुमाता नहीं,
समझो तो मेरे मन को
थोड़ा मुझ को भी दे दो माँ,
स्नेह अपनी झोली से तुम
है माँ बेटे का नाता,
माँ खोयी हो कहाँ तुम | …
Added by जगदानन्द झा 'मनु' on June 7, 2012 at 1:00pm — 6 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on June 7, 2012 at 12:36pm — 8 Comments
आँखें भर आयेंगी, ये दिल भी रो जायेगा
Added by Ajay Singh on June 7, 2012 at 12:09pm — 6 Comments
कितना झूठा, कितना साचा बाबाजी
हमने सब का चेहरा बांचा बाबाजी
अग्निपथ टू देख के दर्शक चौंक उठे
विजय से ज़्यादा हॉट है कांचा बाबाजी
जुहू तट पर अपनी अपनी आयटम संग…
Added by Albela Khatri on June 7, 2012 at 9:22am — 22 Comments
एक बड़ा आदमी अभी बोला कि वो माँगने कू नहीं गया था | उसे तो महामहिम ने अपने आप दे दिया , तो वो ले लिया | वो एकदम ई सच्ची बोला | क्यूं , इस वास्ते कि बड़ा आदमी छोटा चीज कभी नईं मांगता | बड़ा चीज भी वो एसीच्च नईं मांगता | बड़ा आदमी का माँगने का कला भी बड़ा ई अलग होता | अपुन जैसा मिडिल क्लास मांगेगा तो बोलेगा कि मिल जाएगा तो बड़ा मेहरबानी होगा , अक्खा लाईफ ओबलाईज रहेगा | थोड़ा और नीचे जायेंगा , बोले तो एकदम फटीचर क्लास में तो वो बोलेगा कि माईं बाप अपुन…
ContinueAdded by अरुण कान्त शुक्ला on June 6, 2012 at 11:30pm — 13 Comments
यूँ बदनाम अपना वतन हो रहा है
था धरती कभी अब गगन हो रहा है
जो चढ़ फूल देवों 'प' इतरा रहे हैं
बे-ईमान सारा चमन हो रहा है
जो पग में चुभा था कभी खार बनके
वो झूठा फरेबी सुमन हो रहा है
दी आहूति सपनों भरी अब युवा ने…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 6, 2012 at 6:00pm — 10 Comments
खंडेला गाँव से गौरी गंगोत्री नगर उच्च सिक्षा हेतु आई जहां उसने विवेकानंद महाविद्यालय में दांखिला लिया | तीन वर्ष की अध्ययन अवधि में उसकी सुनीला के साथ मित्रता ही नहीं, बल्कि परिवार के लोगो के साथ भी अच्छा परिचय हो गया | धीरे धीरे सुनीला का भाई धर्मेन्द्र गौरी को चाहने लगा | धर्मेन्द्र के पिताजी प्रोफ. सोमेंद्रनाथ टेगोर महाविद्यालय से सेवा निवृत होगये | उन्होंने होनहार लड़की देखकर गौरी के पिता से अपने लडके धर्मेन्द्र का रिश्ता करने का प्रस्ताव् किया, जो गौरी के पिता ने गौरी की भावनाओ को देखते…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 6, 2012 at 5:30pm — 6 Comments
होता हूँ जब अकेला चुपके से आता है
मुझे मेरा गाँव याद अब भी आता है
कभी बन आँखों में आँसू
कभी बन दिल में कसक
रातों को जगाने सपनों में
मुझे मेरा गाँव याद अब भी आता है
मैं अपने गाँव का, गाँव मेरा है
उसके सपने सारे सपने मेरा है
होता हूँ जब अकेला चुपके से आता है
मुझे मेरा गाँव याद अब भी आता है
मैं अपने गाँव को सम्हालूँगा
मैं अपने सपनों को फिर से सजाऊंगा
टूटा हुआ तारा हूँ मैं जिस गाँव का
फिर से…
Added by जगदानन्द झा 'मनु' on June 6, 2012 at 5:30pm — 12 Comments
क़त्ल करना है तो सबका करो
मुझ अकेली को मारने से क्या होगा
अगर मिटाना है मेरी हस्ती को
तो सबको मिटाओ ..............
मुझ अकेली को मिटाने से क्या होगा ..............…
Added by Sonam Saini on June 6, 2012 at 3:30pm — 12 Comments
दुश्मनों तुम सरहदों के पार मत देखा करो॥
आँख जल जाएगी ये अंगार मत देखा करो॥
ऐ मसीहा इस तरह बीमार मत देखा करो॥
आदमी में सिर्फ तुम आज़ार मत देखा करो॥…
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 6, 2012 at 12:00pm — 6 Comments
यह जो शहरीकरण हो रहा बाबाजी
हरियाली का हरण हो रहा बाबाजी
चीलें, कौए, चिड़ियाँ, तोते, तीतर संग
वनजीवन का…
Added by Albela Khatri on June 6, 2012 at 12:00pm — 20 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 6, 2012 at 10:30am — 25 Comments
दोहा मुक्तिका:
पल पल हो मधुमास...
संजीव 'सलिल'
*
आसमान में मेघ ने, फैला रखी कपास.
कहीं-कहीं श्यामल छटा, झलके कहीं उजास..
*
श्याम छटा घन श्याम में, घनश्यामी आभास.
वह नटखट छलिया छिपे, तुरत मिले आ पास..
*
सुमन-सुमन में 'सलिल' को, उसकी मिली सुवास.
जिसे न पाया कभी भी, किंचित कभी उदास..
*
उसकी मृदु मुस्कान से, प्रेरित सफल प्रयास.
कर्म-धर्म का मर्म दे, अधर-अधर को हास.
*
पूछ रहा मन मौन वह, क्यों करता परिहास.
क्यों दे पीड़ा उन्हीं को,…
Added by sanjiv verma 'salil' on June 6, 2012 at 9:40am — 6 Comments
कविताओं में बाँचिये , शीतल मंद समीर
शब्दों में ही बह रहा , निर्मल निर्झर नीर
निर्मल निर्झर नीर,हरा वसुधा का आँचल…
Added by अरुण कुमार निगम on June 6, 2012 at 12:30am — 12 Comments
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