For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

212  212  212  22 

इक वहम सी लगे वो भरी सी जेब 

साथ रहती मेरे अब फटी सी जेब 

ख्वाब देखे सदा सुनहरे दिन के 

आँख खुलते मिली बस कटी सी जेब 

चैन आराम सब खो दिया तुमने 

पास रक्खी भला क्यों बड़ी सी जेब 

शहर में तेज है धूप नफरत की 

हर गली मे मिली कुछ भुनी सी जेब 

रब , खुदा , राम के नाम पर हम तो

सिर्फ पाते रहे अधजली सी जेब 

आँख मे मोतिया * पड़ गया शायद 

अब नजर आएगी बस हंसी सी जेब 

मौलिक और अप्रकाशित 

 गुमनाम .. 

Views: 501

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 10, 2022 at 6:12pm

बढ़िया आदरणीय गुमनाम जी...आदरणीय धामी जी ,और अमीरुद्दीन जी से सहमत हुँ...

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 6, 2022 at 9:25pm

आप दोनो का बहुत बहुत शुक्रिया ....में कुछ सुधार करता हूं ...

धन्यवाद मेरी जानकारी में वृद्धि करने के लिए .....

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2022 at 6:49pm

//सुनहरे की मात्रा गणना 212 ही होगी ॥ शायद ॥ 122 नहीं  । //

सु+नह+रा = 1 2 2 ..
यगणात्मक शब्द है यह.
सुन+हरा नहीं उच्चारित करते. तो मात्रा भार 2 2 की तरह नहीं ले सकते

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 5, 2022 at 5:53pm

धन्यवाद दोस्तो ..   आपके सलाह सुझाव का स्वागत है । सुनहरे की मात्रा गणना 212 ही होगी ॥ शायद ॥ 122 नहीं  । 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2022 at 4:15pm

आ. भाई गुमनाम जी , सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक वधाई। हिन्दी में "वहम" बोले जाने के बावजूद इसे गजल में 21 पर लिए जाने का मत प्रचलन में है। इस हिसाब से इसे यू लिखकर आप सबको संतुष्ट कर सकते हैं।
वह्म जैसी  लगे  वो भरी सी जेब 

//
इस मिसरे के दोष को भी यूँ ठीक किया जा सकता है।

ख्वाब देखे सुनहरे दिवस के पर

सादर...

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 4, 2022 at 10:14pm

जनाब गुमनाम पिथौरागढ़ी जी आदाब, एक ग़ैर मानूस (अप्रचलित) बह्र पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें, मगर... ग़ज़ल अभी समय चाहती है।

मतला और सभी सानी मिसरों में 'जेब' की तक़्तीअ आपने कैसे की, सही लफ़्ज़ वह्म (वहम) का वज़्न 21 है जिसे मतले में 12 पर लिया गया है, 'सुनहरे' 122 को 212 पर लेना भी मुनासिब नहीं है, देखियेगा। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"किसको लगता है भला, कुदरत का यह रूप। मगर छाँव का मोल क्या, जब ना होगी धूप।। ऊपर तपता सूर्य है, नीचे…"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह अशोक भाई। बहुत ही उत्तम दोहे। // वृक्ष    नहीं    छाया …"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   पीछा करते  हर  तरफ,  सदा  धूप के पाँव।   जल की प्यासी…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"     दोहे * मेघाच्छादित नभ हुआ, पर मन बहुत अधीर। उमस  सहन  होती …"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. अजय जी.आपकी दाद से हौसला बढ़ा है.  उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो…"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"बहुत उत्तम दोहे हुए हैं लक्ष्मण भाई।। प्रदत्त चित्र के आधार में छिपे विभिन्न भावों को अच्छा छाँदसिक…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service