दोहा पंचक. . . राजनीति
राजनीति के जाल में, जनता है बेहाल ।
मतदाता पर लोभ का, नेता डालें जाल ।।
राजनीति में आजकल, धन का है व्यापार ।
भ्रष्टाचारी की यहाँ , होती जय जयकार ।।
राजनीति में अब नहीं , सत्य निष्ठ प्रतिमान ।
श्वेत तिजोरी मांगती , जनता से बलिदान ।।
भ्रष्टाचारी पंक में, नेता करते ठाठ।
कीच नीर में यूँ रहें, जैसे तैरे काठ ।।
राजनीति के तीर पर, बगुले करते ध्यान ।
मीन…
Added by Sushil Sarna on September 26, 2023 at 2:00pm — 6 Comments
. पिंकी के बारे में उसको यह पता चला था कि वह बहुत बीमार रही और काफ़ी समय तक अस्पताल में रही। उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था परंतु जब पिंकी को स्कूल में देखा तो वह चहक उठी। वह पिंकी से लिपट गयी और कुछ पूछने को थी कि पिंकी ने जमकर उसका हाथ पकड़ लिया। पूरे दिन दोनों में से कोई न बोला। स्कूल खत्म होने पर दोनों एक साथ हाथ पकड़ कर बाहर निकले तब पिंकी के पापा-मम्मी को उनकी कार में खड़े पाया। चुप्पी तोड़ते हुए पिंकी ने धीरे से कहा, "घर चलोगी?" तान्या ने पिंकी की मम्मी से उनका मोबाइल माँगा और कॉल लगाया। इस…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 26, 2023 at 1:49pm — 2 Comments
बेटी दिवस पर दोहा ग़ज़ल ....
बेटी घर की आन है, बेटी घर की शान ।
दो दो कुल संवारती, बेटी की मुस्कान ।।
बेटी को मत जानिए, बेटे से कमजोर ,
जग में बेटी आज है, उन्नति की पहचान ।
बेटे को जग वंश का, समझे दावेदार,
बेटे से कम आंकता, बेटी के अरमान ।।
धरती अरु आकाश पर , लिख दी अपनी जीत,
बेटी ने अब छू लिया , धरा से आसमान ।।
बेटी अबला अब हुई, अतुल शक्ति पर्याय ,
उसके साहस को करे, नमन सारा जहान…
Added by Sushil Sarna on September 25, 2023 at 11:56am — 4 Comments
वक़्त अच्छा है
तो सब अच्छा है ,
वर्ना बुरे वक़्त से
बुरा, कुछ नहीं। ....... (1)
जोड़ना और जुड़ जाना भी
एक बहुत बड़ा हुनर है।
अक्सर लोग , टूट कर ,
खुद ही बिखर जाते हैं ,
दूसरों को तोड़ने में । ... (2)
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on September 24, 2023 at 5:30pm — 6 Comments
Added by Chetan Prakash on September 24, 2023 at 9:46am — 1 Comment
कलियुग
उषा अवस्थी
ब्रह्मज्ञानी उपहास का पात्र है
अर्थार्थी सिर का ताज है
किसको ,कब पटखनी दें? आँखें गड़ाए हैं
मिलते ही मौका, धूल में मिलाए हैं
कलियुग है,चाहते अपनी वज़ाहत है
दूसरों को मारकर जीने की चाहत है
श्रमिकों की मेहनत का हक़, हक़ से लेते हैं
जन्म-जन्मांतर पापों को ढोते हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 23, 2023 at 5:37am — 2 Comments
मधुमालती छंद ....
1
डर कर कभी, रोना नहीं ।
विश्वास को, खोना नहीं ।
तूफान में, सोना नहीं ।
नफरत कभी , बोना नहीं ।
***
2
क्षण- क्षण बड़ा, बलवान है ।
संग्राम की, पहचान है ।
हर पल यहाँ, संघर्ष है ।
पल भर यहाँ , बस हर्ष है ।
***
3
सपने कभी ,मरते नहीं
दीपक सभी , जलते नहीं ।
थोड़ी यहाँ, मुस्कान है ।
ढेरों यहाँ , व्यवधान है ।
***
4
हर वक्त ही,बस काम है।
जीवन इसी का नाम है ।
थोड़ी यहाँ, पर…
Added by Sushil Sarna on September 21, 2023 at 8:12pm — No Comments
मन नहीं है
उषा अवस्थी
अब कुछ भी लिखने का, मन नहीं है
क्या कहें ? साहित्य के नाम पर
चलाए जा रहे व्यापार में
ख़रीद-फ़रोख़्त के बाज़ार में
बिकने का मन, नहीं है
अब कुछ भी लिखने का, मन नहीं है
इस दुनिया की इक छोटी सी बस्ती में
रहती हूँ, कोई बड़ी हस्ती नहीं हूँ मैं
शकुनी की शतरंजी झूठी इन चालों से
मोहरों के बेवजह…
ContinueAdded by Usha Awasthi on September 21, 2023 at 6:30am — 4 Comments
1222 1222 1222 1222
अगर कोशिश करेंगे आबोदाना मिल ही जाएगा।
किराए का सही कोई ठिकाना मिल ही जाएगा।
.
अगर तर्के तअल्लुक का अहद कर ही चुके हो तुम,
ज़ह्न पर ज़ोर दो, कोई बहाना मिल ही जाएगा।
.
हमें अच्छी बुरी कोई न कोई मिल ही जाएगी,
तुम्हें डिप्टी कलक्टर का घराना मिल ही जाएगा।
.
ज़रूरत क्या है दरिया के भँवर को आज़माने की,
किनारा थाम कर चलिए, दहाना मिल ही जाएगा।
.
खुशी अपनी किसी लॉकर में रख कर भूल गए…
ContinueAdded by Balram Dhakar on September 19, 2023 at 4:56pm — 2 Comments
1222 1222 1222 1222
सुहाना सुब्ह मौसम है तुम्हें अब ग़म नहीं होता
खिली है धूप गुलशन में सवेरा कम नहीं होता
वो काली रात है तारी अँधेरा कम नहीं होता
ये कैसा वक़्त आया है सनम हमदम नहीं होता
परायापन बना हासिल कि रिश्तों दम नहीं होता
न प्यारा कोई है दुनिया कभी दुख कम नहीं होता
तुम्हारी आँख का पानी अभी क्यों सूखता जानाँ
हमे तो शर्म आती हैं पशेमाँ दम नहीं होता
तुम्हारे शह्र के हालात वो…
ContinueAdded by Chetan Prakash on September 15, 2023 at 8:22am — 2 Comments
प्रकृति
उषा अवस्थी
पैसे देकर छ्प गए
ढोया झूठा भार
भावों के सौदागरों का
चलता व्यापार
अक्षर-अक्षर, शब्द हैं
"वाणी" का उपहार
सर्व- समर्थ अनन्त से
जिसके जुड़ते तार
ठुकराती दुर्गा उन्हे
जिनमें अहं विकार
सन्मार्गी को चल स्वयं
दिखलाती प्रभु- द्वार
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 15, 2023 at 1:50am — No Comments
सत्य अटल है , स्थिर है ,
झूठ न अटल है ,न स्थिर है।
समय के अनुसार परिवर्तन शील है ,
परिस्थिति वश बदल जाता है ,
हर हाल से समझौता कर लेता है ,
मुखर है , निडर है ,सर चढ़ कर बोल लेता है ,
बहुरंगी है , बहुधन्धी है ,
इसलिए हर जगह चलता है ,
सत्य स्थिर है , अटल है ,
सत्य खोजना पड़ता है ,
झूट स्वयं उपस्थित हो जाता है.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on September 14, 2023 at 10:00pm — 4 Comments
बह्र : 221 2121 1221 212
ज़ालिम बढ़ा दे ज़ुल्म ज़रा हर ख़ता के बाद
होता है इंक़िलाब सदा इंतिहा के बाद
किसने बदल दिया है ये कानून देश का
होने लगी है जाँच यहाँ अब सज़ा के बाद
बीमारियों से देश बचा लोगे जान…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 13, 2023 at 8:17pm — 2 Comments
२२/२२/२२/२
*
कुछ हो मत हो नेता दिख
मुख से निकला वादा दिख।१।
*
दुनिया को गर खुश रखना
उसके हित बस खटता दिख।२।
*
शीष नवायें सब तुझ को
इच्छा है तो दादा दिख।३।
*
लोकतन्त्र की रीत निभा
राजा होकर जनता दिख।४।
*
खबरों में गर आना है
नियमित से बस उल्टा दिख।५।
*
भीड़ जुटानी अगल बगल
जीने से बढ़ मरता दिख।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2023 at 7:49am — 4 Comments
दोहा सप्तक. . . संसार
औरों को देखा मगर, कब समझा इंसान ।
संचित सब कुछ छोड़ता, जब होता अवसान ।।
कहते हैं लगती नहीं, कभी कफन में जेब।
फिर भी धन की लालसा, देती उसे फरेब ।।
आने पर जैसे करें, जीव रूप सत्कार ।
पुष्पों से ढकते कफन ,जब छूटे संसार ।।
जीत क्षुधा मिटती नहीं, मिट जाती यह देह ।
नश्वर तन से जीव का, कब मिटता है नेह ।।
कर्मों का करता सदा, पीछे जगत बखान ।
रह जाती बस जीव की, अमिट यही पहचान…
Added by Sushil Sarna on September 11, 2023 at 2:00pm — No Comments
ना जइयो परदेस सजनवा, बिन तेरे हिया ना लगे रे
तोहरी राह तकते तकते हमरी, प्राण निकल ना जावे रे
जे तू हमरी सुध ना लेवे, ना हमारी पाती लौटावे रे
तोहरी क़सम हम तोहरी खातिर भूख प्यास भी त्यागे रे
ना जइयो परदेस सजनवा, बिन तेरे हिया ना लगे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 9, 2023 at 11:57pm — No Comments
मिट्टी के लोंदे सभी, अनगढ़ था बर्ताव
हमें सिखा कर ककहरा, शिक्षित किया स्वभाव
शिक्षित किया स्वभाव, सभी का योगदान था
निर्मल नेह-दुलार, परस्पर भाव-मान था
कड़क किंतु व्यवहार, सटकती सिट्टी-पिट्टी
शिक्षक थे सब योग्य, सभी ने गढ़ दी मिट्टी
***
सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Saurabh Pandey on September 5, 2023 at 9:30am — 4 Comments
भोर होने को है देखो, छट रहा है अंधेरा
किस संशय ने तुमको अब भी रखा है घेरा
बढ़ा कदम दिखा ताक़त तू अपने बुलंद इरादो की
कौन सी है दीवार यहाँ जिसने तुझको रोखे रखा है
तू अगर चलेगा तो, मंज़िल भी तुझ तक आएगी
भला बता वो तुझसे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 2, 2023 at 7:33pm — No Comments
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