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कालिख दिलों के साथ में ठूँसी दिमाग में - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
पथ में कोई सँभालने वाला नहीं हुआ
ये पाँव जानते थे जो छाला नहीं हुआ।।
*
कैसा तमस ये साँझ ने आगोश में भरा
इतने जले चराग उजाला नहीं हुआ।।
*
कालिख दिलों के साथ में ठूँसी दिमाग में
ऐसे ही मुख ये आप का काला नहीं हुआ।।
*
नेता ने क्या क्या पेट में ठूँसा है देश का
बस आदमी ही उसका निवाला नहीं हुआ।।
*
कोशिश बहुत की वैसे तो बँटवारे बाद भी
यह घर किसी भी राह शिवाला नहीं हुआ।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 8, 2022 at 4:00pm

आ. गुमनाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। 

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 6, 2022 at 9:27pm

वाह भाई साहब वाह , बहुत खूब ...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2022 at 3:59pm

//कालिख दिलों के साथ में ठूँसी दिमाग में//

यूँ पढ़े

कालिख दिलों के साथ ही ठूँसी दिमाग में

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