For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत - काँव काँव से दीवारें नहीं गिरती ( गिरिराज भंडारी )

सच है 

कि, प्रकृति स्वयं जीवों के विकास के क्रम में

जीवों की शारिरिक और मानससिक बनावट में

आवश्यकता अनुसार , कुछ परिवर्तन स्वयं करती है
चाहे ये परिवर्तन करोड़ों वर्षों में हो

इसी क्रम में हम बनमानुष से मानुष बने …..

 

लेकिन ये भी सच है कि,
मानव कुछ परिवर्तन स्वयँ भी कर सकते हैं

अगर चाहें तो

 

और फिर हमारा देश तो आस्था और विश्वास का देश है

जहाँ यूँ ही कुछ चमत्कार घट जाना मामूली बात है

मै तो इसे मानता हूँ , मित्रों !

आप इनकार न करें , यक़ीन करें


परिवर्तन, चमात्कारिक भी हो सकता है  
क्यों नही हो सकता भला

ज़रूर हो सकता है

अब देखिये न

इधर किसी संख्या बल घटी तो ,
चमात्कारिक रूप से

वर्षों से मौन ,

मूक विषधरों को ज़बान भी मिल गई

ये चमत्कार नहीं तो और क्या है ?

 

और मै ये भी जानता हूँ
भाषा , कौन सी है और कहाँ से सीखी गई है , रातों रात
ये सदियों के मूक बधिर इशारों की भाषा समझने वाले
किसके इशारों की तर्ज़ुमानी कर लेते हैं / कर रहे हैं

लेकिन , अफसोस !

अपनी प्रकृति प्रदत्त गुणों मे कोई परिवर्तन नही कर पाये
या, शायद इशारा ही न हुआ हो , परिवर्तन का

बहरहाल अपने प्राकृतिक गुणो का अनुशरण कर
ज़हर आज भी उगल लेते हैं , काट के नहीं तो ज़बान से सही

भाषा कोई भी हो, किसी की भी हो , भाव ज़हरीला हो

और तो और मै ये भी जनता हूँ
संख्या बल उलटते ही

एक और परिवर्तन होगा
ये सब फिर से मूक बधिर हो जायेंगे
ये तय  बात है

लेकिन ये भी तय है बात है
कौवों के काँव काँव से ध्वनि प्रदूषण तो हो सकता है , थोड़े समय के लिये
पर , काँव काँव से दीवारें नहीं गिरा करतीं

दीवारें वो भी स्पाती दीवारें
असंभव है !

**********************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 493

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2015 at 12:43am

रचना का कारण, तदोपरान्त कथ्य भले अभिधात्मक न हो परन्तु इसके इंगित प्रहारक हैं, अतः उनकी स्पष्टता दिखती हुई है. मुझे प्रतीत होता है, कि यह कविता आवेश और  प्रतिकार का प्रतिफलन है. ऐसी अभिव्यक्तियाँ एक ईमा में ही ठीक लगा करती हैं. वस्तुतः कविकर्म जब भावातिरेक में होता है तो अक्सर भावनाएँ शाब्दिक आकार पाती हैं. 

अक्षरी दोष इस बार अधिक होने से वाचन में असहजपन बना रहा. इस ओर ध्यान अवश्य बना रहे. 

प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ 

Comment by DIGVIJAY on November 26, 2015 at 1:11pm

बहुत ही सुन्दर एवं यथार्थवादी रचना हेतु आपको ढेरों बधाई आदरणीय ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 26, 2015 at 12:47pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति  आज  के माहौल पर सटीक कटाक्ष  बहुत बहुत बधाई आ० गिरिराज जी |

Comment by TEJ VEER SINGH on November 25, 2015 at 6:59pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी!आजकल के सामाजिक और राजनैतिक वातावरण का उच्च स्तरीय मूल्यांकन करते हुये बेहतरीन कटाक्ष और हास्य  का मिश्रण लिये हुए शानदार रचना!पुनः बधाई!

Comment by Sushil Sarna on November 25, 2015 at 5:31pm

काँव काँव से दीवारें नहीं गिरा करतीं
दीवारें वो भी स्पाती दीवारें
असंभव है !

यथार्थ इंगित करती ये पंक्तियाँ रचना की जान हैं। इस यथार्थपरक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज भंडारी जी।

Comment by Shyam Narain Verma on November 25, 2015 at 2:35pm

बहुत सुन्दर और मार्मिक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई ।

.सादर

Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 25, 2015 at 10:02am
सही कहा बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
6 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
7 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
7 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
8 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
13 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service