Added by Sweet Panday on September 11, 2017 at 5:07pm — 5 Comments
Added by Rahila on September 11, 2017 at 1:30pm — 10 Comments
मै लिख दूंगा कोई गा देगा,
मेरा गीत अमर हो जायेगा।
अधरोँ पर शब्द मेरे होंगे
जिह्वा पर शब्द मेरे होंगे,
कण्ठो के उच्छवासोँ मे भी,
श्रवणोँ मे शब्द मेरे होंगे।
संगीत मे कोई सजा देगा,
मेरा गीत अमर हो जायेगा।
मै लिख...............
स्पन्दन मे; अजवन्दन मे,
परिहास और अभिनन्दन मे;
उत्साह और अभिलाषा मे,
करुणा मे निर्जन कानन मे।
शब्दो कि वायु बहा देगा,
मेरा गीत अमर हो जायेगा।
मै…
ContinueAdded by ARUNESH KUMAR 'Arun' on September 10, 2017 at 4:00pm — 6 Comments
मेरे घर, मेरे शहर, मेरे लफ्जों को
एक आहट सी लगी,
कि कोई उन्हें छूकर चला गया..
वो ठंडी सी छुवन,
एक भंवर सी कम्पन...
लगा पहाड़ों से कोई
मंदाकिनी आ गयी..
लगा मेरे लफ्जों को,
एक आवाज सी मिल गयी..
जैसे मेरे गीतों को,
कोई छूकर चला गया...
उन्हें कहें भी,
क्या कहें..
किस हक़ से कहें ?
कि दीदार तो जरूरी था..
इन्तजार तो जरूरी था,
या वो ऐतबार भी जरूरी था..
जैसे मेरा कोई अपना हो,
जो छूकर चला…
Added by BS Gauniya on September 10, 2017 at 2:00pm — 5 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 9, 2017 at 11:23pm — 12 Comments
Added by MUKESH SRIVASTAVA on September 9, 2017 at 11:06pm — 8 Comments
"मणिधर, ये 'गिफ्ट पैक' 222 नंबर में मैडम को दे आओ।" सिक्योरटी इंचार्ज का आदेश मिलते ही उसके मन में एक विचार कौंध गया था और कुछ क्षण बाद ही वह एक हाथ में 'गिफ्ट' और दूसरे हाथ में चटक लाल रंग का गुब्बारा लिये मैडम के दरवाजे पर था।
बहुत ज्यादा दिन नही हुए थे उसे, इस मल्टीस्टोरी फ्लैटों से सुसज्जित सुंदर सोसायटी में सुरक्षा गार्ड की ड्यूटी पर आये हुए। आते-जाते लोगों की निगरानी के बीच खाली समय में वह अक्सर फ्लैटों पर अपनी नजरें घुमाया करता था। और इसी बीच सातवें माले के उस कार्नर फ्लैट की बड़ी…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on September 9, 2017 at 8:30pm — 23 Comments
गीत बन कर मिलो, गुनगुनाऊँगा मैं,
मेरी जाने ग़ज़ल, तुमको गाऊँगा मैं...
दूरियां दरमियां, और कब तक रहें,
ग़म जुदाई के हम, बोलो कब तक सहें,
और कब तक भला, आजमाऊँगा मैं,
मेरी जाने ग़ज़ल....
एक दस्तक हुई, आज दिल पे मेरे,
मेरी उम्मीद है, ये करम हो तेरे,
और कब तक यूँ ही, दिल जलाऊँगा मैं...
मेरी जाने ग़ज़ल....
दिन ये ख़ामोश हैं, रात में करवटें,
आरजू है धुआँ, याद में सिलवटें,
तुमको कैसे भला, भूल पाऊँगा मैं,
मेरी जाने…
Added by Ravindra Pandey on September 9, 2017 at 2:30pm — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on September 9, 2017 at 12:03pm — 10 Comments
प्रिये, स्वप्न दर्शन में जब तुम किसी भाँति हो मिल जाती
निष्ठुर भुजपाशों में भरने की ज्यों ही बेला आती
आतुर हो जब महा शून्य में अपना भुज मैं फैलाता
मेरी करुणा पर वन देवी का दृग-अंचल भर आता
मोटे-मोटे मुक्ताहल से अश्रु कपोलों पर आते
और पादपों के पल्लव पर सहसा बरस बिखर जाते (४३)
देवदार तरु के नैसर्गिक मुड़े हुए मृदु पातों को
सहज खोल दक्षिण से आती हिमपर्वत की वातो को
जो उन पल्लव के फुटाव से बहते पय-निर्यासों…
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 9, 2017 at 11:30am — 5 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 9, 2017 at 1:30am — 9 Comments
Added by santosh khirwadkar on September 8, 2017 at 10:30pm — 7 Comments
Added by Uma Vishwakarma on September 8, 2017 at 10:10pm — 3 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
...........................................
दिलबर तुम कब आओगे सबआस लगाए बैठे हैं "
देखो फूलों से अपना घर - बार सजाए बैठे हैं "
.
हम तो उनके प्यार का दीपक दिल में जलाए बैठे हैं "
जाने क्यों वो हमको अपने दिल से भुलाए बैठे हैं "
.
किसको ख़बर थी भूलेंगे वो बचपन की सब यादों को "
उनकी चाहत आज तलक हम दिल में बसाए बैठे हैं "…
Added by SALIM RAZA REWA on September 8, 2017 at 10:00pm — 5 Comments
Added by Uma Vishwakarma on September 8, 2017 at 5:48pm — 6 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
घरोंदों को जलाया है किसी ने दोस्ती करके
चिरागों को बुझाया है किसी ने दोस्ती करके
सुकूं था जिसके जीवन में जिसे आती थी मीठी नींद
उसे शब् भर जगाया है किसी ने दोस्ती करके
जो दुश्मन था जमाने से जो प्यासा था लहू का ही
उसी को अब बचाया है किसी ने दोस्ती करके
अँधेरे में मेरा साया हुआ कुछ इस तरह से गुम
ज्यूँ रिश्ता हर भुलाया है किसी ने दोस्ती करके
फकीरों की तरह जीता, था खुश तन्हाई…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 8, 2017 at 5:27pm — 5 Comments
मुझे भी कुछ कहना है – लघुकथा -
"माँ, मुझे कुछ पल अकेला छोड़ दो। मुझे एकांत चाहिये"।
"ठीक है नीरू, पर तू अंधेरे में क्या कर रही है? तेरे दिमाग में कुछ ऐसा वैसा तो नहीं चल रहा"।
"माँ, आपकी बेटी इतनी कमजोर नहीं है"।
"मैं जानती हूँ। इसीलिये तो डर लगता है। तू यह लिखना छोड़ क्यों नहीं देती"?
"माँ, आप कैसी बात कर रहे हो? वह मेरी गुरू थी। मेरी आदर्श थी। उसे गोलियों से उड़ा दिया। और मैं चुप हो कर बैठ जाऊँ। असंभव"।
"बेटी, मुझे तेरी जान की चिंता है। जिस काम…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 8, 2017 at 11:06am — 10 Comments
अरकान : फ़ाइलातून फ़ाइलातून फ़ाइलुन
है शिकायत दिल को ऐसा क्यूँ नहीं
जब तू मेरा है तो लगता क्यूँ नहीं
जब नज़र से मिल नहीं पाती नज़र
ख़्वाब से बाहर निकलता क्यूँ नहीं
लग रही है क्यूँ थमी दुनिया मुझे
तू भी मौसम सा बदलता क्यूँ नहीं
है ज़बाँ चुप और धड़कन तेज़ है
तू इशारों को समझता क्यूँ नहीं
जिस्म ठण्डा पड़ गया'संतोष'…
Added by santosh khirwadkar on September 7, 2017 at 6:58pm — 14 Comments
बहरे रमल मुसम्मन सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन: 2122 2122 2122 2122
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है जिगर में कुछ पहाड़ों सा, पिघलना चाहता है
मौसम-ए-दिल हो चुका कुहना बदलना चाहता है
छोड़कर सब ही गये ख़ाली है दिल का आशियाना
अश्क़ बन कर तू भी आँखों से निकलना चाहता है
चोट खाकर दर्द सह कर बेदर-ओ-दीवार होकर
दिल तेरी नज़र-ए-तग़ाफ़ुल में ही जलना…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 7, 2017 at 5:30pm — 19 Comments
रंग बिरंगा हो गया हूँ,
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जैसे
कच्ची दोमट
मिट्टी का धेला
धीरे धीरे घुलता है
बारिस के पानी में
और पानी मटमैला मटमैला हो जाता है
मिट्टी की सोंधी सोंधी महक के साथ
बस ऐसी ही
तुम घुलती हो मुझमे
और घुलता जाता है
तुम्हारी आँखों की पुतली का
ये कत्थई रंग
सिर्फ आँखों का रंग ही क्यूँ
तुम्हारे काजल का गहरा काला
आँचल का आसमानी
गालों का गुलाबी
होंठो का मूँगिया
और तुम्हारी हंसी का दूधिया…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on September 7, 2017 at 4:39pm — 5 Comments
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