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November 2015 Blog Posts (159)

जब तुम हंसती हो झरते हैं,

जब

तुम हंसती हो
झरते हैं,
दशों दिशाओं से
इंद्रधनुषी झरने
हज़ार - हज़ार तरीके से
नियाग्रा फाल बरसता हो जैसे
तब,
सूखी चट्टानों सा
मेरा वज़ूद
तब्दील हो जाता है
एक हरी भरी घाटी में
जिसमे तुम्हारी
हंसी प्रतिध्वनित होती है
और मै,
सराबोर हो जाता हूँ
रूहानी नाद से
जैसे कोई योगी नहा लेता है
ध्यान में उतर के
अनाहत नाद की
मंदाकनी में

मुकेश इलाहाबादी ----

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by MUKESH SRIVASTAVA on November 30, 2015 at 1:00pm — 10 Comments

तुम्हारा हक़ (लघुकथा )

बेहाल होकर वह मोहित को एकटक देखे जा रही थी। चादर से ढका शव, शान्त चेहरा , सब्र आँखों से टूट कर बह रहा था , लेकिन रुदन हलक में जैसे अटक गया हो ,--" क्या हुआ तुम्हें ? आँखे न खोलोगे मोहित , देखो , मैं बेसब्र हो रही हूँ। क्या तुम यूँ अकेला मुझे छोड़ जाओगे ? तुमने तो कहा था, कि तमाम उम्र मेरा साथ दोगे, फिर ऐसे बीच राह में मुझे छोड़ , कहाँ , क्यों ? "-- होठों पर ताले जडे हुए थे , लेकिन आँखों ने सारी मर्यादा तोड़ दी थी. उसे एहसास हुआ दो नज़रों का घूरना , वह ग्लानि से भर उठी। अपराधी थी उन दो नज़रों की।…

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Added by kanta roy on November 30, 2015 at 12:30pm — 13 Comments


मुख्य प्रबंधक
अतुकांत कविता : प्रतिनिधि (गणेश जी बागी)

मैं सड़क हूँ

मुझे तैयार किया गया है

रोड रोलरों से कुचल कर.



मुझे रोज रौंदते हैं 

लाखों वाहन

अक्सर....

विरोध प्रदर्शन का दंश

झेलती हूँ

अपने कलेजे पर

होता रहता हैं

पुतला दहन भी

मेरे ही सीने पर

विपरीत परिस्थितियों में

मैं ही बन जाती हूँ

आश्रय स्थल

कई कई बार तो

प्राकृतिक बुलावे का निपटान भी

हो जाता है

मेरी ही गोद में



फिर भी.....

मैं सहिष्णु…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 29, 2015 at 1:00pm — 32 Comments

वो मेरा दिल है

बहर 2122/1122/1122/22



वो मेरा दिल है शिकायत से पता लिखता है।

मेरे खातिर वो इबादत -ओ- दुआ लिखता है।।



कोरे कागज में सरारत से खता लिखता है।

जब भी लिखता है मुहब्बत है जता लिखता है।।



उसकी रंगत में छिपा चाँद है वो शहजादी।

ख्वाब हर रात को उसकी ही अदा लिखता है।।



कौन शायर है शहर का युँ तिजारत वाला ।

शोख नजरों के इशारों को दगा(बिका) लिखता है।।



वो किसानों के घरों में हैं पकी फसलों सी।

उनकी खुश्बू से खलिहान छठा लिखता…

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Added by amod shrivastav (bindouri) on November 29, 2015 at 11:00am — 4 Comments

तुम सोचना ये मत (गजल)

1222-1222-1222-1222

मुझे गम के समन्दर में अभी बहना नहीं आया ।

सभी यारो ने माना ये सच्च कहना नहीं आया ।।

 

मुझे कहते रहे कायर इश्क के सूरमां सारे ।

मगर हम मौन हो गए और कुछ कहना नही आया ।।

 …

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Added by DIGVIJAY on November 29, 2015 at 1:00am — 16 Comments

ग़ज़ल :- जन्नत में हर इक चीज़ है,दुनिया तो नहीं है

इक बात है यारों कोई शिकवा तो नहीं है

जन्नत में हर इक चीज़ है दुनिया तो नहीं है



हूँ लाख गुनहगार मगर ऐ मेरे मौला

सर मैंने कहीं और झुकाया तो नहीं है



मैं चाँद के बारे में बस इतना ही कहूँगा

दिलकश है मगर आपके जैसा तो नहीं है



वो आज अयादत के लिये आए हैं मेरी

जो देख रहा हूँ कहीं सपना तो नहीं है



करता ही रहा है ये ख़ता करता रहेगा

इन्सान फिर इंसाँ है फ़रिश्ता तो नहीं है



सर मैं भी झुकाता हूँ तेरे सामने लेकिन

सजदा मेरा,शब्बीर… Continue

Added by Samar kabeer on November 28, 2015 at 11:48pm — 16 Comments

हाँ, तुम बंट गए उस दिन कबीर

हाँ, तुम बंट गए उस दिन कबीर

 

अहो कबीर !

कही पढा था या सुना

तम्हारी मृत्यु पर

लडे थे हिन्दू और मुसलमान 

जिनको तुमने

जिन्दगी भर लगाई फटकार

वे तुम्हारी मृत्यु पर भी

नहीं आये बाज

और एक

तुम्हारी मृत देह को जलाने   

तथा दूसरा दफनाने  

की जिद करता रहा

और तुम

कफ़न के आवरण में बिद्ध

जार-जार रोते इस  मानव प्रवृत्ति पर 

अंततः हारकर मरने के बाद…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 28, 2015 at 6:00pm — 24 Comments

ज़िन्दगी के मायने(लघुकथा)

"सारा जीवन बैल की तरह कमाया।अपनी और अपने बच्चों की तरफ न देखा,न ही कोई भविष्य की योजना कर पाए।",झिड़कते हुए उसकी पत्नी ने बोला।

और वह उसकी तरफ एक बार देख ही पाया उत्तर में।

"ऐसे क्या घूर रहे हो मुझे ?कुछ गलत नहीं बोली हूँ।"

"हूँsss।मैंने तो....."

"क्या मैंने तो?कोई सगे भाइयों के लिए कुछ नहीं करता और तुमने तो अब तक का अपना जीवन सौतेलों के लिए जिया।उनको तो बना दिया और ख़ुद.....।"

"क्या बोले जा रही हो भाग्यवान....?"

"आज तो कोई सगा किसी का नहीं,तो सौतेला क्या होगा?अपनी… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2015 at 2:24pm — 8 Comments

संकल्प - एक व्यंग

" ओ बाबू , सुन ना ! मुझे नेता बनना है , " --पैर पटक - पटक कर भोलूआ आज जिद पर आन पड़ा । कम अक्ल होने के बावजूद भोलूआ अपने भोलेपन के कारण गाँव भर का दुलारा था ।

बापू तो सुनते ही चक्कर खा गया । बिस्कुट ,चाकलेट और मेले घुमाने तक के सारे जिद तो आसानी से पूरा करता आया था , लेकिन बुरबक , अबकी कहाँ से नेता बनने का जिद पाल लिया । सोचे कि चलो गुड्डे- गुडि़या वाला नेता बना देंगे । रामलीला वाले सुगना से नेता जी का ड्रेस माँग के भी पहिराय देंगे , लेकिन भोलूआ का जिद तो असली नेता बनने से है । अब का…

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Added by kanta roy on November 28, 2015 at 12:00pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
अतुकांत - आस्तीन मे छुपे सांप ( गिरिराज भंडारी )

आस्तीन मे छुपे सांप

*****************

किसी हद तक सच भी है

आपका कहना

चलो मान लिया

 

आस्तीन मे छुपे सांप

हमारी रक्षा के लिये होते हैं

और हमे काट के या  डस के अभ्यास करते हैं

ताकि हमारा कोई दुश्मन हमपे वार करें

तो ,

हमें ही काट के किया गया अभ्यास काम आये

 

अब सोचिये न

क्या दुशमनी हो सकती है हमारे से ?

उस चूहे की

जो हमारे ही घर मे रह के

हमारे ही अन्न जल मे पलके बड़ा होता है …

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on November 28, 2015 at 10:22am — 5 Comments

मुझे जीने दो(लघुकथा)

टेलीविज़न बड़े घमण्ड में ताव दे रहा था,"आज तो ज़माने पर हमारा कब्ज़ा है।हमारे बिना किसी का गुज़ारा नहीं।बच्चे बूढ़े या जवान,सब में अपनी पहचान"

अब रेडियो इतराई,"देर रात तक पढ़ने वालों ,दूर-दराज़ तक के लोगों और मजदूरी करने वालों का मैं करती हूँ मनोरंजन और बांटती हूँ ज्ञान,बहुत दूर तक मेरी भी पहचान।"

अब कंप्यूटर की बारी आई,उसने भी सब की खिल्ली उड़ाई,"क्या रेडियो -टीवी मुझमें सब चलता सब दिखता है।और मनोरंजन से लेकर ज्ञान तक सब मुझमें टिकता है।"

इनकी बातें सुनकर साहित्य… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2015 at 7:09am — 4 Comments

माँ के लिए (लघुकथा)

छाती में भयंकर दर्द के कारण डॉ के पास गया।डॉ ने हृदय रोग होने की आशंका से उससे जुड़े सभी टेस्ट लिख दिए।टेस्ट हुए।रिपोर्ट आई।रिपोर्ट में शक के दायरे की सभी समस्याएं नदारद।रिपोर्ट के अनुसार कोई समस्या नहीं।सुनकर ख़ुशी हुई।फ़िर भी

-डॉ साहब ये छाती में दर्द क्यों हुआ?

-अरे कुछ नहीं!बस गैस,बाई-बादी....।

-पर क्यों?

-कुछ तीखा मसालेदार खा लिया होगा या फिर कुछ खाया ही नहीं होगा।

-हाँ हाँ।नवरात्र के व्रत रखे थे ।

-तुमने!!!!!

-जी।

उसे ध्यान आया बहुत कमजोरी के कारण… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 27, 2015 at 12:19pm — 2 Comments

धर्म-कर्म उत्क्रम (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (38)

"अब तो संतुष्ट हो न ! जी भर गया हो तो चलूं मैं ? लेकिन मैं ख़ुद नहीं जा सकती न, तुम ही मुझे छोड़ने चलो, तुम ही छोड़ोगे मुझे ! " - उसने झकझोरते हुए कहा।



"अभी नहीं, कुछ दिन और रुको , मुझे मालूम है कि एक दिन तुम्हें जाना ही है, लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी रवानगी से दीवानगी में इजाफा ही हो, मेरी ही नहीं, सभी की ! अभी तो मुझे बहुत कुछ करना है !"



"नहीं बहुत हो गया । कितने एंगल से देखोगे मुझे ? तीन सौ साठ डिग्री हो चुका न , ढल चुकी हूँ मैं, संवर चुकी हूँ मैं ! अब मुझे आज़ाद… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 27, 2015 at 8:21am — 12 Comments

धीरे-धीरे.........(बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’)

अरकान - 122 122 122 122

 

किया जिसने दिल में ही घर धीरे-धीरे|

उसी ने रुलाया मगर धीरे –धीरे|

 

उमर  मेरी  गुजरी है यादों में जिनकी ,

हुई आज उनको खबर धीरे –धीरे |

 

जहाँ तक पहुचने की ख्वाहिश है मेरी,

यकीनन मैं पहुंचूंगा पर धीरे –धीरे|

 

बचपन में सरका जवानी में दौड़ा,

बुढापा गया अब ठहर धीरे-धीरे|

 

न शिकवा किसी से न है अब शिकायत,

भरा घाव मेरा मगर धीरे –धीरे|

 

मौलिक व…

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Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 26, 2015 at 8:00pm — 4 Comments

भारत एक मैदान

मेरे घर के पास है, एक खुला मैदान,

चार दिशा में पेड़ हैं, देते छाया दान

करते क्रीड़ा युवा हैं, मनरंजन भरपूर

कर लेते आराम भी, थक हो जाते चूर

सब्जी वाले भी यहाँ, बेंचे सब्जी साज.

गोभी, पालक, मूलियाँ, सस्ती ले लो आज…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on November 25, 2015 at 8:30pm — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
'संबोधन' (लघु कथा 'राज')

संबोधन  

“देखो ये बस अब नहीं जा सकेगी खराब हो चुकी है चारो और सुनसान है  लगभग सभी सवारियां पैदल ही निकल चुकी हैं ये दो चार लोग ही बचे हैं और  बहन, मेरा गाँव पास में ही है पैदल ही चले जाएँगे सुबह खुद मैं तुम्हारे गाँव छोड़ आऊँगा  मेरे साथ चलो तुम्हारे लिए यही ठीक रहेगा”  सतबीर ने कोमल से कहा |

कोमल ने मन मे बेटी संबोधन, जो कुछ देर पहले बस में बचे हुए उन लोगों ने दिया को बहन के संबोधन से भारी तौलते हुए तथा खुद को मन ही मन  कोसते हुए  कि किस मनहूस घड़ी में वो पति से लड़कर गाँव…

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Added by rajesh kumari on November 25, 2015 at 7:32pm — 9 Comments

अँधेरा- एक सच ।

जब जन्म लिया इस माटी में,

तब आँखो तले अँधेरा था,

जब पलक उठी इस दुनिया में,

माँ के आँचल में हुआ सवेरा था,

फिर दिन चढ़ने और ढ़लने कि,

गुत्थी सुलझाने बैठ गया...,

जब एक तरफ देखा उजियाला

तो दूजी तरफ अँधेरा था ।। 1 ।।

 

छोटा था तो मन में मेरे,

उठता था एक बड़ा अँधेरा ?

क्यूँ रात होती हैं काली,

क्यूँ दिन को होता हैं सवेरा,

किसी ने बोला ये नियम प्रकति का,

तो कोई कहे इन्हे ग्रहों कि चाल...,

पर सच…

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Added by DIGVIJAY on November 25, 2015 at 7:30pm — 2 Comments

लड़ाई मज़हबी फिर से छिड़ी है (ग़ज़ल)

1222 1222 122

कभी है ग़म,कभी थोड़ी ख़ुशी है..

इसी का नाम ही तो ज़िन्दगी है..

हमें सौगात चाहत की मिली है..

ये पलकों पे जो थोड़ी-सी नमी है..

मुखौटे हर तरफ़ दिखते हैं मुझको,

कहीं दिखता नहीं क्यों आदमी है..?

फ़िज़ा में गूँजता हर ओर मातम,

कि फिर ससुराल में बेटी जली है..

सभी मौजूद हों महफ़िल में,फिर भी,

बहुत खलती मुझे तेरी कमी है..

दहल जाए न फिर इंसानियत 'जय',

लड़ाई मज़हबी फिर से…

Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on November 25, 2015 at 4:50pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
अतुकांत - काँव काँव से दीवारें नहीं गिरती ( गिरिराज भंडारी )

सच है 

कि, प्रकृति स्वयं जीवों के विकास के क्रम में

जीवों की शारिरिक और मानससिक बनावट में

आवश्यकता अनुसार , कुछ परिवर्तन स्वयं करती है

चाहे ये परिवर्तन करोड़ों वर्षों में हो

इसी क्रम में हम बनमानुष से मानुष बने …..

 

लेकिन ये भी सच है कि,

मानव कुछ परिवर्तन स्वयँ भी कर सकते हैं

अगर चाहें तो

 

और फिर हमारा देश तो आस्था और विश्वास का देश है

जहाँ यूँ ही कुछ चमत्कार घट जाना मामूली बात है

मै तो इसे मानता हूँ ,…

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Added by गिरिराज भंडारी on November 25, 2015 at 7:00am — 7 Comments

बेचारा सर्वहारा (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (37)

विजय उत्सव अपने चरम पर था। शहर के कुछ नामी नेता और मिल मज़दूरों में से दो अगुआ मज़दूरों के साथ बड़े कर्मचारी मिल मालिकों को बधाई दे रहे थे मज़दूरों के वापस काम पर लौटने पर।



"आपने पहले ही इशारा कर दिया होता, तो हम तो ये हड़ताल पांच-छह दिन में ही बंद करवा देते ! चारों अगुआ मज़दूरों को जेल भिजवाने में इतनी देरी हम होने ही नहीं देते ! " -एक नेता ने कहा।



"वो रूपकिशोर है न, वही उनकी ताक़त था, उसकी वो हालत करवा दी कि बीस दिनों से अस्पताल में भर्ती है"- एक दबंग ने मिल मालिक की तरफ… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 25, 2015 at 4:16am — 5 Comments

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