देखा है कई बार
अनीति के बढ़ते क़दमों को
शिखर तक जाते हुए
देखा है कई बार
दुष्टों को....सूर्य पर मंडराते हुए
किन्तु कभी नहीं सोचा
कि होकर शामिल उनमें
मैं भी पाऊं सामीप्य गगन का/
ना ही सोचा कि मैं छोडूं
धरा नीति की
और विराजूं उड़ते रथ में/
है भीतर कुछ ऐसा बैठा
देता नहीं भटकने पथ में/
हे ईश् मेरे कहीं वो तुम तो नहीं
देखा है कई बार
सत्य को युद्धरत/
क्षत विक्षत...आहत/
सांस तक लेने के…
Added by Pushyamitra Upadhyay on October 17, 2012 at 10:23pm — 4 Comments
चारागर की ख़ता नहीं कोई.
दर्दे-दिल की दवा नहीं कोई.
आप आये न मौसमे-गुल में,
इससे बढ़कर सज़ा नहीं कोई.
ग़म से भरपूर है किताबे-दिल,
ऐश का हाशिया नहीं कोई.
देख दुनिया को अच्छी नज़रों से,
सब भले हैं बुरा नहीं कोई.
सच का हामी है कौन पूछा तो,
वक़्त ने कह दिया नहीं कोई.
है सफ़र दश्ते-नाउम्मीदी का,
मौतेबर रहनुमा नहीं कोई.
अपने ही घर में हैं पराये हम,
बेग़रज़ राबता नहीं कोई.
इस…
Added by लतीफ़ ख़ान on October 17, 2012 at 6:00pm — 8 Comments
कुहरीले जंगल में हंसती
हरी हवा सी चलती हूं
मुक्त गगन से गिरी ओस हूं
तृण टुनगों पर पलती हूं
हू हू करता आंख दिखाता
रे तमस किसे भरमाता है
देख मेरा बस एक नाद ही
कैसे तुझे जलाता है
अभी जरा निष्पंद पड़ी हूं
कहां अभी तक हारी हूं
भूल न करना मरी पड़ी हूं
अबला,बाल,बेचारी हूं
अरे कुटिल यह चाप तुम्हारा
वृथा चढ़ा रह जाएगा
तेरा ही तम कहीं किसी दिन
तुझको भी डंस…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 17, 2012 at 5:02pm — 3 Comments
हमने चुना था सोंचकर, इनमे उनके वंश का ही खून है
वे स्वर्ग से बहाते आंसू, लजाया इसने मेरा ही खून है |
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 17, 2012 at 4:51pm — No Comments
यह मेरा दर्द है,आँखों से छलक आता है
यूँ ही पैमाना,बदनाम हुआ जाता है
लाख कह ले यह ज़माना,न जीना आया हमें
वक़्त अच्छा हो बुरा हो,गुज़र तो जाता है
सबको हँसता हुआ देख लूँ,मैं चला जाऊँगा
यूँ भी "दीपक" जलनें से कहाँ बच पाता है
मैं न अपनों को याद आऊँ,न गैरों को
प्यार उस हद तक मेरा मुझको,नज़र आता है…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 17, 2012 at 1:00pm — 3 Comments
================गायत्री छंद=====================
यह इस छंद पर सिर्फ एक प्रयोग है अंतरजाल के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार
२४ वर्णों के इस छंद में इसमें तीन चरण होते हैं
इस छंद का इक विधान जो गायत्री मंत्र की तरह ही है
विधान -\\१ भगण १रगण १ मगण १ तगण......१ भगण १ यगण १ रगण १ जगण\\…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 17, 2012 at 12:00pm — No Comments
Added by Rekha Joshi on October 17, 2012 at 11:57am — 7 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 17, 2012 at 11:44am — 3 Comments
वही हँसाता है हमें, वही रुलाता है
गम ओर ख़ुशी देकर आज़माता है
अपनों की अहमियत भी सीखाता है
बिछुडों को फिर वही मिलाता है
यकीं खुदा का तो बड़ा सीधा है
मारता है वही,वही जिलाता है
इसका उसका क्या है जग में
सबका हिस्सा तो वही बनाता है
नेमतें उसकी तो बड़ी निराली है
छीनता है कभी,कभी दिलाता है
मेरे घर में कभी तुम्हारे घर में
खुशियाँ भी तो वही पहुँचाता है
आखिर भूले…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on October 17, 2012 at 11:15am — No Comments
यह हिन्दोस्तान है प्यारे
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 17, 2012 at 10:52am — No Comments
आप सभी को शारदीय नवरात्र की अनेकानेक शुभकामनाएं
"गायत्री छंद"
विधान -\\१ भगण १रगण १ मगण १ तगण......१ भगण १ यगण १ रगण १ जगण\\
२ १ १ - २ १ २ - २ २ २ - २ २ १ , २ १ १ - १ २ २ - २ १ २ - १ २ १
माँ कमला सती दुर्गा दे दो भक्ति, हो तुम अनंता माँ महान शक्ति ||…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 17, 2012 at 10:30am — No Comments
लेख:
हमारे सोलह संस्कार
संजीव 'सलिल'
*
अर्थ:
'संस्कारो हि नाम संस्कार्यस्य गुणकानेन, दोषपनयेन वा' अर्थात गुणों के उत्कर्ष तथा दोषों के अपकर्ष की विधि ही संस्कार है।
शंकराचार्य के ब्रम्ह्सूत्र के अनुसार किसी वस्तु, पदार्थ या आकृति में गुण, सौंदर्य, खूबियों को आरोपित करना / बढ़ाना तथा उसकी त्रुटियों, कमियों, दोषों को हटाने / मिटने का नाम संस्कार है।
संस्कृत भाषा में प्रयुक्त क्रिया (धातु) 'कृ' के पूर्व सम उपसर्ग तथा पश्चात् 'आर' कृदंत के संयोग से बने इस शब्द…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 16, 2012 at 10:09pm — 1 Comment
आँखों मे उम्मीदों के चिराग रख गया कोई
फिर जलने का असबाब रख गया कोई
पकड़कर मेरा चोरी से देखना उसको
राज़-ए-दिल बेनकाब रख गया कोई
करके वादा सफर मे साथ देने का
हौसले बेहिसाब रख गया कोई
झुकाकर शर्म से अपनी पलकें
मेरे सवाल का जवाब रख गया कोई
मेरी नींदों से महरूम आँखों मे
जिंदगी के ख्वाब रख गया कोई
शरद
Added by शरद कुमार on October 16, 2012 at 3:29pm — No Comments
==========ग़ज़ल===========
बहरे - रमल मुसम्मन मह्जूफ़
वज्न- २ १ २ २- २ १ २ २ - २ १ २ २- २ १ २
पीर है खामोश भर के आह चिल्लाती नहीं
वो सिसकती है ग़मों में नज्म तो गाती नहीं
बाद दंगों के उडी हैं इस कदर चिंगारियाँ
आग है सारे दियों में तेल औ बाती नहीं
जिन सफाहों पर गिराया हर्फे-नफ़रत का जहर
हैं सलामत तेरे ख़त वो दीमकें खाती नहीं
चाँद को पाने मचलता जब समंदर…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 16, 2012 at 2:00pm — 14 Comments
जिम्मेदारियाँ
हो राज या समाज
धर्म निभाना
जिम्मेदारियाँ
खुद का आंकलन
जाँच परख
जिम्मेदारियाँ
जब भी हो चुनाव
खरा ही लेना
जिम्मेदारियाँ
धरती या आकाश
प्यार ही बाँटे
Added by नादिर ख़ान on October 16, 2012 at 12:44pm — 3 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on October 16, 2012 at 11:00am — 15 Comments
मत्तगयन्द सवैया
नारि सँवार रही घर बार, विभिन्न प्रकार धरा अजमाई ।
कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई ।
सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई ।
जीवन में अधिकार मिले कम, कर्म सदा भरपूर निभाई…
ContinueAdded by रविकर on October 16, 2012 at 9:45am — 9 Comments
नव रात्री नव रात है,नव जीवन संदेश/
तन मन भवन शुद्ध रखो,आये माँ किस भेष//
भक्तगण नव रात्री में,रखते हैं उपवास/
कन्या पूजन भी करें,माँ का यही निवास//
देखो कैसे सज रहा,माता का दरबार/
माँ के दर्शन को लगी,लम्बी बहुत कतार//
जयकारों से मात के,गूंज रहा दरबार/
माता का आशीष ले,पायें शक्ति अपार//
गरबा रमती मात है,चहुँ दिसि उत्सव होय/
भक्त यहाँ सुख पात हैं,सबके मंगल…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on October 16, 2012 at 7:59am — 11 Comments
देख-देख दुनिया हँसी, मन ही मन में कोसती |
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||
कैसा गड़बड़झाल ये, जाने कैसा खेल है,
लोटे औ जलधाम का, होता कोई मेल है |
आ जाएगा घूम के, सबकी खोपड़ सोचती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||
पौधा है नवजात ये, कोमल इसकी डाल है,
हट्टा-कट्टा पेड़ तो, मानो गगन विशाल है |
बुढ़िया काकी…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 16, 2012 at 7:27am — 12 Comments
दोहा सलिला:
सूत्र सफलता का सरल
संजीव 'सलिल'
*
सूत्र सफलता का सरल, रखें हमेशा ध्यान।
तत्ल-मेल सबसे रखें, छू लें नील वितान।।
*
सही समन्वय से बने, समरस जीवन राह।
सुख-दुःख मिलकर बाँट लें, खुशियाँ मिलें अथाह।।
*
रहे समायोजन तभी, महके जीवन-बाग़।
आपस में सहयोग से,…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 15, 2012 at 8:00pm — 6 Comments
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