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धीरे-धीरे.........(बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’)

अरकान - 122 122 122 122

 

किया जिसने दिल में ही घर धीरे-धीरे|

उसी ने रुलाया मगर धीरे –धीरे|

 

उमर  मेरी  गुजरी है यादों में जिनकी ,

हुई आज उनको खबर धीरे –धीरे |

 

जहाँ तक पहुचने की ख्वाहिश है मेरी,

यकीनन मैं पहुंचूंगा पर धीरे –धीरे|

 

बचपन में सरका जवानी में दौड़ा,

बुढापा गया अब ठहर धीरे-धीरे|

 

न शिकवा किसी से न है अब शिकायत,

भरा घाव मेरा मगर धीरे –धीरे|

 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 2, 2015 at 11:27pm

आदरणीय रवि शुक्ला साहेब ...... हौसला अफ़जाई व उचित सलाह हेतु, बहुत-बहुत शुक्रया| 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 2, 2015 at 11:24pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी ..........बहुत -बहुत शुक्रिया|

Comment by Ravi Shukla on December 1, 2015 at 12:23pm

आदरणीय बैजनाथ जी सीधी सादी जुबान में आपने अपने जीवन का दर्शन बयान कर दिया बहुत बहुत बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिये

जहाँ तक पहुचने की ख्वाहिश है मेरी,

यकीनन मैं पहुंचूंगा पर धीरे –धीरे|  इंशा अल्‍लाह ऐसा ही होगा श्‍ुाभकामनाएं लीजिये हमारी

न शिकवा किसी से न है अब शिकायत,

भरा घाव मेरा मगर धीरे –धीरे|  धीरज को आपने अपने अंदाज से बयान किया है बधाई लीजिये

उमर को आपने 12 के वज्न में बांधा है मगर ये 21 के वज्न में लिखा जाने वाला लफ्ज है देख लीजियेगा ।

Comment by Shyam Narain Verma on November 28, 2015 at 5:43pm
बहुत सुंदर , हार्दिक बधाई ।

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