For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मूँगफली खा चच्चा बोले 

बहू आज कुछ चने भिगोले 

कल को रोटी संग बनाना 

जरा चटपटे आलू-छोले l

 

सारा दिन तू काम में पिस्से 

सुने पड़ोसी के भी किस्से 

सखियों से गपशप करती है 

कर देंगी वो घर के हिस्से l

 

मारा बहु ने घर में पोंछा 

मुँह सिकोड़ बातों पर सोचा 

खुद तो इत-उत गप्प लड़ाते  

फिर क्यों मेरा ही मुँह कोंचा l  

-शन्नो अग्रवाल 

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 8, 2013 at 9:00am

आदरणीया सादर, बहुत सुन्दर खट्टी मीठी तकरारें. गाकर मन प्रफुल्लित हुआ. सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:55am

वेदिका जी, रचना आपको बहुत पसंद आयी इसे जानकर मन इतना मुदित है कि बता नहीं सकती :) पर आप लोग कोई गलत अर्थ ना लगायें हर काव्य-रचना का निर्माण कवि के व्यक्तिगत अनुभवों पर नहीं होता. एक लेखक व कवि दुनिया को काल्पनिक आँखों से या दूसरों की आँखों से भी देखता है. मेरे ना तो ससुर जिन्दा हैं और ना ही कोई चचिया ससुर ही थे. और तइया ससुर तो शादी के पहले ही गुजर चुके थे. सो ये सब मेरी कल्पना की ही खुराफात है.  

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:49am

विजय जी, रचना आपको अच्छी लगी इसके लिये आभार सहित धन्यबाद.  

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:47am

प्रदीप जी, आभारी हूँ...रचना पसंद करने का हार्दिक धन्यबाद.  

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:45am

अजय जी, आपका बहुत-बहुत धन्यबाद कि रचना आपको पसंद आयी.  

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:42am

सौरभ जी, इस रचना को कल रात लिखा था...बस यूँ ही कुछ खुराफाती बिचार आकर परेशान करने लगे थे और उन्हें शब्दों में उतार कर सर्वप्रथम ओ बी ओ की अनुमति चाही. प्रेषित करते हुये डर रही थी फिर भी चांस लिया और आप सब की दुआओं से इसे स्वीकृति मिल गयी :) मेरे दिमाग में पता नहीं क्यों इतनी दूर विदेश में बैठे हुये भी भारत के गाँवों के काल्पनिक चित्र क्यों उभर आते हैं. आँखों के आगे घर में हुकुम चलाने वाले बड़े-बूढ़े घूमते नजर आने लगते हैं - कभी खखारते हुये कभी गमछा से पसीना पोंछते हुये तो कभी औरों से बतियाते हुये. 

आपका हार्दिक धन्यबाद कि रचना आपको पसंद आयी. पढ़कर आपका मन मुदित हुआ और मेरा लिखना भी सार्थक हुआ :)  

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:23am

शिरोमणि जी, रचना पसंद करने का हार्दिक धन्यबाद. 

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:22am

लक्ष्मण प्रसाद जी, रचना आपको आनंददायक लगी इसका बहुत-बहुत धन्यबाद. 

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:19am

प्राची जी, आपने इस काल्पनिक रचना का आनंद लिया ये पढ़कर बहुत खुशी हुई :) आपका हार्दिक धन्यबाद.  

Comment by वेदिका on March 7, 2013 at 10:58pm

वाह! वाह! बहुत ही रोचक घटना का निर्माण हुआ है काव्य रूप में आदरणीया शन्नों जी 

सारा दिन तू काम में पिस्से .. आप की भी बहुत चिंता है उन्हें :)

भले ही उन्होंने आपका मुहं कोंचा... :( । शुभकामनायें

सादर वेदिका

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service