Added by sanjiv verma 'salil' on August 27, 2011 at 8:46am — 3 Comments
एक गीत-
अमराई कर दो...
संजीव 'सलिल'
*
कागा की बोली सुनने को
तुम कान लगाकर मत बैठो.
कोयल की बोली में कूको,
इस घर को अमराई कर दो...
*
तुमसे मकान घर लगता है,
तुम बिन न कहीं कुछ फबता है..
राखी, होली या दीवाली
हर पर्व तुम्हीं से सजता है..
वंदना आरती स्तुति तुम
अल्पना चौक बंदनवारा.
सब त्रुटियों-कमियों की पल में
मुस्काकर भरपाई कर दो...
*
तुम शक्ति, बुद्धि, श्री समता हो.
तुम दृढ़ विनम्र शुचि ममता हो..…
Added by sanjiv verma 'salil' on August 26, 2011 at 7:26pm — 6 Comments
कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अंक -- पाँच (अंतिम )
भीड़ में खलबली मच गयी थी. जबरन उन दोनों को बाहर खींच निकालने की योजना बनने लगी.
नाजिमा सोच नहीं पा रही थी कि अब उसे क्या करना चाहिए, किस तरह अपने मेहमानों की रक्षा करनी चाहिए, भीड़ में से दो-चार युवक आगे बढ़ने लगे,इसी बीच बड़े मियां आंगन में आ पहुचें. उन्हें देखते ही जमात बांधकर आये लोग सकपका गये. बड़े मियां जैसे ही नाजिमा के पास आये,नाजिमा उनके सीने से लगकर फफक पड़ी.…
Added by satish mapatpuri on August 26, 2011 at 3:25am — 1 Comment
कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अंक -- चार
भयवश दबी जबान से रहीम ने उन दोनों को पनाह देने पर एतराज किया.
किन्तु नाजिमा ने अपने अब्बा को ऐसा फटकारा कि उनकी बोलती बंद हो गयी . दीवारों के सिर्फ कान ही नहीं होते , शायद आँखें भी होती हैं . ना जानें कैसे सुबह रुसुलपुर में यह बात आग की तरह फैल गयी कि रहीम मियां के घर में हिन्दू भाई-बहन को पनाह दिया गया है . फिर क्या था, कुछ लोग रहीम मियां के आंगन में आ धमके. उनमें से दो-चार ही रुसुलपुर…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 25, 2011 at 12:02am — 1 Comment
साँसे बोझिल हैं , आँखों में पानी है
फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है |
हर सुबह नई परेशानी है ,
फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है |
कैसी सोची थी कैसी पाई है
जाना था कहाँ , कहाँ ले आई है |
कौन सोचे और कैसी बितानी है ,
फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है…
ContinueAdded by Veerendra Jain on August 24, 2011 at 11:59am — 9 Comments
Added by Abhinav Arun on August 24, 2011 at 9:17am — 2 Comments
कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अंक -- तीन
आँगन में आते ही युवक इस तरह उछल पड़ा मानों उसके पाँव तले विषधर आ गया हो
आँगन में बधना देखकर युवक के गले से हल्की चीख निकल पड़ी. वह भयभीत नजरों से नाजिमा की तरफ देखा.
"भाईजान, मुसलमानों के भय से छिपते-छिपाते आपने एक मुसलमान का ही दरवाजा खटखटा दिया है. किन्तु, आपको भयभीत होने की जरूरत नहीं है. गलियों में मजहब और जाति के नाम पर दंगे करने वाले दरअसल न…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 24, 2011 at 2:14am — 1 Comment
तुम्हारे प्यार की फुहार से
इस कदर भीगा तन-मन, कि,
जीवन में फैले शुष्क रेगिस्तान की तपन
झुलसा न सकी…
ContinueAdded by mohinichordia on August 23, 2011 at 9:00pm — 8 Comments
कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?
लेखक -- सतीश मापतपुरी
करवट बदल कर नाजिमा ने सर तक कम्बल खींच लिया, तभी उसे लगा कि बाहर के दरवाज़े पर कोई दस्तक दे रहा है .................. एकबारगी उसका पूरा बदन…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 22, 2011 at 10:30pm — 1 Comment
कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? (कहानी )
लेखक -- सतीश मापतपुरी
उफ़ ! बड़ी भयानक रात थी .................. हवा की सांय-सांय भी अन्दर तक हिला कर रख देती . दिन के उजालों में तो किसी तरह वक़्त सरक जाते.............. किन्तु, रात के अंधेरों में जैसे थम कर रह जाते हों. कुछ लोग किसी हादसा को हर साल याद दिला कर कटुता एवं नफ़रत को भड़काने से बाज नहीं आते. दिसंबर का महीना शुरू हो चुका था .......................... 6 दिसंबर की उस पुरानी…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 22, 2011 at 2:30am — 1 Comment
कुछ चले हैं ,कुछ बढ़े हैं, कुछ चढ़े हैं हाँ मगर,
आख़िरी सोपान तक ,पहुंचे नहीं हैं हम अभी.
बांटते हैं रोज लाखों लाख खुशियाँ , हाँ मगर,
आख़िरी इन्सान तक पहुंचे नहीं हैं हम अभी.
कौन समझाए हमें, ये है हमारी त्रासदी,
जागने भर में, अभी तक खर्च…
ContinueAdded by राजेश शर्मा on August 21, 2011 at 4:54pm — 2 Comments
हल नहीं होते हैं कुछ मुश्किल सवाल ......
मसअले नाज़ुक हैं , टाले जायेंगे .......
ये शहर पत्थर का और हम काँच के ......…
Added by Prabha Khanna on August 21, 2011 at 4:30pm — 10 Comments
लघुकथा : बहू-बेटी
“अम्मा ! तुम भी घर का कोई काम किया करो, नहीं तो इस तरह तुम्हारे हाथ-पैर जुड़ जाएंगें।” घुटनों के दर्द से करहाती अपनी माँ की दुर्दशा देखकर ससुराल से आई बेटी ने कहा।
“ हाँ बेटी ! तू ठीक ही कहती है, किया करूंगी कुछ काम....”
“ हाँ दीदी, मैने भी कई बार अम्मा जी से कहा है कि आप भी कुछ काम किया करें .......” पास बैठी बहू ने कहा
” काम किया करूँ, तो तुझे ब्याह कर लाने का मुझे क्या फायदा........... काम किया करो....” सास ने बहू की बात को बीच में ही काटते हुए तीखे…
Added by Ravi Prabhakar on August 21, 2011 at 1:00pm — 7 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 21, 2011 at 10:46am — 10 Comments
Added by rajkumar sahu on August 21, 2011 at 12:40am — No Comments
साथियों,
कई मित्रों का प्रश्न है कि "मैं अपने मित्रों को जो जीमेल, याहू , हॉटमेल आदि में है उनको कैसे ओ बी ओ पर आमंत्रित करूँ ?
इसका सरल उपाय ओ बी ओ पर है, मैं चित्र (स्क्रीन शोट) के माध्यम से बताना चाहता हूँ , उम्मीद है प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा, उसके पश्चात् भी यदि कुछ प्रश्न उठ रहे हो तो नीचे कमेंट्स बॉक्स में लिखे ....मैं हूँ ना :-)
…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 20, 2011 at 5:00pm — 4 Comments
ग़ज़ल :- सोच का सन्दर्भ अब कितना इकहरा हो गया
सोच का सन्दर्भ अब कितना इकहरा हो गया ,
जड़कटी…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 20, 2011 at 3:00pm — 8 Comments
अपने हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा
सारी दुनिया की नज़र में है मेरी अह्द—ए—वफ़ा
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा?
/ वसीम बरेलवी
Added by दुष्यंत सेवक on August 20, 2011 at 12:00pm — 4 Comments
मैं कई लोगों के मुंह से सुन चुका हूँ के अन्ना हजारे के आंदोलन से अराजकता की स्तिथि पैदा हो रही है या हो सकती है
तो में उन लोगों से पूछना चाहता हूँ के अराजकता का मतलब क्या है
ये जो ६५ साल से भारत की ज्यादातर जनता को भ्रष्टाचार के कारण संघर्षपूर्ण जीवन जीना पड़ता है, क्या ये अराजकता नहीं है
क्या ये जो कमजोर कानूनों का ढाल बनाकर भ्रष्ट लोग कानून की ही धच्चियाँ उड़ाते हैं, क्या ये अराजकता नहीं है
इन जैसे लोगों ने किताबी जानकारी तो काफी ले ली हैं पर इनको…
ContinueAdded by Bhasker Agrawal on August 19, 2011 at 10:00pm — No Comments
चार कुण्डलियाँ
(१)
लीला है उस राम की, अन्ना यहाँ हजार
लोग जमा हो गये हैं, छोड़ दिया घरबार
छोड़ दिया घरबार, सह रहे आँधी-पानी
अनशन की शुरुआत, शुरू वही कहानी
भाग रही है भीड़, सभी कुछ गीला-गीला
हे प्रभु इस…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on August 19, 2011 at 4:00pm — 6 Comments
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