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धड़कता है गुनगुनाता है बतियाता है लेकिन
ख़त कि तरह मोबईल महकता नहीं है
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मज़हब की किताबों के पैगाम बदल देते हैं
नानक और ईसा के नाम बदल देते हैं
फिर न होगी शिकायत किसी को ज़माने में
लाओ पैगम्बर से राम बदल देते हैं
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ऐ वाइज़ तू क्यों फिकर में रहता है
सारा निज़ाम उसकी नज़र में रहता है
सिर्फ दैरो हरम नहीं ठिकाना उसका
हर जर्रे में वो हर बशर में रहता है
अप्रकाशित व मौलिक -------------------------------------
आदरणीय गुमनाम जी ..महेनी का सक्रीय सदस्य चुने जाने पर मेरी तरफ से भी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
भाई गुमनाम जी 'महीने का सक्रिय सदस्य' के रूप में आप को देखकर अपार हर्ष हो रहा है! बहुत बहुत बधाईयां!!
आ.गुमनाम पिथौरागढ़ी जी आपको विगत माह का सक्रिय सदस्य चुने जाने पर हार्दिक बधाई |
आदरणीय
गुमनाम पिथौरागढ़ी जी,
सादर अभिवादन,
यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करें | प्रशस्ति पत्र उपलब्ध कराने हेतु कृपया अपना पता एडमिन ओ बी ओ को उनके इ मेल admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध करा दें | ध्यान रहे मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई है |
हम सभी उम्मीद करते है कि आपका सहयोग इसी तरह से पूरे OBO परिवार को सदैव मिलता रहेगा |
सादर ।
आपका
गणेश जी "बागी"
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
२१२२ २१२२ २१२
जिस्म चाँदी का हुआ अब क्या करें
उम्र निकली बेवफा अब क्या करें
इश्क़ पहला जो हुआ वो इश्क़ था
इश्क़ तो है गुमशुदा अब क्या करें
याद की अल्बम पलटकर देख ली
दिन हुए वो लापता अब क्या करें
किस तरह बच पाएगी अस्मत यहाँ
हर तरफ है खौफ सा अब क्या करें
उम्र की सारी तहें भी खोल दीं
खत मिले कुछ बेपता अब क्या करें
गुमनाम पिथौरगढ़ी
स्वरचित व अप्रकाशित
Posted on February 19, 2021 at 6:36pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
ज़ख्म मेरे जब कभी तुम पर बयाँ हो जाएंगे
सामने के सब नज़ारे बेजुबाँ हो जाएंगे
हाथ में पत्थर नहीं कुछ ख्वाब दो कुछ काम दो
हाथ ये नापाक के कठपुतलियाँ हो जाएंगे
खेलने दो आज इनको फ़िक्र सारी छोड़कर
ज़िन्दगी उलझा ही देगी जब जवाँ हो जायेंगे
जब कभी अफवाह उठ्ठे तुम यकीं करना नहीं
झूठ की इस आग में ही घर धुवां हो जायेंगे
ये सफर तन्हा नहीं है साथ गम यादें तेरी
गम…
ContinuePosted on July 31, 2018 at 5:00pm — 7 Comments
22 22 22 22
गाता जाए एक दिवाना
दुनिया यारो पागलखाना
परदेश बनाया घर लेकिन
घर मे कम है एक सयाना
इससे आगे सोच ना पाऊं
बीबी बच्चे और ठिकाना
केक खिलाया साल बढ़ाए
भूल गया पर उम्र घटाना
एक शिगूफा छोड़ेगा फिर
अबके राजा भौत सयाना
मौलिक व अप्रकाशित
Posted on June 16, 2018 at 5:52pm — 10 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
बेवफा ने जब जफ़ा के दस बहाने रख दिए
हमने भी तब जख्म अपने सब छुपा के रख दिए
भूख भी ये हार बैठी हौसले को देख कर
मुफलिसों ने आज फिर से देख रोजे रख दिए
फोन ने तो चीन डाला बचपना अब बच्चों का
टाक पर दादी के किस्से हमने सारे रख दिए
अब बुजुर्गों की कोई कीमत नहीं संसार में
आश्रमों के द्वार पर बूढ़े बिचारे रख दिए
जालिमों का जोर क्यों बढ़ने लगा है आज कल
यूँ भला सच की जुबां पर…
ContinuePosted on February 25, 2016 at 10:02pm — 3 Comments
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