पाप-पुण्य की कसौटी -एक लघु कथा
चरण कमल रखे तभी वहीँ पास में बैठा प्रभात का पालतू कुत्ता बुलेट उन पर जोर जोर से भौकने लगा .गुरुदेव के उज्जवल मस्तक पर क्षण भर को कुछ लकीरें उभरी और फिर होंठों पर मुस्कान .गुरुदेव ने स्नेह से बुलेट के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- ''शांत हो जाओ मैं समझ गया हूँ .ईश्वर तुम्हे मुक्ति प्रदान करें !'' गुरुदेव के इतना कहते ही बुलेट शांत हो गया और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया .वहां उपस्थित प्रभात सहित उसके परिवारीजन यह देखकर चकित रह गए…
ContinueAdded by shikha kaushik on October 25, 2012 at 11:00pm — 8 Comments
खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं ,
Added by shalini kaushik on October 25, 2012 at 8:30pm — 3 Comments
महिमा रोज की ही तरह आज भी सुबह पाँच बजे अधपूरी नींद से उठ गई ! फिर घर की दैनिक सफाई के बाद बेड टी बनाकर अजय को जगाया, और सोनू को जगाकर स्कूल के लिए तैयार करने लगी ! सोनू स्कूल चला गया ! महिमा ने अजय के ऑफिस के कपड़े इस्त्री किए, फिर उसे जगाया, उसका नाश्ता बनाया ! अजय उठा और महिमा को इधर-उधर की दो चार हिदायते देते हुवे तैयार हुवा, और आखिर नौ बजे ऑफिस चला गया ! उसके जाने के बाद महिमा ने नहाकर थोड़ी पूजा की, फिर लंच तैयार किया और लंच लेकर सोनू के स्कूल गई, समय था बारह ! घर आकर खाना खाई और फिर…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on October 25, 2012 at 3:30pm — 24 Comments
लघुकथा : सुहागन …
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2012 at 10:30am — 40 Comments
किस तरह हो यकीं आदमी का |
कोई होता नहीं है किसी का ||
आस्तीनों में खंजर छुपा कर |
दे रहे हो सबक़ दोस्ती का ||
पत्थरों के मकानों में रह कर |
दिल भी पत्थर हुआ आदमी का ||
मान लें बाग़बाँ कैसे उसको |
जिसने सौदा किया हर कली का ||
दर्द का बाँट लेना इबादत |
फ़लसफ़ा है यही ज़िन्दगी का ||
इसको आज़ादी माने तो कैसे |
आदमी है ग़ुलाम आदमी का ||
फैलें इंसानियत के उजाले |
सिलसिला ख़त्म हो…
Added by लतीफ़ ख़ान on October 24, 2012 at 11:00pm — 8 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 24, 2012 at 5:00pm — 12 Comments
तीन दोहें....
बाहर रावण फूँक कर ,मानव तू इतराय |
नष्ट करेगा कब जिसे ,उर में रहा छुपाय ||
सच्चाई की जीत हो ,झूठ का हो विनाश |
कष्ट ये तिमिर का मिटे ,मन में होय प्रकाश ||
सत स्वरूपी राम है ,दर्प रूप लंकेश |
दशहरा पर्व से मिले ,यही बड़ा सन्देश ||
दो रोलें...
दैत्यों का हो अंत ,मिटे जग का अँधेरा
संकट जो हट जाय,वहीँ बस होय सवेरा
अपना ही मिटवाय ,छुपाकर अन्दर धोखा
लंका को ज्यों ढाय,बता कर भेद…
Added by rajesh kumari on October 24, 2012 at 2:30pm — 18 Comments
दोस्तों ।
आज विजय दशमी है आज के दिन राम ने रावण को मारा था । यह एक मधुर कल्पना है की चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते है आइये देखते है ।
राम या राम चन्द्र
जब चाँद का धीरज छुट गया…
Added by Mukesh Kumar Saxena on October 24, 2012 at 1:00pm — 4 Comments
रिटायरमेंट ( लघु कथा )
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 24, 2012 at 12:07pm — 20 Comments
नारी शशक्ति करण पर सुन्दर आयोजन
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 24, 2012 at 11:11am — 6 Comments
निमंत्रण
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 24, 2012 at 10:32am — 12 Comments
विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !
धर्म पताका फहराने , पापी को सबक सिखाने ,
चली राम की सेना रावण का दंभ मिटाने !
हर हर हर हर महादेव !
…
Added by shikha kaushik on October 23, 2012 at 9:30pm — 4 Comments
आग लगाकर इक पुतले को परचम लहराएगी जनता
असली रावण मंच विराजित जय कारे गायेंगी जनता
दस शीशों से पहचाना था जिस रावण को पुरसोत्तम ने
कल युग में बस एक शीश से कैसे पहचानेगी जनता ?
कुम्भकरण भर पेट पड़े हैं इन्द्रप्रस्थ के दरबारों में
भांति भांति के इन्द्रजीत हैं गली गली में चौबारों में
चोरों की चौपाल जहाँ हो वहां भला क्या होगी समता
कल युग में बस एक शीश से कैसे पहचानेगी जनता ?
दूषित मन की अभिलाषाएं अखबारों की ताजा ख़बरें
चौराहे पर स्वेत वस्त्र में लिपटे हैं…
Added by Manoj Nautiyal on October 23, 2012 at 5:36pm — 4 Comments
सुल्तान जो अपना है वो उनका मुसाहिब है
आये हैं जिधर से वो कहते वहीँ मगरिब है
खामोश ही रहता है अब तक वो नहीं समझा
दुनिया नहीं चुप्पी की दो लफ्जों की तालिब है
हम देर से जागे तो ये कोई खता है क्या?…
Added by Rana Pratap Singh on October 23, 2012 at 3:00pm — 8 Comments
कल फिर से जलेगा रावण
मन शांत और दिन पावन
रौनक छाई चेहरों पे ऐसे
पतझड़ में जैसे आया सावन
रावण को जलाने से पहले
अपनें भीतर भी झांको
उसके कर्मों से प्यारे
अपनें कुकर्म भी आँको
उन्नीस बीस का फर्क दिखेगा
उसके ज्यादा कुछ न मिलेगा
रावण तो था शूरवीर
पंडित था…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 23, 2012 at 11:00am — 3 Comments
हुस्न का है गुलिस्ताँ इश्क की नज़र है ये,
दिलों को दिल से जोड़ता लखनऊ शहर है ये,
लोगों को पुकार कर जो कह रहा है प्यार कर,
हो दोस्ती का वास्ता तो अपनी जाँ निसार कर,
दिल के रिश्तों पर लगी विश्वास की मुहर है ये,…
ContinueAdded by Anil chaudhary "sameer" on October 23, 2012 at 10:40am — 4 Comments
एक ताज़ा ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं -
वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो |
ये सपना है, मगर जो सच हुआ तो |
दिखा है झूठ में कुछ फ़ाइदा तो |
मगर मैं खुद से ही टकरा गया तो |
मुझे सच से मुहब्बत है, ये सच है,
पर उनका झूठ भी अच्छा लगा तो |
शराफत का तकाज़ा तो यही है,
रहें चुप सुन लिया कुछ अनकहा तो |
करूँगा मन्अ कैसे फिर उसे…
Added by वीनस केसरी on October 23, 2012 at 12:18am — 16 Comments
शक्ति रूपिणी हे माँ अम्बा l वंदन स्वीकृत कर जगदम्बा ll
जय जय जय हे मातु भवानी l नत मस्तक हैं हम अज्ञानी ll
थामो माँ चेतन की डोरी l कर दो मन की चादर कोरी ll
हर क्षण हो इक नया सवेरा l तव प्रांगण नित रहे बसेरा ll
माँ ममता से हमको भर दो l हृदय प्रेम का सागर कर दो ll
अंगारे भी पग सहलाएँ l पुष्प बनें सुरभित मुस्काएँ ll
नयन समाय प्रेम की धारा l भटकन मन की पाय किनारा ll
वाणी बहे अमृत सी निर्मल l कर्म सहस्त्रान्शु…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 22, 2012 at 9:18pm — 12 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2012 at 6:54pm — 7 Comments
Added by shikha kaushik on October 22, 2012 at 3:32pm — 7 Comments
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