For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत कविता : प्रतिनिधि (गणेश जी बागी)

मैं सड़क हूँ
मुझे तैयार किया गया है
रोड रोलरों से कुचल कर.


मुझे रोज रौंदते हैं 
लाखों वाहन
अक्सर....
विरोध प्रदर्शन का दंश
झेलती हूँ
अपने कलेजे पर
होता रहता हैं
पुतला दहन भी
मेरे ही सीने पर
विपरीत परिस्थितियों में
मैं ही बन जाती हूँ
आश्रय स्थल
कई कई बार तो
प्राकृतिक बुलावे का निपटान भी
हो जाता है
मेरी ही गोद में


फिर भी.....

मैं सहिष्णु हूँ
या
असहिष्णु !
यह तय करते हैं
कथित बुद्धिजीवी.


मैं सड़क हूँ
एक सच्ची प्रतिनधि
इस देश की.

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट =>लघुकथा : शातिर

Views: 1383

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 18, 2016 at 6:33pm
वास्तविकता को समेटे अद्भुत रचना।हार्दिक बधाई आदरणीय बागी सर।
Comment by LOON KARAN CHHAJER on January 8, 2016 at 6:03pm

फिर भी.....

मैं सहिष्णु हूँ
या
असहिष्णु !
यह तय करते हैं
कथित बुद्धिजीवी.


वाहा।  गणेश जी बहुत मार्मिक। .......

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 4, 2016 at 5:58pm
सम्पूर्ण रचना बार-बार पढ़कर गहराई में उतरने को जी चाहता है....इसी भाव व कथ्य को आपकी लेखनी से उत्कृष्ट लघुकथा में उतरते देखने को जो चाहता है!! इस कृति की तारीफ़ में लफ़्ज़ ढूंढने को जी चाहता है आदरणीय गणेश जी "बागी" जी ।
Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 3:24pm

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय गणेश जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 5, 2015 at 11:32pm

सड़क एक प्रतीक तो है ही, आपने, गणेशभाई, बिम्बात्मक तौर पर जिस तरह से प्रयुक्त किया है वह आपकी संवेदनशीलता का सटीक उदाहरण है. समसामयिकता कई बार,  विशेषकर नयी कविताओं में, सपाटबयानी के कारण उबाऊ हो जाती है. लेकिन इस रचना में सामयिक तौर पर आम हो चले शब्दों का जिस तरह से उपयोग किया गया है वह प्रासंगिकता को नये आयाम देता है.

समस्त विसंगतियों को झेलती हुई एक सड़क किस तरह से हम-आपके भावनाओं की उद्घोषणा हो जाती है यह पता भी नहीं चलता. लेकिन इन पंक्तियों के सापेक्ष आमजन की मानसिक सीमाओं को करारे ढंग से सामने लाया गया है --

फिर भी.....

मैं सहिष्णु हूँ
या
असहिष्णु !
यह तय करते हैं
कथित बुद्धिजीवी.

एक अरसे बाद आपकी प्रस्तुति आयी है. लेकिन कई शिकायतों का निवारण करती हुई.

हार्दिक शुभकामनाएँ व ढेर सारी बधाइयाँ, गणेश भाई

शुभ-शुभ

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 5, 2015 at 11:20pm

उत्साहवर्धन और सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय सुनील जी.

Comment by shree suneel on December 5, 2015 at 8:48pm
आदरणीय गणेश जी, इस सुन्दर, समर्थ अतुकांत कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई आपको. सादर.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 5, 2015 at 12:13pm

सराहना हेतु आभार आदरणीय राम आश्रय जी.

Comment by Ram Ashery on December 4, 2015 at 9:30pm

अति उत्तम रचना आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 3, 2015 at 2:22pm

आदरणीया राजेश जी, आपकी सराहना कविता को पुरुस्कृत कर गयी, आपने रचना की आत्मा तक जाकर प्रतिक्रिया की है इसके लिए बहुत बहुत आभार.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
17 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
18 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
20 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service