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All Blog Posts (18,988)

नारी क्यों रोती है

सुंदर छवि पा,

नयन भर आंसू , नारी क्यों रोती है ?

 

मधुपों की प्रियतमा,

जग में जो अनुपमा,

शशि की किरणों की बाँहें थाम

कमलिनी निशा में खिलती है –

सुंदर छवि पा,

नयन भर आंसू , नारी क्यों रोती है ?

 

सागर की उत्ताल तरंगें,

चट्टानों से टकराती लहरें,

होती हैं क्यों छिन्न-भिन्न !

क्या है यह नज़रों का भ्रम

क्षितिज की मृगतृष्णा लिये,

धरा गगन को छूती है –

सुंदर छवि पा,

नयन भर आंसू ,…

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Added by coontee mukerji on March 8, 2013 at 12:51am — 9 Comments

क्षणिकाएं

कुम्हार

 

रूप दे दो

इधर उधर बिखरी हुई है

ये मिट्टी

रौंद रहे हैं लोग

रंग काला पड़ने लगा

कुछ कीड़े भी पनपने लगे

 …

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Added by बृजेश नीरज on March 7, 2013 at 8:10pm — 18 Comments

लिखना चाहता हूँ

लिखना चाहता हूँ



वो गाँव की अमराई

बहार आते ही जो बौराई

सरसों की अंगड़ाई

बाली बाली गदराई



पर कैसे ??

कहाँ से ले आऊँ

वो रंग भरी स्याही

स्याही…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 7, 2013 at 3:06pm — 17 Comments

रूठे घर में मानमनौव्‍वल/के दीपों को पलने दो

रूठे घर में मानमनौव्‍वल

के दीपों को पलने दो

बहुत हो चुकी

टोका-टोकी

लस्‍टम-पस्‍टम

जीवन झांकी

बंद गली को

चौराहों से

गलबहियां दे

चलने दो

कोरी रातों में कलियों को

पल-दो-पल तो खिलने दो

अंधेरे में

डूबे घर भी

हमें देख

सकुचाते हैं

कल तक लगते

थे जो अपने

अब बरबस

डर जाते हैं

जंजीरों में बंधे बहुत अब

पंख जरा तो मलने…

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Added by राजेश 'मृदु' on March 7, 2013 at 3:00pm — 11 Comments

मुझको सरल बनाइये ।

पाषाण सा मैं कठोर हूँ मुझको तरल बनाइये । 

मेरे छल कपट को छीन कर मुझको सरल बनाइये ।

मुझे शक है अपने आप पर बिश्वास भी खुद पर नहीं । 

मेरी पकड़ भी कमजोर है हाथों में  मेरे बल नहीं…

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Added by Mukesh Kumar Saxena on March 7, 2013 at 11:09am — 7 Comments

''चच्चा बोले''

मूँगफली खा चच्चा बोले 

बहू आज कुछ चने भिगोले 

कल को रोटी संग बनाना 

जरा चटपटे आलू-छोले l

 

सारा दिन तू काम में पिस्से …

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Added by Shanno Aggarwal on March 7, 2013 at 1:30am — 17 Comments

विशेष दिन....

विशेष दिन....

कलैंडर कैसा भी हो

अंधेरे मे भी चमकती है वो

मुझे अपने महबूब से भी

अधिक खूबसूरत लगती है वो...

शादी की हो सालगिरह या जन्मदिन

साल मे आते केवल एक बार

मगर हर महीने इनसे भी…

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Added by pawan amba on March 7, 2013 at 12:17am — 8 Comments

ग़ज़ल : तेरे अंदर भी तो रहता है ख़ुदा मान भी जा

बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२

-------------------------------------

करके उपवास तू उसको न सता मान भी जा

तेरे अंदर भी तो रहता है ख़ुदा मान भी जा

 

सिर्फ़ करने से दुआ रोग न मिटता कोई

है तो कड़वी ही मगर पी ले दवा मान भी…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 6, 2013 at 11:52pm — 17 Comments

यूँ ही किसी से दिल लगा लिया नहीं जाता

 अब बिन तेरे मुझसे रहा नहीं जाता।

तुझसे दूरी का दर्द सहा नहीं जाता।।

ख़ुद से ज़्यादा चाहते हैं तुम्हें,पर ये

अब तुमसे क्यों कहा नहीं जाता ?

प्यार तो अपने -आप ही होता है,

कभी ये किसी से किया नहीं जाता।

आँखों में ऐसे बसी है तस्वीर तेरी,

आँसुओं से इसे मिटा दिया नहीं जाता।

हर धड़कन अब तेरा ही नाम लेती है,

मुझसे अब राम -नाम जपा नहीं जाता।

बेशक़,जी रहे हैं तुझसे दूर होकर हम 

पर अब बिन तेरे जिया नहीं जाता।

कोई तो बात होगी तुममें और…

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Added by Savitri Rathore on March 6, 2013 at 11:30pm — 8 Comments

"कुण्डलिया एक प्रयास "

कांपे निशाचर थर-थर-2 ,देख रूप विकराल !

उनको ऐसा लग रहा ,खड़ा सामने काल !!

खड़ा सामने काल ,सभी निशिचर घबराये!

लिये हाथ में खड्ग ,सबै चंडी दौड़ाये!!

लगे भागने दुष्ट ,मृत्यु सम्मुख जब भांपे ,

देख भयंकर रूप ,तीनो लोक फिर कांपे !!

राम शिरोमणि…

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Added by ram shiromani pathak on March 6, 2013 at 8:06pm — 3 Comments

छंद सरसी में एक रचना (राजेश कु0 झा)

खुरच शीत को फागुन आया

फूले सहजन फूल

छोड़ मसानी चादर सूरज

चहका हो अनुकूल

गट्ठर बांधे हरियाली ने

सेंके कितने नैन

संतूरी संदेश समध का

सुन समधिन बेचैन

कुंभ-मीन में रहें सदाशय

तेज पुंज व्‍योमेश

मस्‍त मगन हो खेलें होरी

भोला मन रामेश

हर डाली पर कूक रही है

रमण-चमन की बात

पंख चुराए चुपके-चुपके

भागी सीली रात

बौराई है अमिया फिर से

मौका पा माकूल

खा…

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Added by राजेश 'मृदु' on March 6, 2013 at 12:44pm — 12 Comments

प्रेम से भ्रष्टाचार.

राग-रागिणी प्रेम की, उन्नत भ्रष्टाचार,

बहलाए फुसलाय के, देती माँ आहार,

देती माँ आहार, बाल शिशु जब भी रोये,

लोरी देत सुनाय, नहीं जो शिशु को सोये,

पति को रही लुभाय, मधुर व्यंजन से भगिणी,

उन्नत भ्रष्टाचार, प्रेम की राग-रागिणी//

Added by Ashok Kumar Raktale on March 6, 2013 at 12:30pm — 7 Comments

कवि का प्यार

कवि का प्यार

जब एक कवि को हुआ, कवियत्री से प्यार

 दिलो जान से उस पर हुआ निसार

 कवि का एकतरफा दिल, गया मचल

   हास्य छोड़कर, वो लिखने लगा गजल

   गजल  लिखकर कवियत्री को पोस्ट करने लगा

 जिस कवि सम्मेलन मै कवियत्री हो, उसे होस्ट करने लगा

 कवि सम्मेलन मै कवियत्री आये

इस चक्कर मै उसने अनेक कवि सम्मेलन अपनी जेब से करवाये

कवि उस पर बुरी तरह मरने लगा

उसकी कविता पर कुछ ज्यादा ही बाह बाह करने लगा

उनका सानिध्य पाने की हर कोशिश…

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Added by Dr.Ajay Khare on March 6, 2013 at 11:55am — 11 Comments

दो भाई ! - भाग -१

मौलिक व अप्रकाशित 

दो भाई - राम लक्ष्मण!

दो भाई - कृष्ण बलराम!

दो भाई - पांडु और धृतराष्ट्र !

दो भाई - दुर्योधन दुशासन!

दो भाई - रावण और विभीषण!

दो भाई - भारत और पकिस्तान!

दो भाई - हिन्दी चीनी भाई भाई !

ऊपर के सभी उदाहरण जग जाहिर है ..पर

दो भाई - भुवन और चंदर ....

मैं इन्ही दोनों के बारे में लिखने वाला हूँ.

ये दोनों भाई है- मिहनती और इमानदार !

पांच…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on March 6, 2013 at 7:00am — 5 Comments

ग़ज़ल "इस हुनर को देख शायर हो गया हैरान है"

=========ग़ज़ल =========



झूठ कहता बाप से माँ से हुआ अनजान है

भूल क्यूँ जाता है बेटा वो उन्ही की जान है



है दगा रग रग में जिसकी झूठ जिसकी शान है

दूर से पहचान लें वो इक सियासतदान है



मौन हर मौसम में वो रहता है गम हो या ख़ुशी

इस हुनर को देख शायर हो गया हैरान है



खूब भर लो धन घरों में याद रखना तुम मगर

आखिरी मंजिल सभी की है तो कब्रिस्तान है



हर तरफ ही लूट हत्या रेप ऐसे…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 5, 2013 at 10:42pm — 14 Comments

कल गीत (चौपाई छंद)

कल तो हरदम कल रहता है।

कल को मनुज विकल रहता है॥



कल को किसने कब देखा है।

यह आशाओं की रेखा है॥

हमें सदा बस यह खलता है।

कभी नहीं यह कल रुकता है॥



सबकी इच्छा कल अच्छा हो।

कल से पूर्व कलन अच्छा हो॥

मित्र!आज से कल बनता है।

कल की चिंता क्यों करता है॥



कल-बल से कल पकड़ न आया।

बहुत जनों ने जोर लगाया॥

कल तो काल सदृश लगता है।

बड़े-बड़ों को कल छलता है॥



कल बहुतों का कल ले लेता।

कल को छीन विकल कर देता॥

कल… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 5, 2013 at 9:00pm — 2 Comments

"कुछ दोहे "

मन को ऐसा राखिये ,जैसे गंगा नीर !

निर्मल जल से जिस तरह ,रहता स्वच्छ शरीर !!

************************************************

मोल भाव ना ज्ञान का ,क्रय-विक्रय ना होय!

खर्च करो जितना इसे ,वृद्धि निरंतर होय !!

******************************************…

Continue

Added by ram shiromani pathak on March 5, 2013 at 8:30pm — 5 Comments

पोखराज (राजेश कुमार झा)

बाबा आए, बाबा आए

भरे हुए दो झोले लाए


झोले में सपनों की बातें

तारों भरी सुहानी रातें


देख उन्‍हें राजू भी दौड़ा

कर्मकीट सा…
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Added by राजेश 'मृदु' on March 5, 2013 at 5:44pm — 3 Comments

मुआवज़ा दे दिया और काम ख़तम...

क़लम कोमा मे आ गयी है मेरी,

ब्रेनस्ट्रोक ज़बरदस्त लगा है इसको,

रगों मे दौड़ती स्याही पे बड़ा प्रेशर है,

क्या लिखे, क्या ना लिखे, कितना चले, कैसे चले,

सुना था तेज़ चलेगी ये तलवार से भी,

इस दफ़ा खुद ही कट के रह गयी ज़ुबान इसकी,…

Continue

Added by Sarita Sinha on March 5, 2013 at 4:30pm — 3 Comments

ब्रिज होली गीत

मित्रों , आज आप सभी के अवलोकन हेतु ..... ब्रिज मंडल की होली की एक छोटी सी झलकी | आशा है आपको यह होली गीत पसंद आएगा |



कान्हा ने होरी खेलन को टोली मस्त बनायी है 

ग्वाल ,बाल सब रंग डारे गोपी डरकर घबराई है 

ब्रज मंडल में बरसाने से राधा जी की सखियों ने 

रंग लायी भर भर पिचकारी धूम मचाने आई है ||



पकड़ो -पकड़ो - इसको श्याम बड़ा नटखट ये 

चुपके - छुपके बैठा गोपी संग घूंघट में 

घेर…

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Added by Manoj Nautiyal on March 5, 2013 at 3:51pm — 4 Comments

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