बहर.
2122-2122-2122-212
एक दिन उसने मेरी खामोशियों को रख दिया ।।
मेरे पेश-ए-आईने मे'री' हिचकियों को रख दिया ।।
तोड़ बंदिश हिज्र -ए-दिल ख़ुल कर युँ रोया इक दफा।
उसने दिल के सामने जब चिट्ठियों को रख दिया ।।
खन्न की आवाज ले सिक्का छुआ कांसे को जब।
भूख ने नजरें उठाई सिसकियों को रख दिया ।।
जब कभी मेरा वजू अन्धा हुआ इस भीड़ में ।
माँ ने अपनी आस के रौशन दियों को रख दिया ।।
गर कभी मायूस हो मन देख कर छत घास…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on July 14, 2019 at 6:37pm — 2 Comments
ग़ज़ल (वो जब भी मिली)
बह्र-ए-वाफ़िर मुरब्बा सालिम (12112*2)
वो जब भी मिली, महकती मिली,
गुलाब सी वो, खिली सी मिली।
हो गगरी कोई, शराब की ज्यों,
वो वैसी मुझे, छलकती मिली।
दिखाई पड़ीं, वे जब भी मुझे,
उन_आँखों में बस, खुमारी मिली।
लगाने की दिल, ये कैसी सज़ा,
वफ़ा की जगह, जफ़ा ही मिली।
कभी वो मुझे,बताए ज़रा,
जो मुझ में उसे, ख़राबी मिली।
गिला भी किया, ज़रा भी अगर,
पुरानी…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on July 14, 2019 at 3:30pm — 5 Comments
आज फिर ... क्या हुआ
थरथरा रहा
दुखात्मक भावों का
तकलीफ़ भरा, गंभीर
भयानक चेहरा
आज फिर
दुख के आरोह-अवरोह की
अंधेरी खोह से
गहरी शिकायतें लिए
गहराया आसमान
आज फिर
ढलते सूरज ने संवलाई लाली में रंगी
कुछ खोती कुछ ढूँढ्ती
एक और मटमैली
उलझी-सी शाम
आज फिर
सिमटी हुई कुछ डरी-डरी
उदास लटकती शाम
डूबने को है ...
डूबने दो
मन में…
ContinueAdded by vijay nikore on July 14, 2019 at 2:27pm — 18 Comments
1.
शमअ देखी न रोशनी देखी ।
मैने ता उम्र तीरगी देखी ।
देखा जो आइना तो आंखों में,
ख़्वाब की लाश तैरती देखी ।
टूटे दिल का हटाया मलबा तो,
आरज़ू इक दबी पड़ी देखी ।
एक इक पल डरावना सा लगा,
इतने पास आ के ज़िन्दगी देखी ।
मैने इंसानियत रह ए हक़ पर,
दो कदम चल के हांफती देखी
2.
आप ने क्या कभी परी देखी ।
मैने यारो अभी अभी देखी ।
उसकी आँखों में सुब्ह सी…
ContinueAdded by Gurpreet Singh jammu on July 14, 2019 at 12:30pm — 7 Comments
Added by amita tiwari on July 13, 2019 at 1:00am — 2 Comments
दूरदृष्टि - लघुकथा -
"क्या हुआ अंशू, देख आया लड़की, कैसी लगी?"
"माँ, मुझे नहीं जमी |मैंने इसीलिये आप से भी साथ चलने को कहा था पर आपने तो टका सा जवाब दे दिया कि शादी तो तुझे ही करनी है| आखिरी फ़ैसला तो तेरा ही होगा, फिर मुझे इस बुढ़ापे में क्यों तंग कर रहा है?"
"पर जब तूने सबके फोटो और बायोडेटा देखे थे तो सबसे अधिक इसे ही प्राथमिकता दी थी|"
"हाँ माँ, उस हिसाब से तो वह अब भी सबसे बेहतर है।"
"अब उन्हें क्या जवाब देकर आया है?।"
"मैंने उन्हें बोला कि माँ…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 12, 2019 at 3:15pm — 6 Comments
दुश्मनी हमसे निकाली जाएगी ।
बेसबब इज्ज़त उछाली जाएगी ।।
नौकरी मत ढूढ़ तू इस मुल्क में ।
अब तेरे हिस्से की थाली जाएगी ।।
लग रहा है अब रकीबों के लिए ।
आशिकी साँचे में ढाली जाएगी ।।
चाहतें अब क्या सताएंगी उसे ।
जब कोई ख़्वाहिश न पाली जाएगी ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on July 11, 2019 at 12:12am — 4 Comments
122 122 122 12
मुसीबत जुटातीं ग़लत फहमियाँ
सुकूँ यूँ चुरातीं ग़लत फहमियाँ
किसी रिश्ते के दरमियाँ आएँ तो
महब्बत जलातीं ग़लत फहमियाँ
जहाँ तक भी हो इससे बच के रहो
तबाही मचातीं ग़लत फहमियाँ
अगर गर्व हावी हुआ शक्ति पे
ग़लत पथ धरातीं ग़लत फहमियाँ
उन्हें सच से जिसने न पोषित किया
उन्हीं को चबातीं ग़लत फहमियाँ
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 10, 2019 at 10:11pm — 4 Comments
Added by JAWAHAR LAL SINGH on July 10, 2019 at 4:00pm — 2 Comments
"यदि तुम्हें
उससे प्रेम है अनंत!
तो तुम स्वीकार
क्यूँ नहीं करते।
क्यूँ नहीं देख पाते
उसकी आंखों का सूनापन
जहाँ बरसों से नही बरसी…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 9, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
12112 12112
ये भँव तिरी तो, कमान लगे
तिरे ये नयन, दो बान लगे
कहीं न रुके, रमे न कहीं
इसे तू ही तो, जहान लगे
मैं जब से मिला हूँ तुम से, मिरी
हरेक अदा जवान लगे
अमिय है तिरी अवाज़ सखी
तू गीत लगे है गान लगे
है खोजती महज़ तुझे ही निगा'ह
न और कहीं मिरा धियान लगे
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 8, 2019 at 10:55pm — 5 Comments
श्वासों में....
मैं नहीं चाहता अभी
मृत्यु का वरण करना
प्रेम का वरण करना
शेष है अभी
श्वासों में
प्रतीक्षा की दहलीज़ पर
खड़े हैं कई स्वप्न
निस्तेज से
अवसन्न मुद्रा में
साकार होने को
मैं नहीं चाहता
सपनों की किर्चियों से
पलक पथ को रक्तरंजित करना
तिमिर गुहा में
यथार्थ से
साक्षात्कार करना
शेष है अभी
श्वासों में
अभी अनीस नहीं हुई
मेरी देह
ज़िंदा हैं आज भी…
Added by Sushil Sarna on July 8, 2019 at 5:28pm — 2 Comments
"मैं केक नहीं काटूँगी।" उसने यह शब्द कहे तो थे सहज अंदाज में, लेकिन सुनते ही पूरे घर में झिलमिलाती रोशनी ज्यों गतिहीन सी हो गयी। उसका अठारहवाँ जन्मदिन मना रहे परिवारजनों, दोस्तों, आस-पड़ौसियों और नाते-रिश्तेदारों की आँखें अंगदी पैर की तरह ताज्जुब से उसके चेहरे पर स्थित हो गयीं थी।
वह सहज स्वर में ही आगे बोली, "अब मैं बड़ी हो गयी हूँ, इसलिए सॉलिड वर्ड्स में यह कह सकती हूँ कि अब से यह केक मैं नहीं मेरी मॉम काटेगी।" कहते हुए उसके होठों पर मुस्कुराहट तैर गयी।
वहाँ खड़े अन्य सभी के…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 8, 2019 at 1:00pm — 3 Comments
221 2121 1221 212
मुद्दत के बाद आई है ख़ुश्बू सबा के साथ ।
बेशक़ बहार होगी मेरे हमनवा के साथ ।।
शायद मेरे सनम का वो इज़हारे इश्क था ।
यूँ ही नहीं झुकी थीं वो पलकें हया के साथ ।।
वह शख्स दे गया है मुझे बेवफ़ा का नाम ।
जो ख़ुद निभा सका न मुहब्बत वफ़ा के साथ ।।
माँगी मदत जरा सी तो लहज़े बदल गए ।
अब तक मिले जो लोग हमें मशविरा के साथ ।।
आँखों में साफ़ साफ़ सुनामी की है…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on July 8, 2019 at 11:00am — 10 Comments
विकसित से
हर पल जल
विकासशील
बेबस बेकल
होड़ प्रतिपल
छलके छल
भ्रष्टाचार-बल!
धरती घायल
सूखते स्रोत
उद्योग-दलदल!
उथल-पुथल
बिकता जल
दर-दर सबल
थकता निर्बल
धन से दंगल
नारे प्रबल
हर घर जल
सुनकर ढल
नेत्र सजल!
बड़ी मुश्किल
आग प्रबल
दूर दमकल
सीढ़ी दुर्बल
ज़िंदा ही जल!
जल में ही बल
जल है, तो कल
कर किलकिल
या फ़िर सँभल!
धाराओं का जल
बिन कलकल
नदियाँ बेकल
प्रदूषण-प्रतिफल!
प्रकृति ही…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 7, 2019 at 11:54am — 2 Comments
Added by amita tiwari on July 7, 2019 at 2:30am — 3 Comments
Added by DEEPAK MENARIA on July 6, 2019 at 4:30pm — 1 Comment
पूछ रहा हूँ मैं उन सच्ची ध्वनियों से जो मौन ओढ़ कर
मुझमें गूँजा करतीं हैं जो संदल-संदल अर्थ छोड़ कर...
...साँझ ढले और मैं ना आऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?
...धुँआ-धुँआ बन कर खो जाऊँ, ऐसा हो तो फिर क्या होगा ?
ऐ प्यासी धड़कन तू मेरी आस लगाए राह निहारे
मद्धम सी आहट सुनते ही मंत्रमुग्ध हो मुझे पुकारे
मैं तूफानी लहरों जैसा, तू तट के मंदिर में ज्योतित
क्यों आतुर है अपनाने को मझधारें तू छोड़ किनारे
कंदीलों की…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on July 6, 2019 at 2:26am — 5 Comments
थक गया हूँ
चाहता हूँ
तनिक सा विश्राम ले लूँ
तोड़कर मैं अर्गला
नश्वर वपुष की
किन्तु संकट है विकट
ढूंढें नही मिलता मुझे
इस ठौर पानी
एक चुल्लू साफ़
सिर्फ मरने के लिए
(मौलिक अप्रकाशित)
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 5, 2019 at 6:30pm — 7 Comments
वज़ह.....
बिछुड़ती हुई
हर शय
लगने लगती है
बड़ी अज़ीज
अंतिम लम्हों में
क्योँकि
होता है
हर शय से
लगाव
बेइंतिहा
दर्द होता है
बहुत
जब रह जाती है
पीछे
ज़िंदगी
जीने की
वज़ह
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 5, 2019 at 4:56pm — 4 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |