For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हल नहीं होते हैं कुछ मुश्किल सवाल...

हल नहीं होते हैं कुछ मुश्किल सवाल ......
मसअले नाज़ुक हैं , टाले जायेंगे .......

ये शहर पत्थर का और हम काँच के ......
हम कहाँ इस से संभाले जायेंगे .......

भूख भी महंगाई से डरने लगी ,
गिन के अब मुँह में निवाले जायेंगे ........

पीर परबत है , पिघलती ही नहीं ........
हम कहाँ इसको हटा ले जायेंगे .......

मुद्दतों पलते रहे जो साँप , अब ,
आस्तीनों से निकाले जायेंगे ............ रावी

Views: 483

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by prabhat kumar roy on May 3, 2012 at 9:26am

अर्थपूर्ण रचना के लिए बधाई.

Comment by दुष्यंत सेवक on September 6, 2011 at 3:19pm

भूख भी महंगाई से डरने लगी ,गिन के अब मुँह में निवाले जायेंगे ........वर्तमान परिप्रेक्ष्य को सटीकता से दर्शाती पंक्तियाँ ....बेहद मर्मस्पर्शी रचना. आभार प्रभा जी

Comment by mohinichordia on September 6, 2011 at 12:09pm

 भूख भी महंगाई से डरने लगी ,

गिन के अब मुहं में निवाले जायेंगे ..बहुत ही सुन्दर अशआर लिखे हें आपने प्रभाजी ..  दुष्यंत कुमार याद आ गए |

Comment by वीनस केसरी on September 4, 2011 at 12:19am

वाह,

खूबसूरत अशार कहे हैं

हार्दिक बधाई कबूल करें
"मसले" को शुद्ध रूप "मस्अले" लिख दें तो शेर बाबह्र हो जाये तथा पढ़ने में और आनंद आए 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2011 at 10:06am

रावी.. अब आप यही यहाँ .. .

Comment by Prabha Khanna on August 23, 2011 at 7:49am

सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद... जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ... @Saurabh ji, my pen name is Raavi... शुक्रिया :))

Comment by Ravi Prabhakar on August 22, 2011 at 8:04pm

Bahut Khoob!!!!

Comment by satish mapatpuri on August 22, 2011 at 6:48pm

ये शहर पत्थर का और हम काँच के ......
हम कहाँ इस से संभाले जायेंगे .......

खुबसूरत ख्याल के लिए साधुवाद प्रभा जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 22, 2011 at 10:56am

मुद्दतों पलते रहे जो साँप , अब ,
आस्तीनों से निकाले जायेंग,

 

बेहद खुबसूरत भाव, पूरी रचना मजबूत ख्यालातों से लबरेज, बगैर मतला के कारण ग़ज़ल कहने में संकोच है, इस अभिव्यक्ति पर बधाई प्रभा जी | 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2011 at 10:11am

आपकी इस उम्दा अभिव्यक्ति पर मेरा दिली दाद कुबूल फ़रमायें, मोहतरमा प्रभाजी (रावी..?!). 

हार्दिक साधुवाद.

 

//पीर-परबत ...  हटा ले जायेंगे//

यह शेर कुछ और मशक्कत चाहता है. ऐसा इसलिये कह रहा हूँ कि तथ्य इशारों में कहे गये हैं वो भी पूर्व-उक्तियों की छाया में कहे गये हैं.  परबत हो गयी पीर का पिघलना दुष्यंत कुमार का बहुत ही अहम और मकबूल शे’र है. लाजिमी है, आपके बंद को सुनते ही बरबस उस शे’र का खयाल हो आये.  ऐसे में उचित होता ये कि आप अपने बंद को दुष्यंत के बिम्बों की छाया में पूरी तरह बसा देतीं. चूँकि आपके इस बंद की ज़मीन सवालिया है, सो इसकी खूबसूरती बखूबी निखर कर आती.

यह सिर्फ़ मेरा मानना है. चूँकि रचना के सभी बंद मज़बूत खयालों से भरे हैं, अतः ऐसा कह रहा हूँ.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सतरंगी दोहेः विमर्श रत विद्वान हैं, खूंटों बँधे सियार । पाल रहे वो नक्सली, गाँव, शहर लाचार…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई रामबली जी, सादर अभिवादन। सुंदर सीख देती उत्तम कुंडलियाँ हुई हैं। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Chetan Prakash commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"रामबली गुप्ता जी,शुभ प्रभात। कुण्डलिया छंद का आपका प्रयास कथ्य और शिल्प दोनों की दृष्टि से सराहनीय…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"बेटी (दोहे)****बेटी को  बेटी  रखो,  करके  इतना पुष्टभीतर पौरुष देखकर, डर जाये…"
6 hours ago
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार सुशील भाई जी"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार समर भाई साहब"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"बढियाँ ग़ज़ल का प्रयास हुआ है भाई जी हार्दिक बधाई लीजिये।"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"दोहों पर बढियाँ प्रयास हुआ है भाई लक्ष्मण जी। बधाई लीजिये"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"गुण विषय को रेखांकित करते सभी सुंदर सुगढ़ दोहे हुए हैं भाई जी।हार्दिक बधाई लीजिये। ऐसों को अब क्या…"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय समर भाई साहब को समर्पित बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने भाई साहब।हार्दिक बधाई लीजिये।"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आहा क्या कहने भाई जी बढ़ते संबंध विच्छेदों पर सभी दोहे सुगढ़ और सुंदर हुए हैं। बधाई लीजिये।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सादर अभिवादन।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service