टिपर-टिपर-टिप
टिपर-टिपर-टिप
पानी की इक बूँद झूम कर
मुस्काई फिर ये बोली...
मैं अलमस्त फकीर
टिपर-टिप
मैं अलमस्त फकीर...
चंचलता जब ओस ढली तो
पत्तों नें भी जोग लिया,
उनके हिस्से जितना मद था
सब का सब ही भोग लिया,
बाँध सकी पर बूँदों को कब
कोई भी ज़ंजीर...
टिपर-टिप
मैं अलमस्त फकीर...
रिमझिम-रिमझिम जब बरसी तो
जीवन के अंकुर फूटे,
अम्बर की सौंधी पाती ने
जोड़े सब रिश्ते टूटे,
बूँदें ही…
Added by Dr.Prachi Singh on April 24, 2017 at 10:00pm — 8 Comments
2122/1122/1122/22
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ऐसा लगता है फ़क़त ख़ार सँभाले हुए हैं,
शाख़ें, पतझड़ में भी क़िरदार सँभाले हुए हैं.
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जिस्म क्या है मेरे बचपन की कोई गुल्लक है
ज़ह’न-ओ-दिल आज भी कलदार सँभाले हुए हैं.
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आँधियाँ ऐसी कि सर ही न रहे शानों पर,
और हम ऐसे में दस्तार सँभाले हुए हैं.
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वक़्त वो और था; तब जान से प्यारे थे ख़ुतूत
अब ये लगता है कि बेकार सँभाले हुए हैं.
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टूटी कश्ती का सफ़र बीच में कुछ छोड़ गए,
और कुछ आज भी पतवार सँभाले हुए…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 24, 2017 at 8:59pm — 20 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 23, 2017 at 4:30pm — 18 Comments
2122 1212 22 /112
मेरी साँसें रवाँ - दवाँ कर दे
फिर लगे दूर आसमाँ कर दे
प्यासे दोनों तरफ़ हैं , खाई के
है कोई.. ? खाई जो कुआँ कर दे
वो ठिकाना जहाँ उजाला हो
सब की ख़ातिर उसे अयाँ कर दे
दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं
आ मेरे सामने , बयाँ कर दे
ऐ ख़ुदा, क्या नहीं है बस में तिरे
हिन्दी- उर्दू को एक जाँ कर दे
कैसे देखूँगा मै ये जंग ए अदब
मेरी आँखे धुआँ धुआँ कर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 23, 2017 at 11:11am — 23 Comments
फाइलुन -फाइलुन-फाइलुन-फाइलुन
वक़्ते तन्हाई मेरा गुज़र जाएगा |
तू अगर साथ शब भर ठहर जाएगा |
मुझको इज़ने तबस्सुम अगऱ मिल गई
तेरा मगरूर चेहरा उतर जाएगा |
मालो दौलत नहीं सिर्फ़ आमाल हैं
हश्र में जिनको लेकर बशर जाएगा |
उसके वादों पे कोई न करना यक़ी
वो सियासी बशर है मुकर जाएगा |
देखिए तो मिलाकर किसी से नज़र
खुद बखुद ही निकल दिल से डर जाएगा |
आप खंजर का एहसान लेते है…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 22, 2017 at 12:00pm — 13 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 21, 2017 at 9:02am — 8 Comments
2122, 212, 2122, 212
उससे मुझको सच मे कोई शिकायत भी नही,
हाँ मगर दिल से मिलूँ अब ये चाहत भी नही।
इस बुरुत पर ताव देने का मतलब क्या हुआ,
गर बचाई जा सके खुद की इज्जत भी नही।
अब अँधेरा है तो इसका गिला भी क्या करें,
ठीक तो अब रौशनी की तबीअत भी नही।
आती हैं आकर चली जाती हैं यूँ ही मगर,
इन घटाओं मे कोई अब इक़ामत भी नही।
जुल्म सहने का हुआ ये भी इक अन्जाम है,
अब नजर आँखों में आती बगावत भी नही।
मौलिक व…
Added by Hemant kumar on April 20, 2017 at 11:00am — 16 Comments
Added by Samar kabeer on April 20, 2017 at 12:04am — 31 Comments
Added by दिनेश कुमार on April 19, 2017 at 6:17pm — 9 Comments
12122/12122
इक अजनबी दिल चुरा रहा था।
करीब मुझ को' बुला रहा था।
वो' कह रहा था बुझाए'गा शम्स,
मगर दिये भी जला रहा था।
वो' ज़ख़्म दिल के छुपा के दिल में,
न जाने' क्यों मुस्करा रहा था।
सबक़ मुहब्बत का' हम से' पढ़ कर,
हमें मुहब्बत सिखा रहा था।
बुरा है' टाइम तो' चुप है' "रोहित"।
नहीं तो' ये आईना रहा था।
रोहिताश्व मिश्रा, फ़र्रुखाबाद
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by रोहिताश्व मिश्रा on April 18, 2017 at 1:30pm — 15 Comments
मेरे भीतर की कविता
अक्सर छटपटाती है
शब्दों के अंकुर
भावों की विनीत ज़मीन पर
अंकुरित होना चाहते हैं
ना जाने क्यों वे
अर्थ नहीं उपजा पाते हैं
मेरे भीतर की कविता फिर भी
जाकर संवाद करती है
सड़क किनारे बैठे
उस मोची पर जो
फटे जूते सी रहा है
बंगले की उस मेम साहिबा पर
जो अपना बचा फास्ट फुड
डस्टबिन में फेंककर
ज़ोर से गेट बंद करके
अंदर चली जाती है
लेकिन
अनुभूतियाँ ज़ोर मारती है
पछाड़े खाकर गिर जाती है
हृदय…
Added by Mohammed Arif on April 17, 2017 at 5:30pm — 12 Comments
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
(एक शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ कर दें)
जो कहूँ जो लिखूँ ओबीओ के लिये
यूँ समर्पित रहूँ ओबीओ के लिये
माँगता हूँ यही आजकल मैं दुआ
जब तलक भी जियूँ ओबीओ के लिये…
Added by Samar kabeer on April 1, 2017 at 2:30pm — 43 Comments
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